अर्णब की गिरफ्तारी से पहले अन्वय नाइक मामला: क्यों उठते हैं माँ-बेटी की मंशा पर सवाल? कब-कब क्या हुआ, जानिए सब कुछ

अक्षता नाइक के आरोपों पर क्यों होता है संदेह?

रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर मुंबई पुलिस का चेहरा 4 नवंबर को पूरे देश ने देखा। 20 सशस्त्र पुलिसकर्मी उन्हें उनके घर से घसीटकर अलीबाग थाने ले गए और उन्हें जूते पहनने का मौका तक नहीं दिया गया। यह सब एक ऐसे केस में हुआ जो साल 2019 में बंद हो चुका है।

इस गिरफ्तारी की अगुवाई एनकाउंटर स्पेशलिस्ट सचिन वाजे ने की थी, जिन्हें कुछ दिन पहले मुंबई पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने 16 साल बाद पुलिस में तैनात करवाया था और कुछ दिन पहले ही वह शिवसेना से भी जुड़े थे।

अर्णब को थाने ले जाने के दौरान किस तरह का बर्ताव किया गया इसका अंदाजा उनके हाथ पर नजर आए 6 इंच लंबे घाव को देख कर लग गया था। इसके अलावा उन्होंने अपने हलफनामे में भी कहा था कि उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया और यातनाएँ भी दी गईं। अर्णब ने कहा था कि उन्हें जूतों से पीटा गया और ऐसा तरल पीने को दिया गया जिससे उनका दम घुटने लगा।

कोर्ट में उनकी पुलिस हिरासत का प्रस्ताव रद्द किए जाने के बाद भी पुलिस ने उन्हें तलोजा जेल में शिफ्ट करवाया। बाद में 9 दिन की हिरासत के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अर्णब को जमानत पर रिहा किया और साथ ही साथ पुलिस द्वारा की गई असंवैधानिक कार्रवाई और उच्च न्यायालय द्वारा पहले जमानत नहीं दिए जाने पर कड़ी फटकार लगाई।   

सबसे ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह थी कि अर्णब को 2018 के दौरान आत्महत्या के लिए उकसाने वाले ऐसे मामले में गिरफ्तार किया गया जिसे पहले बंद किया जा चुका था लेकिन उनपर कार्रवाई करने के लिए हाल ही में फिर से यह फाइल खोली गई। ऐसा करने के पहले न तो न्यायालय की सहमति ली गई और न ही संज्ञान। यह बात किसी और ने नहीं बल्कि अर्णब को न्यायिक हिरासत में भेजने वाले मजिस्ट्रेट ने भी कही थी। 

महाराष्ट्र सरकार ने 2018 के जिस मामले की फाइल दोबारा खोल कर अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार किया था उस मामले में अंतरिम रिपोर्ट तक दायर की जा चुकी थी। अब ऑपइंडिया ने ARG Outlier Media Asianet News Pvt Ltd (ARG), CDPL (अन्वय नाइक की कंपनी, जिन्होंने आत्महत्या की थी) और नाइक की पत्नी और बेटी के बीच हुई पूरी बातचीत को एक्सेस किया है।

अन्वय नाइक और कथित तौर पर उनकी माँ कुमुद नाइक की आत्महत्या

5 मई 2018 को आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी माँ कुमुद नाइक महाराष्ट्र के रायगढ़ स्थित अलीबाग क्षेत्र अंतर्गत कवीर गाँव के फ़ार्म हाउस में मृत पाए गए थे। इस दौरान उनके घर से एक सुसाइड नोट भी बरामद किया गया था। 

सुसाइड नोट

बरामद किए गए सुसाइड नोट में कुल 3 लोगों के नाम का ज़िक्र था। 

1.अर्णब गोस्वामी, जिनका अन्वय नाइक और इनकी माँ के मुताबिक़ 83 लाख रुपए बकाया था और यह राशि उन्हें Concorde Designs Pvt Ltd (वही कंपनी जिसके निदेशक माँ और बेटे थे) को देनी थी।

2. फ़िरोज़ शेख – 4 करोड़ बकाया

3. नितेश शारदा – 55 लाख बकाया

बरामद किए गए सुसाइड नोट में उल्लेखनीय यह था कि इस पर केवल अन्वय नाइक के हस्ताक्षर थे। अन्वय की माँ जो ठीक वहीं पर मृत पाई गई थीं उन्होंने सुसाइड नोट पर हस्ताक्षर नहीं किया था या अपना (वैकल्पिक) सुसाइड नोट नहीं छोड़ा।

बाद में इस मामले में घटना के दिन ही एफ़आईआर दर्ज की गई थी जिसमें 3 लोगों को आरोपित बनाया गया था। इसके ठीक बाद पुलिस ने अर्णब के दफ्तर जाकर उनसे इस घटना के संबंध में पूछताछ की थी और अपनी कंपनी के आर्थिक दस्तावेज़ जमा करने की बात कही थी।

8 मई को सीएफ़ओ एस सुंदरम और सीईओ खनचंदानी ने लगभग सारे आर्थिक दस्तावेज़ यहाँ तक कि आने वाले लोगों से जुड़ी जानकारी और फ़ोन रिकॉर्ड की जानकारी भी पुलिस को दे दी थी।

6 अगस्त 2018 को टाइम्स ऑफ़ इंडिया में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें दावा किया गया कि अन्वय नाइक ने पहली अपनी माँ को मारा फिर खुद आत्महत्या कर ली।

साल 2018 की टाइम्स रिपोर्ट

अब यह स्पष्ट था कि कुमुद नाइक की हत्या हुई है क्योंकि पुलिस ने उस वक्त एक हत्या का मामला भी दर्ज किया था और ये उन्होंने केवल मौक़ा-ए-वारदात पर बरामद किए गए सबूत के आधार पर दर्ज किया था।

रिपोर्ट में इकलौता सबूत यही दिया गया है कि फ़ार्म हाउस पर कोई और नहीं मौजूद था। अप्रैल 2019 में पुलिस ने इस मामले में एक समरी तैयार किया जिसके मुताबिक़, “उन्हें (पुलिस वालों को) अर्णब गोस्वामी और अन्य के विरुद्ध कोई सबूत नहीं मिला है इसलिए केस की फाइल यहीं बंद की जाती है।”

अन्वय नाइक और कुमुद नाइक का शव बरामद होने से लेकर केस खुलने तक क्या-क्या हुआ?

ऑपइंडिया द्वारा एक्सेस किए गए पत्रों के मुताबिक़ ARG Pvt Ltd और अक्षता नाइक व आद्या नाइक (अन्वय नाइक की पत्नी और बेटी) के बीच भुगतान संबंधी विवाद सुलझाने के लिए तमाम बैठकें हुईं। फिर इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि क़ानूनी रूप से किस तरह ARG, CDPL को सीधे भुगतान कर सकती है जैसा कि पहले भी माँग उठाई गई थी लेकिन इस विवाद पर कोई समझौता नहीं हो पाया था।

पत्रों को खंगालने के बाद एक बात स्पष्ट हो जाती है कि यह मामला उतना भी सुलझा हुआ नहीं है जितना कोई भी मान कर चल रहा है। मामले से जुड़ी तमाम तरह की भ्रांतियाँ भी फैलाई गई लेकिन निम्न पत्रों को देखने के बाद सब दूर हो जाती हैं। 

पत्र संख्या 1- 12 अप्रैल 2019

12 अप्रैल 2019 को ARG ने CDPL को एक पत्र लिखा था जिसमें अक्षता नाइक (अन्वय नाइक की पत्नी) और आद्या नाइक (अन्वय नाइक की बेटी) और जाँच अधिकारी डीएस पाटिल का भी ज़िक्र था।

इस पत्र से इतना साफ़ है कि नाइक परिवार, CDPL के सब कांट्रेक्टर और ARG के बीच बकाया भुगतान पर चर्चा करने के लिए तमाम बैठकें ही चुकी थीं। इस पत्र में ARG ने नाइक परिवार को इस बात की जानकारी दी थी कि अभी काफी काम बचा हुआ है जिसे ARG द्वारा नियुक्त किए गए कॉन्ट्रैक्टर्स द्वारा स्वतंत्र रूप से ही पूरा किया जाएगा।

पत्र के मुताबिक़ बचे हुए कार्य की राशि को लेकर समझौते के बाद, ARG के मुताबिक़ CDPL पर  39,01,721 रुपए बकाया था। ARG का कहना था कि CDPL को राशि का भुगतान किया जा सकता है और इसके बाद पत्र में उन बैंकों का नाम लिखा हुआ था जिनके ज़रिए CDPL को भुगतान किया गया था। 

हैरानी की बात है कि पत्र में यह भी लिखा हुआ है कि CDPL ने अपने सब कांट्रैक्टर को भुगतान नहीं किया है और इसलिए वह ARG के पास गए ताकि उन्हें सीधे पैसे दिलवा सकें। 

आगे पत्र में निवेदन भी किए गए कि: 
– CDPL के अधिकृत कर्मियों के नामों की पुष्टि की जाए।
-अगर ARG द्वारा सब कॉन्ट्रैक्टर्स को CDPL की जगह पर बकाया भुगतान किया गया है तो इसकी पुष्टि हो।

CJM ने स्वीकारी 16 अप्रैल को क्लोजर रिपोर्ट

गौर करने वाली बात है कि इस संबंध में फाइल की गई क्लोजर रिपोर्ट की समरी अप्रैल 2019 में दायर हुआ था। इस क्लोजर रिपोर्ट को भी ऑपइंडिया ने एक्सेस किया जो बताती है कि जाँच अधिकारियों को अन्वय नाइक की मौत के पीछे रिपब्लिक टीवी एडिटर अर्णब गोस्वामी, नीतेश शारदा और फिरोज शेख का कोई लिंक नहीं मिला।

उन्हें अपनी पड़ताल में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले थे जो यह साबित कर सकें इन तीनों ने नाइक का जीवन असहनीय बना दिया था और इसके कारण उन्हें सुसाइड करनी पड़ी। रायगढ़ पुलिस ने इस केस में पड़ताल की थी और क्लोजर रिपोर्ट की समरी मजिस्ट्रेट के सामने अप्रैल 2019 में पेश किया था। इस रिपोर्ट में साफ था कि उन्हें आरोपितों के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिले जिसके कारण पुलिस चार्जशीट दाखिल नहीं की।

क्लोजर रिपोर्ट में लिखा था,

“उल्लेखित तीनों आरोपित अलग-अलग क्षेत्र और जगहों पर काम करते हैं और पड़ताल में इनमें बीच कोई संबंध उजागर नहीं हुआ है। पड़ताल में अब तक कोई सबूत नहीं मिले हैं कि सुसाइड नोट में शामिल तीनों आरोपितों के खिलाफ़ एक्शन लिया जाए कि इन्होंने अकेले या साथ में मृतक का जीवन इतना मुहाल कर दिया कि उसके पास सुसाइड करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा। इसलिए सबूतों के अभाव में यह ‘अंतिम’ समरी स्वीकारा जाए।” 

आगे इस रिपोर्ट में कहा गया,

“जाँच से खुलासा हुआ है कि पिछले 6-7 सालों में कॉन्कॉर्ड (अन्वय नाइक की कंपनी) आर्थिक नुकसान से गुजर रही थी, जिसके कारण अन्वय और उनकी माता मानसिक तनाव में थे। चूँकि उनकी माता भी इसी कंपनी की पार्टनर थी, तो अन्वय ने अपनी माँ को मौत के घाट उतारा और फिर खुद को फंदे पर लटका लिया।”

क्लोजर रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि concorde private limited ने अपने कई क्लाइंट्स के कामों को अधूरा छोड़ दिया था जिसमें वह क्लाइंट भी शामिल थे जिनका नाम सुसाइड नोट में लिखा गया।

इसके बाद रिपोर्ट में स्पष्ट बताया गया कि आरोपितों ने बाद में अधूरे कामों को खुद से करवाया और वेंडर्स को पुलिस के पास जमा किए दस्तावेजों के अनुसार कीमत दी। रायगढ़ पुलिस की इस रिपोर्ट को चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट ने अप्रैल 16, 2019 को स्वीकारा था।

इंडियन एक्सप्रेस ने भी concorde द्वारा भरे गए वार्षिक वैधानिक रिटर्न (annual statutory returns) को एक्सेस किया। डिटेल के मुताबिक, कंपनी पर वित्तीय वर्ष 2016 में 26.5 करोड़ का कर्ज था। इतना ही नहीं, कंपनी कुछ ही समय में निष्क्रिय हो गई थी और उस वर्ष के बाद से अपने वार्षिक रिटर्न भरना भी बंद कर दिया था। 

दूसरा पत्र: 11 जून 2019

11 जून को एक पत्र ARG की ओर से अक्षता नाइक और आद्या नाइक (Adnya Naik) व मृतक की कंपनी CDPL को भेजा गया। ये पत्र केवल स्पीड पोस्ट या कूरियर के जरिए नहीं भेजा गया बल्कि इसे अक्षता नाइक के व्हॉट्सएप पर भी भेजा गया।

इस पत्र में उन तमाम बैठकों का जिक्र था जो अक्षता नाइक, आद्या नाइक और सब कॉन्ट्रैक्टर्स के बीच हुई, जिन्हें ARG डायरेक्ट भुगतान करना चाहता था। एआरजी का कहना है कि उन्होंने बस एक हर्जाना पत्र (indemnity letter) माँगा था ताकि वे उप-ठेकेदारों को सीधे भुगतान कर पाएँ। लेकिन नाइक परिवार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।

यहाँ स्पष्ट कर दें कि अक्षता नाइक और आद्या नाइक ने ARG के साथ अन्वय नाइक के ‘वारिस’ के तौर पर मीटिंग की थी, उनका CDPL में कोई स्टेक नहीं था। ARG ने यह भी खुलासा किया कि CDPL ने अपने सब कॉन्ट्रैक्टर्स को रिपब्लिक स्टूडियों में काम करने के लिए कोई पेमेंट नहीं की थी और अब वह डायरेक्ट एआरजी से पेमेंट माँग रहे हैं। यही कारण था कि एआरजी ने सीडीपीएल से भविष्य के लिए एक हर्जाना पत्र माँगा था कि वह सीडीपीएल के बकाया को चुका कर सब सेटल कर लें।

एआरजी कहता है कि न सीडीपीएल ने और न ही वारिसों (अक्षता और आद्या नाइक) ने ARG के अनुरोध पर गौर किया। अपने पत्र में एआरजी ने कहा जब सीडीपीएल और नाइक दोनों ने एआरजी के अनुरोध को नहीं सुना तो उनके पास सीडीपीएल के अकॉउंट में फंड ट्रांसफर करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। उन्होंने बकाया चुकाया। अपने पत्र में एआरजी ने सीडीपीएल को 10 दिन का समय दिया कि वह लेनदार, ऋणदाता, अंशधारकों के निदेशकों से क्षतिपूर्ति प्रस्तुत करे, या राशि (कम टीडीएस) को CDPL के बैंक खाते में जमा किया जाएगा।

ध्यान रखने वाली बात यह है कि ARG ने जो राशि अदा करने के लिए कहा था वह काम नहीं करने के लिए कटौती के बाद 39,01,721 रुपए थी। एआरजी इससे पहले ही 5.20 करोड़ रुपए से अधिक की सीडीपीएल का भुगतान कर चुका था।

अब दिलचस्प प्रश्न यह है कि जब ARG पहले ही सीडीपीएल को 5.20 करोड़ रुपए दे चुका था, तब आखिर क्यों CDPL ने अपने वेंडर्स को उनका बकाया नहीं चुकाया? क्यों सीडीपीएल ने हर्जाना पत्र नहीं जारी किया?

अगर नाइक भी चाहता था कि एआरजी सभी विक्रेताओं का भुगतान करे जिसे सीडीपीएल 5 करोड़ मिलने के बाद भी नहीं कर पाई तो हो सकता है वह इसी अवसर से खुश हो और हर्जाना देकर बकाया चुकाना चाहता हो, जो कि न ही बाद में वारिस के द्वारा किया गया और न ही सीडीपीएल के जरिए हुआ।

तीसरा पत्र, 15 जून 2019: अक्षता नाइक ने गुस्से में एआरजी को भेजा पत्र

15 जून को अक्षता नाइक ने  ARG Outlier Media Private Limited को पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने निम्नलिखित आरोप लगाए:- अक्षता नाइक ने दावा किया कि उनके एआरजी के साथ कॉन्ट्रैक्ट में एक साल के डिफेक्ट लायबिलिटी के लिए 5% रिटेंशन रेट थी। उन्होंने कहा कि अप्रैल 2018 में एक साल पूरा होना था और इसलिए एआरजी गलत या फिर अधूरे कार्यों के लिए किसी भी राशि को रोक या घटा नहीं सकता है। इसके बाद उन्होंने कहा कि कंपनी को 88 लाख रुपए चुकाए जाने हैं न कि एआरजी द्वारा कैलकुलेट किए गए 39.01 लाख रुपए।

– उन्होंने कहा कि ARG कंपनी (CDPL) को भुगतान करना चाहती है न कि वारिसों (नाइक की पत्नी और बेटी) को, ये जानते हुए कि अकॉउंट को वह ऑपरेट नहीं कर सकते क्योंकि कंपनी के दोनों निदेशकों ने अर्णब गोस्वामी द्वारा उकसाए जाने के बाद आत्महत्या कर ली है, जिसके लिए उनके ख़िलाफ अलीबाग पुलिस थाने में शिकायत भी दर्ज हुई है।

-आगे उन्होंने अर्णब पर आरोप लगाया कि वही सीडीपीएल से हर्जाना माँग रहे हैं, जबकि वह जानते हैं कि कंपनी के निदेशकों के मरने के बाद कोई भी उन्हें उसका भुगतान नहीं कर सकता।

-अक्षता ने अर्णब पर घटिया मंशा रखने का आरोप मढ़ा और सीडीपीएल के साथ डीफ्रॉड बात करने की बात कही।

  • – उन्होंने अपने पत्र में कहा, “आपको मालूम था कि मैं और बेटी दुख और पीड़ा से निकल कर किस दबाव से गुजर रही हैं, आपने तब तक हमें किसी प्रकार का भुगतान करने से मना कर दिया, जब तक अपने उन ठेकेदारों के दबाव के चलते हम आपके पास नहीं आए, जिन्हे मजदूरों को भुगतान करना था। जब हमने आपको बताया तब आपको एहसास हुआ कि मजदूरों का पैसा तो देना होगा क्योंकि कानून के तहत आप इससे पीछा नहीं छुड़ा सकते। आपको एहसास हुआ कि आपके पास स्थिति से भागने का कोई विकल्प नहीं है और इसीलिए आपने जानबूझ कर ऐसा पत्र लिखा ताकि आप अपने गुनाहों से बच सकें।”

-अक्षता ने आगे कार्रवाई करने पर ARG को मुकदमा चलाने की धमकी भी दी।

अब यहाँ आवश्यक है कि हम अक्षता नाइक की भावनाओं में बहने की बजाय कानून को समझें। सबसे पहले तो सीडीपीएल एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है। इनका अंत निदेशकों की मौत के साथ नहीं होता। अक्षता बार-बार कहती हैं कि सीडीपीएल भुगतान रिसीव नहीं कर सकता और हर्जाना पत्र भी नहीं जारी कर सकता इसलिए ठेकेदारों को प्रत्यक्ष भुगतान किया जाए, जबकि वास्तविकता में यह सत्य नहीं है। 

पूरे केस में में जहाँ दोनों निदेशकों की मौत हो चुकी है। उस समय इस पूरे मामले से निपटने के दो तरीके हैं।

पहला- दोनों माँ-बेटी को अन्वय नाइक का कानूनी रूप से वारिस बनने के लिए कंपनी को पत्र लिखना होगा और साबित करना होगा कि वह कानूनी रूप से उनकी वारिस हैं। इसके बाद कंपनी अन्वय नाइक और उनकी माँ के शेयर्स को उन्हें ट्रांसफर करेगी। अब जैसे ही ट्रांसफर प्रोसेस पूरा होगा, उन्हें ईजीएम (एक्सट्रा ऑर्डिनरी जनरल मीटिंग) बुला कर दो नए निदेशकों को नियुक्त करना होगा। फिर जब भी निदेशक नियुक्त होंगे, वह बैंक जाकर अकॉउंट में मौजूद सारे पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।

दूसरा- अगर कंपनी पर बहुत ज्यादा उधार है और दोनों माँ-बेटी इसे अपने सिर नहीं लेना चाहती, तो वह चुप बैठ जाएँ, जब भी उधार माँगने वाले कोर्ट में जाएँगे तो वह स्पष्ट कह सकती है कि उनका इस कंपनी में कोई लेना देना नहीं है न उनके कोई स्टेक हैं। अगर इसके बाद भी कंपनी के पास बकाया राशि चुकाने के लिए संपत्ति नहीं है, तो अदालत उदाहरण के लिए आरओसी को कंपनी अकॉउंट खोलने का आदेश दे सकती है और कंपनी से जुड़े लोगों से पैसे लेकर सभी बकाया पैसे चुका सकती है।

कुल मिलाकर किसी भी स्थिति में आद्या नाइक या अक्षता नाइक की यह माँग की सारा पैसा उन्हें मिले न कि कंपनी को बिलकुल जायज नहीं है। अगर इन लोगों ने उक्त तरीकों में से पहला तरीका अपनाया होता तो पैसे का मामला सुलझ जाता और दूसरा रास्ता अपनाया होता तो इन्हें उधारी से मुक्ति मिल गई होती, बस इसके लिए उन्हें कंपनी संपत्ति को त्यागना पड़ता।

अक्षता नाइक ने इनमें से कोई रास्ता नहीं अपनाया। उन्होंने बस अपने अकॉउंट में पैसे माँगे या एआरजी से ठेकेदारों को बकाया चुकाने को कहा, जो कि कानूनी रूप से गलत है। उनका इस प्रकार कंपनी में कोई अधिकार न होने के बावजूद भी निजी अक़ॉउंट में पैसे माँगना उनकी मंशा पर सवाल उठाता है।

चौथा पत्र, 6 नवंबर 2019: ARG ने अक्षता नाइक के दावों पर किया पलटवार

4 पेज के पत्र में ARG ने बिंदुवार तरीके से अक्षता नाइक के आरोपों पर जवाब दिया। इस पत्र में उन्होंने स्पष्ट किया कॉन्ट्रैक्ट एआरजी और सीडीपीएल के बीच था कोई तीसरी पार्टी (दोनो माँ-बेटी) भुगतान की माँग नहीं कर सकती।

इसमें कहा गया कि दोनों निदेशकों के निधन के बाद नए निदेशक नियुक्त करने की प्रक्रिया नहीं अपनाई गई। कई अनुरोध के बाद भी दोनों माँ-बेटी ने शेयरहोल्डर या कंपनी का निदेशक बनने में दिलचस्पी नहीं दिखाई।

उन्होंने अर्णब गोस्वामी पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए भी लताड़ा। उन्होंने कहा कि सुसाइड नोट में तीन लोगों का नाम है सिर्फ अर्णब का नहीं और दूसरा इस मामले में सबूतों के अभाव में केस बंद हो चुका है।

उन्होंने Defect liability period पर अक्षता के सभी दावों को नकारा और कहा कि उन दोनों को कॉन्ट्रैक्ट की जानकारी नहीं है क्योंकि वह उस समय मौजूद नहीं थी। इसके बाद कई आरोपों को एआरजी खारिज करता गया।

इसमें कहा गया कि अन्वय नाइक और कुमुद नाइक के अलावा ARG की कोई बैठक कभी भी अक्षता या आद्या में से किसी के साथ नहीं हुई इसलिए वह सिर्फ सीडीपीएल को भुगतान करेंगे।

कंपनी ने उन आरोपों को भी नकारा जिसमें दोनों की ओर से कहा गया कि ठेकेदारों की सख्ती के कारण एआरजी ने उनके साथ मीटिंग की। कंपनी बताती है कि उन्हें खुद उप ठेकेदारों ने बताया कि दोनों माँ बेटी इस मुद्दे को खुद स्टेक होल्डर और निदेशक बनके सुलझाना चाहती हैं।

ARG और CDPL के इन पत्रों से कुछ सवाल उठते हैं?

सभी तथ्यों को देखते हुए यह साफ होता है अन्वय नाइक की सुसाइड मामले में एफआईआर पहले दिन हो गई थी, फिर आखिर आद्या ने ये क्यों कहा कि पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने से मना कर दिया क्योंकि शायद वह अर्णब का नाम सुनकर डर गए थे? 

वास्तविकता यह है कि घटना वाले दिन पुलिस ने रिपब्लिक टीवी आकर इस मामले पर जानकारी दी थी और बाद में ARG के अधिकारियों ने सारी जानकारी पुलिस को दी थी। जिसके चलते आद्या नाइक द्वारा कारवां मैग्जीन को दिए इंटरव्यू और अक्षता नाइक के कई मौकों पर दिए बयान अपने आप झूठे साबित होते हैं।

गौरतलब है कि अपने पूरे साक्षात्कार में कारवां मैग्जीन के साथ आद्या ने सिर्फ अर्णब गोस्वामी पर चर्चा की थी। उन्होंने दावा किया था कि अर्णब ने अन्वय को धमकाया कि अन्वय चाहे जो करलें वह उन्हें पैसे नहीं देंगे। आद्या ने दावा किया था कि देय राशि 83 लाख रुपए से ज्यादा है लेकिन उसके पिता ने अर्णब गोस्वामी की धमकियों से तंग आकर उसे 83 लाख कर दिया।

5 नवंबर 2020 को दिए इस इंटरव्यू से ठीक एक साल पहले अक्षता नाइक ने एआरजी को पत्र लिखा था। दिलचस्प बात यह है कि इसमें कहीं भी अर्णब की धमकियों का उल्लेख नहीं था और न ही इस बात का की अर्णब को 83 लाख से ज्यादा पेमेंट देनी थी।

इतना ही नहीं इसमें ये तक नहीं लिखा था कि अर्णब गोस्वामी अन्वय नाइक को पैसे देना नहीं चाहते थे। वहीं, आद्या का कहना है कि वो साल 2017 के अप्रैल से पैसों की माँग कर रही हैं, लेकिन उन्हें अभी तक पैसे नहीं मिले।

आद्या का दावा है कि उन्हें मई 2020 तक नहीं पता था कि मामले में क्लोजर रिपोर्ट दर्ज हो चुकी है। ऐसे ही अक्षता भी कई वीडियोज में कह चुकी हैं कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। मगर, यदि उक्त पत्र देखें जिसमें ARG ने अपने ऊपर लगे आरोपों का पलटवार किया है तो पता चलेगा कि क्लोजर रिपोर्ट का जिक्र उसमें साफ तौर पर है। तो फिर ऐसे झूठे दावे क्यों किए जा रहे हैं?

कानूनी तौर पर जब अक्षता नाइक और आद्या नाइक के पास सीडीपीएल का स्टेकहोल्डर या डायरेक्टर बनने का मौका है तो आखिर वह उसमें दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाती?

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक कंपनी साल 2016 के वित्तीय वर्ष में घाटे में है। क्लोजर रिपोर्ट भी कहती है कि कंपनी की स्थिति 7-8 साल से ठीक नहीं है तो क्या अक्षता नाइक स्टेक होल्डर या निदेशक पद न अपना कर उधारी से बचना चाहती हैं लेकिन देयदाताओं से भुगतान की माँग करके कंपनी पर अधिकार चाहती है?

ये कुछ सवाल है जिनका उत्तर देना इस मामले में आवश्यक है। इसके अलावा दो स्थितियाँ हैं यदि अक्षता नाइक और आद्या नाइक के कहने पर ARG उन्हें भुगतान करनी बात पर सहमति दे देता?
– यदि एआरजी माँ-बेटी की निजी अकॉउंट में पैसा भेजता तब भी सीडीपीएल का अकॉउंट एक्टिव रहता है और वो कानूनी रूप से आकर दावा कर सकते थे कि एआरजी उन्हें पैसा दे।
– एक अन्य स्थिति में, एआरजी ने यदि सब कॉन्ट्रैक्टर को पेमेंट किया होता बिना सीडीपीएल के प्रतिनिधियों के हर्जाना पत्र के तो अक्षता नाइक और आद्या नाइक तब कंपनी के शेयरधारक / निदेशक बन सकते थे और माँग कर सकते थे कि एआरजी अब सीडीपीएल का भुगतान करें क्योंकि सीडीपीएल ने उन्हें अपनी ओर से उप-ठेकेदारों को भुगतान करने के लिए अधिकृत नहीं किया था।

अर्णब गोस्वामी को कैसे पकड़ा गया इस केस में?

26 मई को अनिल देशमुख ने इस मामले को ओपन करवाया और सीआईडी को इसकी जाँच दी। खास बात यह है कि इससे कुछ दिन पहले ही रिपब्लिक टीवी पालघर के कारण कॉन्ग्रेस के निशाने पर आया था जिसके कुछ दिन में ही अक्षता नाइक ने भी वीडियो जारी कर दी और दावा किया उनके मामले में एफआईआर नहीं हुई थी और क्लोजर रिपोर्ट का भी उन्हें नहीं मालूम।

https://twitter.com/AnilDeshmukhNCP/status/1265290195911553025?ref_src=twsrc%5Etfw https://twitter.com/INCMaharashtra/status/1257723267453825024?ref_src=twsrc%5Etfw

मामला खुलने के महीनों बाद 4 नवंबर को अर्णब को उनके घर से खींचते हुए थाने ले जाया गया। जहाँ बाद में न्यायाधीश ने उन्हें पुलिस हिरासत में देने की बजाय ज्यूडिशियल कस्टडी में रखा। इस दौरान 9 चीजें गौर करने लायक हैं:

  1. इस मामले में दायर की गई समरी रिपोर्ट अब भी वही है।
  2. पुलिस ने अर्णब के खिलाफ़ बिना कोर्ट परमिशन के कार्रवाई की।
  3. अर्णब की गिरफ्तारी गैरकानूनी थी।
  4. अगर अन्वय नाइक पर दबाव बनाया जा रहा था तो आखिर उनकी माँ ने क्यों सुसाइड की?
  5. अन्वय नाइक की मौत और आरोपितों के बीच कोई लिंक नहीं मिला।
  6. ऐसे कोई सबूत नहीं है जो साबित करे कि पहले की जाँच अधूरी है।
  7. आरोपितों के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं है।
  8. सारे सबूत केवल शिकायतकर्ताओं से ही एकत्रित किए गए थे।
  9. पुलिस आत्महत्या में आरोपितों की कथित भूमिका का उल्लेख करने में विफल रही है।
Nupur J Sharma: Editor-in-Chief, OpIndia.