पाकिस्तान के हिन्दू समुदाय ने वहाँ के एक मंदिर पर हमला करने वाले आरोपितों व इस्लामी भीड़ को माफ करने का फैसला लिया है। अर्थात, अब उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी।
मामला पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा का है, जहाँ 100 वर्ष पुराने एक मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया था। इस्लामी भीड़ ने मंदिर को जला डाला था। इस मामले में स्थानीय मौलानाओं और प्रभावशाली मुस्लिमों ने हिन्दू समाज के साथ बैठक की।
इस बैठक में हुए समझौते, जिसे वहाँ ‘जिरगा’ भी कहते हैं, उसके तहत आरोपितों ने हिन्दू मंदिर को ध्वस्त करने और उसे जलाने को लेकर माफी माँगी। 1997 में भी इसी तरह की घटना हुई थी, जिसे लेकर माफी माँगी गई।
मौलानाओं ने हिन्दू समुदाय को आश्वासन दिया है कि पाकिस्तान के संविधान के हिसाब से हिन्दू परिवारों और उनके अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की जाएगी। इस मामले में कुछ आरोपित फिलहाल हिरासत में हैं।
अब इस बैठक में हुए समझौते के बाद पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में इस सहमति के विवरण रखे जाएँगे, जिसके बाद उन आरोपितों को रिहा किया जाएगा।
पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल के रमेश कुमार ने उलेमाओं के साथ बैठक के बाद कहा कि उस घटना से दुनिया भर के हिन्दू समाज की भावनाएँ आहत हुई थीं। रमेश तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के नेता भी हैं। उन्होंने बताया कि खैबर पख्तूनख्वा (KPK) के मुख्यमंत्री महमूद खान ने समझौते की पूरी प्रक्रिया की अध्यक्षता की।
उन्होंने मामले को सुलझाने के लिए सीएम को धन्यवाद भी दिया। महमूद खान ने बैठक को संबोधित करते हुए इस घटना की नींद की और इसे प्रांत की शांति को भंग करने की साजिश बताया।
सुप्रीम कोर्ट ने उस मंदिर के पुनर्निर्माण का आदेश दिया हुआ है। इस मामले में 50 आरोपितों की गिरफ़्तारी हुई थी। भारत ने भी कड़ी आपत्ति जताई थी। 1997 तक यहाँ परमहंस जी महाराज की समाधि पर हिन्दू दर्शन के लिए आते थे।
Hindu community pardons accused in Karak temple attackhttps://t.co/7NKTRsg1TK
— The Express Tribune (@etribune) March 13, 2021
गौरतलब है कि साल 2020 के दिसंबर महीने में खैबर पख्तूनख्वा प्रांत स्थित एक मंदिर के मरम्मत कार्य का विरोध कर रहे मुस्लिमों की भीड़ ने मंदिर में तोड़-फोड़ की थी और आग लगा दी थी। सैंकड़ों मुस्लिमों की भीड़ वहाँ मौजूद थी।
मंदिर तोड़ते वक्त आस-पास अल्लाह-हू-अकबर के नारे लग रहे थे। इस्लामी झंडा लहरा कर मंदिर को तोड़ा जा रहा था। जगह जगह से धुआँ उठ रहा था। गोले दागने की आवाजें भी वीडियो में साफ सुनाई दे रही थी।
इस मंदिर का निर्माण जुलाई 1919 में कराया गया था, जब गुरु श्री परमहंस दयाल उस जगह पर विश्राम के लिए ठहरे थे। क्षेत्र में रहने वाले मुस्लिम लोगों ने 1947 में विभाजन के बाद मंदिर बंद कर दिया था।
कुछ महीनों पहले स्थानीय मुस्लिमों ने आरोप लगाया था कि जीर्णोद्धार की आड़ में हिन्दू समुदाय के लोगों ने ग़ैरक़ानूनी रूप से मंदिर की इमारत का आकार बढ़ा दिया। आरोपितों में अधिकतर जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम से जुड़े हुए थे।