लोकसभा चुनावों के आते-आते कॉन्ग्रेस नेताओं के बयानों को सुनकर ऐसा लगता है, मानो जैसे वो अच्छा-बुरा सब भुलाकर अपना आपा खो चुके हैँ। उन्हें न किसी के पद का ख़्याल है और न ही किसी की उपलब्धियों का। साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरीके से उन्हें सत्ता में आना हैं, जिसके लिए वो कुछ भी कर गुज़रने को तैयार हैं।
मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह और संजय निरूपम जैसे कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता पहले ही प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के ख़िलाफ़ अपशब्दों का प्रयोग करते रहे हैं। लगातार आते इन नेताओं के बयानों को देखकर लगता हैं जैसे ये सिलसिला अभी रुकने वाला नहीं हैं।
रिपोर्टों के अनुसार उल्हास पवार ने, जो कि कॉन्ग्रेस के नेता भी हैं और पूर्व विधायक भी रह चुके हैं, नागपुर में आयोजित हुई ‘जन संघर्ष रैली’ में इल्ज़ाम लगाते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे, जिस दौरान उन्हें जेल भी भेजा गया। लेकिन, उन्होंने 9 दिनों के भीतर ही ब्रिटिश सरकार को क्षमा पत्र लिखा और जेल से बाहर आ गए। इस घटना के बाद वो कभी भी जेल नहीं गए।
इसके बाद उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए बताया कि विनायक दामोदर सावरकर ने भी अंग्रेज़ों को कम से कम 18 दफ़ा माफ़ी पत्र लिखा। अपनी बातों पर ज़ोर देते हुए उन्होंने भाजपा पर कई और आरोप लगाए। उनके कहे अनुसार 1968 में वो भाजपा के ही नेता थे, जिन्होंने अपनी पार्टी के प्रमुख दीन दयाल उपध्याय को मारा था। जिसका स्त्रोत उन्होंने भारतीय जन संघ के पूर्व अध्यक्ष बलराज माढोक की किताब को बताया, जिसमें उन्होंनें दील दयाल उपध्याय की पूरी जीवनी की चर्चा की है।
बीजेपी की छवि धूमिल करने के लिए लगातार कॉन्ग्रेस नेताओं का इस तरह का हमला करना उनकी ओछी राजनीति का सबूत है। अपने आपको सेक्यूलर पार्टी होने का दावा करने वाली कॉन्ग्रेस सरकार लगातार पीएम की जाति को लेकर, उनके पारिवारिक परिस्थितियों को लेकर उनके बैकग्राउंड को लेकर टिप्पणी करना बताता है, कि कॉन्ग्रेस किस दिशा में जाकर पीएम को सत्ता से हटाने के लिए आतुर है। यही नहीं तथाकथित रूप से महिलाओं का सम्मान करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी के नेता संजय निरूपम ने स्मृति ईरानी पर भी शर्मसार करने वाली नारीविरोधी टिप्पणी की थी।