वेस्ट यूपी के 14 लाख गुर्जरों के नाराज़ होने का डर, MP में भी मुश्किल: जानिए क्यों पायलट से समझौते के मूड में प्रियंका गाँधी

प्रियंका गाँधी गुर्जरों के नाराज़ होने के डर से सचिन पायलट से समझौता चाह रहीं

राजस्थान में सचिन पायलट की बगावत के बाद अशोक गहलोत ने उन्हें और उनके साथी नेताओं को बाहर निकालने की प्रक्रिया शुरू कर दी। इधर प्रियंका गाँधी के हस्तक्षेप के बाद उनसे बातचीत शुरू हो गई और समझौते की अटकलें आने लगीं। ख़ुद सचिन पायलट ने स्वीकार किया था कि उनकी प्रियंका गाँधी से ‘व्यक्तिगत रूप से’ बातचीत हुई है, लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। इन सबकी जड़ में ‘गुर्जर समाज’ का डर है।

प्रियंका गाँधी आखिर सचिन पायलट के जाने से इतनी बेचैन क्यों हैं? वो इतना तो ज़रूर चाहती रही होंगी कि अगर पायलट जाएँ भी तो कॉन्ग्रेस की ऐसी छवि न बने कि उसने सचिन पायलट के साथ कुछ गलत किया है। उनके डर का कारण क्या था? दरअसल, राजेश पायलट कभी देश में गुर्जरों के सबसे बड़े नेता माने जाते थे। सचिन पायलट ने उनकी विरासत सँभाल रखी है। ऐसे में प्रियंका के डर का कारण हम आपको बताते हैं।

इसे समझने के लिए आपको पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जातीय अंकगणित को समझना पड़ेगा चूँकि इस पूरे मामले की जड़ मे भी जाति ही है, हमें भी जाति की बात करनी ही पड़ेगी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यूँ तो माना जाता है कि राजपूतों की जनसंख्या ज्यादा है, लेकिन वहाँ सबसे ज्यादा प्रभाव गुर्जरों अथवा गुज़्जरों का है, जो किसी भी पार्टी की हार-जीत में निर्णायक भूमिका में होते हैं। प्रियंका गाँधी कि नजर इसी वोट बैंक पर है।

‘एबीपी न्यूज’ के सीनियर कोरेस्पोंडेंट आदेश रावल ने ख़बर दी है कि 26 जुलाई को सोहना के रिठोज गाँव मे गुर्जर समाज के लोगों ने बैठक बुलाई है। बैठक मे राजस्थान के सभी गुर्जर विधायकों से कहा जाएगा कि वो सचिन पायलट को अपना समर्थन दे। अगर ऐसा नही किया तो विधायकों का सामाजिक तौर पर बहिष्कार किया जाएगा। राजस्थान में फिलहाल 9 गुर्जर विधायक हैं, जो कॉन्ग्रेस पार्टी में हैं।

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राजस्थान की राजनीति अब उत्तर प्रदेश को प्रभावित कर रही है। वेस्ट यूपी में अकेले गौतम बुद्ध नगर में 3 लाख गुर्जर हैं। इसी तरह ढाई लाख गुर्जर सहारनपुर में हैं। मेरठ-हापुड़, गाजियाबाद और अमरोहा में इनकी जनसँख्या डेढ़-डेढ़ लाख है। मुजफ्फरनगर में ये सवा लाख की संख्या में हैं। कुल मिला दें तो पूरे पश्चिमी यूपी में 14 लाख गुर्जर हैं, जो कॉन्ग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बनने जा रहे हैं। यही प्रियंका के ‘डर’ का कारण है।

सचिन पायलट को राजस्थान में गुर्जर-मीणा एकता का प्रतीक माना जाता है। ख़बर आई है कि हरियाणा के नूह स्थित आईटीसी ग्रैंड होटल में जहाँ सचिन पायलट गुट के विधायक रुके हुए हैं, वहीं पर गुर्जरों के दिग्गज नेता धर्मपाल राठी का फार्म हाउस है। उनके पास लगातार राज्य के कई इलाक़ों के गुर्जरों नेताओं और कार्यकर्ताओं के फोन आ रहे हैं। उनके घर पर लोगों की भीड़ जुट रही है।

‘एनडीटीवी’ की एक ख़बर के अनुसार, धर्मपाल राठी द्वारा गुर्जर महापंचायत बुलाने की अफवाह भर से वहाँ कई नेताओं का जमावड़ा लग गया। राठी ने स्पष्ट कर दिया है कि वो सचिन पायलट के साथ खड़े हैं। हालाँकि, कोरोना के दौर में उन्होंने महापंचायत की बात से इनकार किया। लेकिन, लोग लगातार पहुँच रहे हैं।

अब आप सोचिए, जब एक अफवाह का इतना असर होता है तो गुर्जरों ने सच में शक्ति-प्रदर्शन कर दिया तो उससे कॉन्ग्रेस को कितना नुकसान पहुँचेगा।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ में इसका असर देखने को मिल भी रहा है। वहाँ ‘युवा गुर्जर महासभा’ ने सचिन पायलट के पक्ष में आवाज़ बुलंद करते हुए कॉन्ग्रेस का विरोध किया। गुर्जर समाज ने आरोप लगाया कि राजेश पायलट ने अपनी पूरी ज़िंदगी कॉन्ग्रेस को दे दी, लेकिन उनके साथ भी षड्यंत्र रचा गया था। उन्होंने धमकाया कि गुर्जर समाज आन्दोलनों के लिए ही जाना जाता है। उन्होंने कॉन्ग्रेस की निंदा की।

अगर आप उपर्युक्त बयानों को देखें तो इससे गुर्जरों के गुस्से का अंदाज़ा लग जाता है। गुर्जर समाज हमेशा से अपने समुदाय के हितों को लेकर सजग रहा है और समय-समय पर कड़ा रुख अख्तियार करता रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 30 जिले हैं, जहाँ प्रियंका गाँधी गुर्जर वोटरों को नाराज नहीं करना चाहती हैं और इसीलिए वो सचिन पायलट से समझौते के पक्ष में हैं। गुर्जर समाज का डर उनके सिर चढ़ कर बोल रहा है।

ये किसी से छिपा नहीं है कि उत्तर प्रदेश को प्रियंका गाँधी ने आजकल अपने इगो का मुद्दा बनाया हुआ है और वो सीएम योगी आदित्यनाथ पर लगातार हमलावर रही हैं। वो आए दिन यूपी के मुद्दों का राष्ट्रीयकरण करने की फिराक में रहती हैं। ऐसे में प्रियंका दूसरे राज्य की गलती को अपनी राजनीतिक नाकामी का कारण नहीं बनने देना चाहतीं। यूपी के 2022 विधानसभा चुनावों में गुर्जरों का वोट मायने रखेगा।

फ़रवरी 2019 में राजस्थान में गुर्जर समाज ने बड़ा आंदोलन किया था और तब भी सचिन पायलट ने चुप्पी साधी हुई थी। सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन ने अशोक गहलोत को बेचैन भी कर दिया था। इससे पहले जब भी गुर्जर समाज का आंदोलन हुआ है, सचिन पायलट ने उसके पक्ष में आवाज़ बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वो अपने समुदाय के साथ हमेशा खड़े रहे हैं।

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जयपुर के अलावा अजमेर और भरतपुर भी तब गुर्जर आंदोलन के कारण तनाव और हिंसा का शिकार बना था। सचिन पायलट की तब की चुप्पी से साफ़ हो जाती है कि उनके और अशोक गहलोत के सम्बन्ध काफी पहले से अच्छे नहीं थे और जिस तरह से गहलोत ने स्वीकार किया कि डेढ़ साल से उनकी बातचीत नहीं हुई है, ये चीजें और स्पष्ट हो जाती हैं। गुर्जर नेता लेफ्टिनेंट कर्नल (रिटायर्ड) किरोरी सिंह बैंसला पहले ही भाजपा में आ चुके हैं।

हरियाणा में जिस तरह से दुष्यंत चौटाला ने भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाई, उससे वहाँ ही नहीं बल्कि वहाँ से सटे दिल्ली में भी जाट वोटरों से कॉन्ग्रेस का मोहभंग हो गया। लेकिन, गुर्जरों का पार्टी से दूर होना कई राज्यों में बड़ी समस्याएँ पैदा कर सकता है। मध्य प्रदेश में उपचुनाव होने हैं। 26 में से अधिकतर सीटें गुर्जरों के प्रभाव वाले ग्वालियर-चम्बल संभाग में हैं। ऐसे में भाजपा को इसका फायदा मिलना तय है।

समय देख कर भाजपा ने अपने पुराने गुर्जर नेताओं को मध्य प्रदेश में आगे किया है। साथ ही सिंधिया गुट से एक गुर्जर नेता को मंत्री भी बनाया गया है। भले ही सचिन पायलट गुर्जरों के सर्वमान्य नेता नहीं रहे हों, लेकिन कॉन्ग्रेस द्वारा उनके साथ जो सलूक किया गया है उसे मुद्दा बना कर कम से कम उनकी पहचान का तो भाजपा फायदा उठा ही सकती है। सिंधिया पहले ही पायलट के पक्ष में मुखर रहे हैं।

आज सचिन पायलट राजस्थान में 49 विधानसभा सीटों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दखल रखते हैं। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने जाने के बाद उन्होंने जम कर मेहनत की और अपने पिता के समर्थकों को निराश नहीं किया। राजस्थान में उन्हें गुर्जर और मीणा समुदाय के बीच होने वाले संघर्षों को थामने वाला व्यक्ति भी माना जाता है। दोनों समुदाय अक्सर लड़ते रहते थे और आरक्षण को लेकर आंदोलन होते रहते थे।

अगर आप अभी भी सोशल मीडिया खँगालेंगे तो पाएँगे कि गुर्जर समाज के लोगों ने सचिन पायलट के पक्ष में अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। कई युवा गुर्जरों ने तो वीडियो बना कर भी पायलट के पक्ष में आवाज़ बुलंद की है। वहीं कइयों ने धमकी भरे स्वर अपनाए। स्थानीय स्तर के गुर्जर नेताओं ने भी अपनी पार्टी लाइन से इतर जाकर पायलट का समर्थन किया है। इससे कॉन्ग्रेस चिंतित है।

2018 के चुनाव को ही उदाहरण के रूप में लीजिए। पूर्वी राजस्थान में 49 सीट गुर्जर-मीणा का गढ़ हैं। इनमें से 42 सीटों पर कॉन्ग्रेस को विजय मिली, जो सचिन पायलट की ही मेहनत का परिणाम था। एक तो उन्हें सीएम पद नहीं दिया गया और ऊपर से सरकार में भी उन्हें हाशिए पर धकेल दिया गया। अब देखना ये है कि सचिन पायलट किस करवट बैठते हैं, लेकिन राजस्थान में बड़ा बदलाव तो तय ही है।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.