मुस्लिम लड़कियों से शादी की सजा: हाई कोर्ट नहीं दे रहा गैर-मुस्लिम भाइयों को बेल, पिता को भी पाकिस्तान में जमानत नहीं

पाकिस्तान में अहमदियों की हालत बदतर (ग्राफिक साभार: Dawn)

पाकिस्तान की एक उच्च न्यायालय द्वारा सोमवार (15 फरवरी, 2020) को मुस्लिम महिलाओं से शादी करने वाले दो अहमदी भाइयों की जमानत याचिका को खारिज कर दिया गया। बता दें कि इस्लामिक राष्ट्र पाकिस्तान में अहमदी मुसलमानों को गैर-मुस्लिमों की श्रेणी में रखा जाता है।

रबवाह टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति सैयद अरशान अली ने मामले के सिलसिले में अपना फैसला सुनाते हुए ज़ैद और ज़ाहिद के साथ उनके पिता साजिद को भी जमानत देने से इनकार कर दिया।

जैद और जाहिद ने पिछले साल जून में पाकिस्तान के पेशावर में शेख मुहम्मदी इलाके में सोबिया और सलमा नाम की महिलाओं से निक़ाह किया था। जिसके बाद 29 सितंबर को उन पर निक़ाह का झाँसा देकर धोखाधड़ी और ईशनिंदा का आरोप लगाया गया, और पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया था।

दोनों भाइयों के खिलाफ पाकिस्तान दंड संहिता (PPC) की धारा 298C (अहमदी/क़ादियानी खुद को मुस्लिम या उसमें विश्वास रखने वाले) और 493A (धोखेबाजी से शादी) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है, जब इस तरह की घटना लोगों के संज्ञान में आई है।

इससे पहले पिछले साल अक्टूबर में खबर आई थी कि एक पाकिस्तानी अहमदी प्रोफेसर को उत्तर-पश्चिम शहर पेशावर में एक अन्य मुस्लिम प्रोफेसर ने गोली मार दी थी। आरोप था कि दोनों के बीच धार्मिक मुद्दे को लेकर बहस छिड़ गई थी। मृतक अहमदी प्रोफेसर की पहचान डॉ. नईमुद्दीन खट्टक उर्फ ​​नईम खट्टक के रूप में हुई थी।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, कॉलेज आते समय प्रोफेसर फारूक माद और बंदूक लिए एक अन्य आदमी द्वारा अहमदी प्रोफेसर की हत्या को अंजाम दिया गया था।

जमात-ए-अहमदिया पाकिस्तान के प्रवक्ता सलीमुद्दीन ने इस घटना को लेकर एक बयान में कहा कि प्रोफेसर खट्टक को उनकी अहमदी विश्वास के कारण मौत के घाट उतार दिया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि नईम को अतीत में धमकियों और बहिष्कार का सामना भी करना पड़ा था। नईम गवर्नमेंट सुपीरियर साइंस कॉलेज पेशावर में एक फैकल्टी मेंबर थे। उनके घर में अब उनकी विधवा पत्नी, दो बेटे और तीन बेटियाँ हैं।

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में लंबे समय से अहमदिया समुदाय पर अत्याचार हो रहा है। उन्हें साल 1974 में संविधान में संशोधन के साथ अहमदियों को गैर मुस्लिम घोषित कर दिया गया था। इसके बाद 1984 में जनरल मुहम्मद जिया-उल-हक के शासन में एक सख्त अध्यादेश जारी किया गया था। जिसमें कहा गया था कि अगर कोई अहमदिया खुद को मुस्लिम बताएगा, तो वो अपराध की श्रेणी में आएगा और ऐसा करने वाले को 3 साल की सजा और जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। तब से उन पर हिंसा, भेदभाव और ईशनिंदा के झूठे मामले दर्ज किए जा रहे है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया