अर्नब गोस्वामी से पूछताछ करने वाला पुलिसकर्मी कोरोना+, सुप्रीम कोर्ट से मिली 3 हफ्ते के लिए राहत

अर्नब गोस्वामी के पीछे हाथ धो कर पड़ी है महाराष्ट्र सरकार

पत्रकार अर्नब गोस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने मुंबई के बांद्रा में जमा हुई मजदूरों की भीड़ को सांप्रदायिक रंग दिया। महाराष्ट्र पुलिस ने अपनी एफआईआर में ये आरोप लगाया है। सोमवार (मई 11, 2020) को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई।

अर्नब गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त की है कि बांद्रा मामले में उन पर दर्ज एफआईआर रद्द की जाए। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि ‘रिपब्लिक टीवी’ के संस्थापक अर्नब गोस्वामी जाँच में हस्तक्षेप कर रहे हैं, ऐसा करने से उन्हें रोका जाए।

अर्नब गोस्वामी की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे पेश हुए। ये एफआईआर ‘रजा एजुकेशन वेलफेयर सोसाइटी’ के अबू बकर शेख ने दायर की थी। उनका कहना है कि अर्नब गोस्वामी ने बांद्रा में मजदूरों के जुटान पर सांप्रदायिक डिस्टर्बेंस उत्पन्न करने की कोशिश की।

ये घटना अप्रैल 16 की है, जिसके बाद अर्नब के खिलाफ कई और एफआईआर भी दर्ज कराए गए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह ने इस मामले की सुनवाई की। हरीश साल्वे ने इस मामले में जमानत की माँग की। उन्होंने कहा कि पुलिस ने अर्नब को जिस तरह से नोटिस देकर बुलाया, उससे लगता है कि वो उन्हें जानबूझ कर परेशान कर रही है। उनके साथ 12 घंटों तक पूछताछ हुई

वकील साल्वे ने कोर्ट से कहा कि अर्नब से पूछताछ के दौरान भी जो सब पूछा गया, वो चिंताजनक है। उन्होंने पूछा कि पुलिस ऐसा क्यों आरोप लगा रही है कि अर्नब गोस्वामी ने कुछ लोगों की मानहानि की है? जिन दो पुलिसकर्मियों ने अर्नब गोस्वामी से पूछताछ की, उनमें कोरोना के लक्षण थे। उनमें से एक तो कोरोना पॉजिटिव भी पाया गया है।

हरीश साल्वे ने कहा कि एक न्यूज़ चैनल को ख़बर दिखाने का अधिकार है और इससे दंगे हो जाएँगे, ये बातें गलत हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्नब गोस्वामी इन एफआईआर को रद्द करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट में जा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने इसीलिए हस्तक्षेप किया था क्योंकि देश भर में कई एफआईआर हो गए थे।

वकील साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट बेंच से कहा कि उन एफआईआर को देख कर क्या ऐसा लगता है कि अर्नब से 12 घंटों तक पूछताछ होनी चाहिए? उन्होंने कहा कि पालघर में जिस तरह की बातें सामने आई है, ये मामला सीबीआई को दिया जाता है तो इसमें कोई समस्या नहीं है।

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इस बात से विपक्षी वकील कपिल सिब्बल भड़क गए। उन्होंने कहा कि सीबीआई को मामला सौंपने का मतलब तो ये होगा कि आपके हाथ में ही जाँच दे देना। सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सिब्बल के इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई। अर्नब गोस्वामी की तरफ से दलील पेश की गई कि सिब्बल का बयान ही ये साबित करता है कि ये केंद्र और राज्य सरकारों की लड़ाई है, जिसमें उन्हें फँसा दिया गया है। इसीलिए, सीबीआई को मामला दिया ही जाना चाहिए।

हरीश साल्वे ने कहा कि कम्पनी के सीईओ से पूछताछ की गई। उनसे पूछा गया कि गेस्ट लिस्ट कौन डिसाइड करता है, कम्पनी की आय-व्यय को लेकर सवाल किए गए। साल्वे ने पूछा कि इस मामले से सीईओ का क्या लेना-देना है? सुप्रीम कोर्ट ने अंत में अर्नब गोस्वामी पर किए गए एफआईआर पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई से 3 हफ्ते के लिए राहत प्रदान की और उन्हें ट्रायल कोर्ट या हाईकोर्ट में जमानत के लिए याचिका दाखिल करने का निर्देश दिया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया