Saturday, November 23, 2024
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128 मौतें, 21 शपथ, 500 मेहमान: वामपंथी पॉलिटिक्स का एक चैप्टर यह भी

विजयन का शपथ ग्रहण समारोह वामपंथ के वैचारिक दोगलेपन में जो नया 'नगीना' जोड़ गया है, उसकी चमक आने वाली पीढ़ियों को भी इस राजनीतिक विचारधारा को दफन करने को प्रेरित करती रहेंगी।

भारत की वामपंथी राजनीति के कई प्रतीक चिह्न हैं। चाहे वह लाल किले पर लाल सलाम का नारा हो या फिर एक माँ को अपने ही बेटे के खून से सना चावल खाने को मजबूर करना। 2021 का 20 मई इसमें एक नई तारीख जोड़ गया। चीनी वायरस से अक्रांत देश के एक प्रदेश में वामपंथ के एक ‘नायक’ ने लोकतंत्र की आड़ लेकर, जनभावनाओं को ठेंगा दिखाकर मनमर्जी का जलसा कर ही लिया।

हम बात कर रहे हैं केरल के मुख्यमंत्री और उनके 20 कैबिनेट सहयोगियों के हुए शपथ ग्रहण समारोह की। पहली नजर में सब कुछ संवैधानिक रवायतों के अनुसार हुआ लगता है। एक ऐसा समारोह जो हर साल हम देखते ही रहते हैं। मंच पर एक-एक कर आते नेता और शपथ दिलाते राज्यपाल। मंच के नीचे से उन्हें ताकते और गौरवान्वित होते चेहरे। एक मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री की बधाई।

लेकिन, जब हम उन हालातों पर गौर करते हैं जिसमें यह सब कुछ हुआ तो हमें विषैले वामपंथ का अहसास होता है। देश ही कोरोना से नहीं जूझ रहा। केरल भी बेदम है। अपने तथाकथित मॉडल का ढोल पीटने के बावजूद वह संक्रमण के लिहाज से देश का तीसरा सबसे बदतर राज्य है। जिस दिन पिनराई विजयन ने अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ शपथ ली है, उसी दिन राज्य में संक्रमण से 128 लोगों की मौत हुई है। संक्रमण के 30491 नए मामले सामने आए हैं। राज्य में संक्रमितों के कुल एक्टिव केस 3,17,850 हैं और अब तक 6852 मौतें हो चुकी हैं।

ऐसा नहीं है कि विजयन के सामने नजीर नहीं था या वे अतीत से सबक नहीं ले सकते थे। उनके साथ ही चुनावों में विजय हुईं ममता बनर्जी और हिमंत बिस्वा सरमा जैसों का शपथ ग्रहण समारोह बीते ज्यादा दिन भी नहीं हुए हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कॉन्ग्रेस (TMC) और असम में बीजेपी भी केरल की वामपंथी मोर्चे की तरह ही सत्ता में वापसी करने में सफल रहे हैं। सरमा तो पहली बार मुख्यमंत्री बने हैं। लेकिन, महामारी के हालातों के मद्देनजर इन्होंने शपथ की संवैधानिक रवायत को पूरा किया, पर उसे जश्न का मौका नहीं बनने दिया।

विजयन चाहते तो वह जनभावनाओं की कद्र कर भी इस समारोह को टाल सकते थे। समारोह पर रोक को लेकर अदालत का भी दरवाजा खटखटाया गया था। लेकिन, यह कानून से ज्यादा नैतिकता का मसला था, जिसकी अपेक्षा सामान्य परिस्थितियों में वामपंथियों से नहीं की जाती। पर मौजूदा परिस्थिति सामान्य नहीं थी। सो यह उम्मीद लाजिमी थी कि विजयन शायद उस जनता के दर्द को समझेंगे जिसने उनको दोबारा मौका दिया है।

दिलचस्प यह भी है कि कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच प्रधानमंत्री की रैलियों को लेकर यही जमात हमलावर था। ये वही जमात है जिसने बिहार विधानसभा चुनाव के वक्त वचुर्अल रैली करने के चुनाव आयोग के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। लेकिन, इस बार जब चुनाव के दौरान हालात बिगड़ने लगे तो आयोग को कसूरवार ठहराया। उस पर बीजेपी के एजेंट होने का आरोप तक लगाया गया।

यह सही है कि विजयन लोकतंत्र की दुहाई देकर इन आरोपों को खारिज कर सकते हैं। लेकिन, उनके इस शपथ ग्रहण समारोह ने वामपंथ के वैचारिक दोगलेपन में जो नया ‘नगीना’ जोड़ा है, उसकी चमक आने वाली पीढ़ियों को भी इस राजनीतिक विचारधारा को दफन करने को प्रेरित करती रहेंगी।

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अजीत झा
अजीत झा
देसिल बयना सब जन मिट्ठा

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