शुक्रवार (14 अक्टूबर, 2022) की रात मुझे एक ईमेल मिला था। इसका विषय ‘गार्जियन रिपोर्टर आइना जे खान’ था। इस ईमेल में ऑपइंडिया अंग्रेजी की संपादक, निरवा मेहता और मुझे (ऑपइंडिया की प्रधान संपादक नूपुर जे शर्मा) को टैग किया गया था।
इस ईमेल में हमें ‘वेबसाइट, व्यक्तिगत और ऑफिशियल हैंडल द्वारा आइना जे खान के खिलाफ ऑनलाइन हमलों को रोकने’ के लिए कहा गया था। इस ईमेल का सीधा अर्थ यह था कि हमारे पास आइना को इस्लामवादी कहने का कोई आधार नहीं था और हमारे ऐसा करने से उसे किसी तरह का नुकसान हुआ था। इस लेख में, गार्जियन द्वारा भेजे गए मेल को लेकर हमारी प्रतिक्रिया क्या है इस बारे में बताया गया है।
मैं और मेरी टीम और पूरी तरह से खुश थे। हमने इस मेल का जवाब बेहद विनम्रता से यह पूछते हुए दिया कि ऑपइंडिया के किस लेख में आइना जे खान पर ‘हमला’ किया गया है। हमने यह भी सोचा कि शीला पुलहम द्वारा भेजे गए इस ईमेल में आइना को क्यों टैग नहीं किया गया। वास्तव में, हम यह भी सोच रहे थे कि हो सकता है कि यह ईमेल किसी हैकर द्वारा किया गया होगा, जिसने डोमेन के साथ छेड़छाड़ करते हुए ईमेल भेजा हो। इसके बाद जब हमने ट्वीट किया कि इस ईमेल का जवाब बाद में देंगे।
तब, गार्जियन कम्युनिकेशन हैंडल ने ईमेल के स्क्रीनशॉट के साथ नीरवा मेहता को जवाब दिया। इस ट्वीट में गार्जियन ने लिखा कि वह केवल ‘अनुरोध कर रहे थे कि हम उनके पत्रकार पर हमला न करें’।
Dear Ms. Mehta – in the interests of transparency for your followers, here is the email you mention. We simply ask you (again) politely to refrain from making personal attacks on our reporter on your site and on social media https://t.co/qi0SbFRWOS pic.twitter.com/4qXVUrbSvD
— Guardian Comms (@GuardianComms) October 14, 2022
यहाँ यह बताना जरूरी है कि इस लेख को लिखते समय तक हमें, शीला पुलहम से हमारे द्वारा पूछे गए प्रश्न पर कोई सटीक जवाब नहीं मिला है। हम यह जानना चाहते थे कि ऑपइंडिया के किस लेख ने आइना जे खान पर ‘हमला’ किया और हमें भेजे गए मेल में आइना को टैग क्यों नहीं किया गया। दरअसल, अब यह जरूरी हो गया है कि हम इस मेल का खुले तौर पर जवाब दें, क्योंकि ईमेल का स्क्रीनशॉट ‘द गार्जियन’ द्वारा शेयर करके ही इस पूरी बात को सामने लाया गया है।
हमें जो ईमेल भेजा गया था, उसका टेक्स्ट नीचे बोल्ड में है और उसके बाद, शीला पुलहम के मेल पर हमारा जवाब…
प्रिय नूपुर जे शर्मा
शुरुआत में मुझे काफी सुखद आश्चर्य हुआ कि आपने मेरा नाम सही तरीके से लिखा और उस पर “जे” जोड़ा। ‘द गार्जियन ‘और आइना खान की पत्रकारिता का समर्थन करने वाले कई व्यक्तियों ने लगातार मेरी मौत के लिए ‘दुआएँ’ की हैं। साथ ही, मुझे नूपुर शर्मा समझकर ‘सिर कलम’ करने की धमकी दी है। आपके द्वारा भेजे गए पूरे ईमेल का जवाब देने से पहले, मैं बिना किसी पूर्वाग्रह के आइना सहित आपकी पूरी संपादकीय टीम को इसके लिए बधाई देना चाहती हूँ। बेशक, जिस तरह से आपने नूपुर शर्मा को कवर किया और उनका सिर कलम करने की धमकियों की खबरों को प्रस्तुत किया है, उसे देखकर मुझे अब ऐसा लगता है कि मेरा भी वही हश्र होने वाला है, क्योंकि अब आपने पूरा ध्यान मुझ पर लगाया हुआ है।
मैं यह अनुरोध कर रही हूँ कि ऑपइंडिया के प्रकाशन और आधिकारिक तथा व्यक्तिगत सोशल मीडिया चैनलों के माध्यम से गार्जियन रिपोर्टर आइना जे खान पर हो रहे ऑन लाइन हमलों को रोक दीजिए।
आपने इस मेल में जिस तरह से ‘अनुरोध’ शब्द का उपयोग किया है, वह सिर्फ यह दिखाने के लिए है कि आप अनुरोध कर रहे हैं और बेहद विनम्र हैं। हालाँकि यह एक तरह से पर्दा है, (हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। लेकिन ऐसा न हो कि आपकी ‘पत्रकार’ आइना खान “पर्दा” शब्द को उसकी पहचान के खिलाफ एक और “इस्लामोफोबिक हमला करार दें) जिसका उपयोग पूर्वाग्रहों, निराधार आरोपों को छिपाने के लिए किया गया है।
सबसे पहले, मेरी संपादक, निरवा मेहता ने आपके ईमेल का जवाब दिया। आपको हमारे प्रकाशन, और आधिकारिक तथा व्यक्तिगत हैंडल के माध्यम से अपने पत्रकार के खिलाफ इस कथित ‘हमले’ के सबूत प्रस्तुत करने के लिए कहा। हालाँकि, आपने अब तक इसका जवाब देने की कोशिश नहीं कि। 200 साल पुराने मीडिया संगठन के रूप में, मुझे लगता है कि आपको यह पता होगा कि किसी की रिपोर्ट की आलोचना करना किसी भी तरह से रिपोर्टर के खिलाफ ‘हमला’ नहीं माना जा सकता है।
बेहद संवेदनशील मुद्दे की रिपोर्ट करने में साफतौर से पूर्वाग्रह दिखाने वाला एक लेख आपने छापा, जबकि सच्चाई ये थी कि ब्रिटिश हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमला किया गया था। लेकिन, उसे ऐसा दिखाना की ‘हिंदुत्व की भीड़’ ने हमला किया है, या फिर यह कहना कि हमलों के लिए राष्ट्रवादी हिन्दू ही जिम्मेदार है – पूरी तरह से तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने जैसा है। अब, यदि ऑपइंडिया ने इसकी आलोचना की है तो क्या इसे ‘द गार्जियन’ द्वारा हमला माना जाएगा?
मुझे लगता है कि लीसेस्टर हिंसा के मुद्दे पर ‘द गार्जियन’ की रिपोर्टर ने गलत तरीके से पूरी घटना को प्रस्तुत करने की कोशिश की है। लीसेस्टर में तनाव की शुरुआत से 28 अगस्त को भारत-पाकिस्तान मैच के बाद हुई एक झड़प से हुई थी। इस झड़प की शुरुआत तब हुई जब एक सिख ने भारतीय ध्वज (तिरंगे) का अपमान किया था, जिसके बाद हिंदुओं की उससे झड़प हुई थी।
इस घटना के बाद, 4 सितंबर को इस्लामवादियों की भीड़ ने हिंदुओं, उनके घरों और उनके प्रतिष्ठानों पर हमला किया था। इस हमले के बाद, अल्पसंख्यक ब्रिटिश हिंदू समुदाय ने उनके खिलाफ हुई हिंसा को लेकर विरोध मार्च निकालने का फैसला किया था। इसके बाद, 17 सितंबर को, इस्लामवादियों द्वारा लगातार फेक खबरों और दुष्प्रचार के कारण, हिंदुओं पर फिर से हमला किया गया। इस हमले के लिए हिंदुओं के घरों में लगे धार्मिक प्रतीक चिन्हों से पहचान कर हमले की योजना बनाई गई थी।
गौरतलब है कि फेक खबरों के सामने आने की घटनाएँ अगस्त में तब शुरू हो गई थीं जब लीसेस्टर में मुस्लिम संगठनों ने पुलिस से शिकायत करते हुए दावा किया था कि हिंदुओं ने ‘मुस्लिम मुर्दाबाद’ जैसे नारे लगाए थे। इसे मुद्दे को पहले तो लीसेस्टर पुलिस ने गलत तरीके से आगे बढ़ाया और फिर 1 सितंबर को खारिज कर दिया। जहाँ तक ऑपइंडिया का संबंध है, हमारा परिचय आइना खान से तब हुआ जब हम लीसेस्टर हिंसा की विस्तृत कवरेज शुरू ही करने वाले थे। 19 सितंबर को, जब हिन्दुओं पर लगातार हमले हो रहे थे और अल्पसंख्यक हिन्दू समुदाय खतरे में था तब आइना खान लीसेस्टर से रिपोर्ट कर रहीं थीं।
इस रिपोर्ट के दौरान, आइना खान ने दावा किया कि उसने एक ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ का इंटरव्यू लिया है, उस व्यक्ति ने हेलमेट पहना हुआ था और उसके पास भारतीय ध्वज (तिरंगा) था। आईना खान ने दावा किया था कि उस व्यक्ति ने खुद को आरएसएस समर्थक बताया था और कहा कि आरएसएस तानाशाह मुसोलिनी से प्रेरित था। हालाँकि, इस दावे का समर्थन करने के लिए उसके पास कोई सबूत नहीं है। वास्तव में, कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के पिता, स्टेफानो माइनो मुसोलिनी की सेना में एक पैदल सैनिक के रूप में कार्य करते थे।
आइना खान के बारे में हमारी पहली रिपोर्ट का एक अंश यहाँ दिया गया है:
आइना खान ने दावा किया था कि हेलमेट पहनने वाले व्यक्ति ने कहा कि ब्रिटेन में मुस्लिम एक समस्या हैं और उसने रॉदरहैम ग्रूमिंग गैंग के बारे में बात की। उस व्यक्ति द्वारा ‘मुस्लिमों’ को एक समस्या कहने का कोई वीडियो क्लिप या सबूत नहीं है। हालाँकि, सच्चाई यह है कि रॉदरहैम ग्रूमिंग गैंग मामले में कई मुस्लिम मुख्य आरोपित हैं, कोई नहीं देखता कि इसमें गलत क्या है।
आइना को ऑपइंडिया द्वारा अब तक इस्लामवादी के रूप में संबोधित नहीं किया गया है। हमने केवल यह बताया है कि उसकी रिपोर्ट एकतरफा और बिना सबूत के है। आइना खान द्वारा कई अन्य झूठे प्रचार भी किए गए हैं। इनमें आरएसएस और हिंदुओं के खिलाफ एक अजीबोगरीब हमला भी शामिल था। चूँकि, आइना सभी आलोचनाओं को इस्लामोफोबिया के रूप में दिखाने की कोशिश करती हैं, ऐसे में उनका हिंदूफोबिया तब सामने आया जब उन्होंने कहा कि ‘जय श्री राम’ के नारे लगाने से उनके द्वारा की जा रही बातचीत ‘बहस’ में बदल गई। वह ‘जय श्री राम’ के नारे को ‘भारत में चरमपंथियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले हिंदू मंत्र’ के रूप में दिखाती हैं। यही नहीं, आइना यह भी आरोप लगाती है कि जय श्री राम अब मुस्लिम विरोधी घृणा का पर्याय बन गया है।
एक संगठन को फासीवादी के रूप में, हिंदुओं को चरमपंथी और हिंदू धार्मिक मंत्रों को युद्ध के रूप में प्रदर्शित करते हुए, आइना हमेशा की तरह इस्लामोफोबिया का रोना रोती है। वह यह बताती है कि लीसेस्टर हिंसा की सच्चाई सामने लाने की कोशिश के दौरान उसके साथ एक ‘स्थानीय मुस्लिम कार्यकर्ता’ माजिद फ्रीमैन भी था। लीसेस्टर के बारे में आइना ने किस तरह से झूठ बोला है वह आप यहाँ पढ़ सकते हैं।
यही वह समय था जब ऑपइंडिया ने माजिद फ्रीमैन की तलाश शुरू की। इस तलाश में हमने पाया कि माजिद ने हिंदुओं के खिलाफ हिंसा फैलाने के लिए फेक खबरों का उपयोग किया था। यह हमारे लिए बेहद निराशा की बात है कि जिस व्यक्ति को आईएसआईएस/अल कायदा के प्रति सहानुभूति थी, वही लीसेस्टर के गार्जियन के कवरेज का मार्गदर्शन कर रहा था। आतंकी संगठनों के साथ सीरिया की यात्रा करने वाले आतंकी हमदर्द माजिद फ्रीमैन ने एक मस्जिद पर हिंदुओं द्वारा हमला किए जाने के बारे में, एक हिंदू व्यक्ति द्वारा एक मुस्लिम लड़की के अपहरण के प्रयास के बारे में तथा कुरान के पन्नों को फाड़ने के बारे में झूठी खबरें फैलाने के अलावा ऐसी ही अनेकों फेक न्यूज फैलाई थीं। माजिद ने मुस्लिमों को हिंदुओं पर हमला करने के लिए इकट्ठा होने का आह्वान किया था।
एक आतंकवादी जो आतंकी संगठनों से जुड़ा हुआ है, जिसने हिंदुओं के खिलाफ हमलों को उकसाया, वह ‘कार्यकर्ता’ था। यही ‘कार्यकर्ता’ गार्जियन की ‘पत्रकार’ आइना खान का मार्गदर्शक था। जब पीड़ितों को अपराधियों के रूप में दिखाया जाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वास्तव में पत्रकारिता नहीं बल्कि ‘एजेंडेबाजी’ हो रही है। यही नहीं, एक मंदिर में हुए हमले के बाद उसने एक इमाम की तारीफ भी की थी, जहाँ हिंदू मंदिर के बाहर इस्लामी भीड़ ने झंडा तोड़ कर फेंक दिया था और एक झंडे को जला दिया गया था। हालाँकि, आइना ने हिंदू मंदिरों पर हमला करने वालों का जिक्र नहीं किया था। लेकिन, यह हर कोई जानता है कि इस्लाम में मूर्ति पूजा हराम है।
अब, ‘द गार्जियन’ की शीला पुलहम के ईमेल के अनुसार, व्यक्तिगत और आधिकारिक हैंडल से कथित ‘हमलों’ पर आते हैं…
प्रिय पुलहम, मैं इस बात से अनजान हूँ कि आइना खान ने आपको किस हद तक जानकारी दी है। हालाँकि, आपको पता होना चाहिए कि आपकी ‘पत्रकार’ ने हिंदुओं को लेकर दोहरी मानसिकता और झूठ फैलाने के 20 दिन बाद आपको इस बारे में बताया है। पब्लिश किए गए लेख में, हमने यह बताया था कि कैसे आइना खान हिंदुओं के खिलाफ कुछ भी मनगढ़ंत लिख रही हैं। क्योंकि, वह जानती हैं कि ऐसा करने के बाद भी वह सुरक्षित रहेंगीं। वहीं, यदि वह ठीक ऐसा ही अपने धर्म के लोगों के खिलाफ कुछ भी लिखें तो क्या वह सुरक्षित रह पाएँगीं? ईरान में जो कुछ हो रहा है, उसे देखते हुए, मुझे यकीन है कि आप यह देख रही होंगी कि आइना खान हिंदुओं के खिलाफ खुलकर लिख रही है लेकिन क्या वह ईरान में हो रहे अत्याचार के खिलाफ कुछ भी लिखकर सुरक्षित रह सकती है।
इसके अलावा, मुझे आश्चर्य है कि क्या आपने (पुलहम ने) अपनी ‘पत्रकार’ से यह पूछा कि उन्होंने किस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि वे छात्राएँ जो स्कूलों में हिजाब लगाने का विरोध करते हुए और यूनिफॉर्म नियमों का उल्लंघन कर रहीं थीं उन्हें मजहबी क्यों कहा जा रहा है। वहीं, हिन्दू सिर्फ भीड़ हो जाते हैं। क्या यह गार्जियन की संपादकीय नीति है?
यही नहीं, क्या आपने आइना खान से यह भी पूछा है कि हिजाब न पहनना नग्नता कैसे है? और अगर यह वास्तव में उनके विचार हैं तो उन्हें उनके ऐसे विचारों के लिए इस्लामवादी कहा जाता है, तो यह ‘ऑनलाइन हमला”‘ कैसे होता है? दरअसल, आइना खान ने एक रिपोर्ट में हिजाब न पहनने वालों को ‘नग्न’ कहा था।
क्या यह गार्जियन की संपादकीय स्थिति है कि उनके पत्रकार अपनी पत्रकारिता के दौरान किसी को कुछ भी कह सकते हैं। लेकिन, जब उनकी कथित पत्रकारिता की आलोचना हो तो वह इसे ‘हमला’ करार देते हुए ‘इस्लामोफोबिया’ का रोना शुरू कर दें। स्पष्ट रूप से, एक संपादक के रूप में, क्या आपको नहीं लगता है कि हिंदुओं को सभी प्रकार के लेबलों के साथ ब्रांडेड किया जा रहा है। यह पहली बार नहीं है जब गार्जियन ऐसा कुछ कर रहा हो। लेकिन, यदि कोई आपकी कथित पत्रकारिता के घटिया स्तर की आलोचना कर दे तो आप उसे हमला करार देंगीं।
आपको लगता है कि आइना खान पर ‘इस्लामवादी’ होने या फिर पक्षपात पूर्ण पत्रकारिता करने का आरोप नहीं लगाना चाहिए?
आइना खान पर उसकी रिपोर्टिंग में पक्षपाती होने का आरोप लगाने का आधार अंग्रेजों की सत्ता के समय उनके साम्राज्य के आकार से बड़ा आधार है। हालाँकि, बहुत कुछ पहले ही समझाया जा चुका है। लेकिन, फिर भी सरल शब्दों में समझना है तो…
1.) यदि इस्लामवादियों ने अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय पर हमला किया है, तो एक पत्रकार को अपनी रिपोर्ट को आईएसआईएस/अल कायदा समर्थक के कहने पर तैयार नहीं करनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति जो फर्जी खबरें फैलाता है और हिंदुओं के खिलाफ जानलेवा हमलों के लिए मुस्लिमों को उकसाता है उसके साथ रहकर रिपोर्टिंग करना पत्रकारिता नहीं है।
2.) आइना खान के पास हर हिंदू को आरएसएस समर्थक (हालाँकि, आरएसएस समर्थक होने में कुछ भी गलत नहीं है) और आरएसएस के मुसोलिनी से प्रेरित बताने का कोई तथ्य/सबूत नहीं है। लेकिन, फिर भी वह बता रही है।
3.) सभी हिंदू पीड़ित, ‘भीड़’ कैसे हो सकते हैं। क्या आइना ने स्वीकार किया कि एक हिंदू मंदिर पर मुस्लिम भीड़ ने हमला किया था? यदि अगर उसने स्वीकार किया कि मुस्लिम भीड़ ने ही हमला किया था, तो बिना किसी सबूत के एक इमाम की प्रशंसा क्यों की गई?
4.) क्या सुश्री आइना खान ने लीसेस्टर के अपने कवरेज के दौरान अपने मार्गदर्शक माजिद फ्रीमैन द्वारा हिंदुओं के खिलाफ फैलाई जा रही फर्जी खबरों के बारे में विस्तार से लिखा है? क्या उसने आपके पाठकों को आतंकी संगठनों से उसके संबंधों के बारे में सूचित किया है? यदि नहीं, तो क्या यह उसके पूर्वाग्रह की बात नहीं करता है?
5.) आइना खान ने अपनी पत्रकारिता की हमारी आलोचना को किस आधार पर ‘इस्लामोफोबिया’ करार दिया? क्या आपकी ‘पत्रकार’ हर चीज को उसके धार्मिक विश्वास के चश्मे से देख रही है, क्या ये भी उसके पूर्वाग्रह की ओर इशारा नहीं कर रहा है?
अब, आइए उसके ‘इस्लामवादी’ कहे जाने के बारे में बात करते हैं।
आइना खान को एक इस्लामवादी के रूप में ब्रांडेड किया जा रहा है, वह भी तब, जब 20 दिन पहले प्रकाशित हुए एक लेख को लेकर आपकी पत्रकार के अचानक से नाराज होने के बाद मैंने उसे जवाब दिया। यदि पुलहम आप चाहती हैं कि लोग यह विश्वास करें कि आपके आक्रोश का आधार केवल आपके पत्रकार को इस्लामवादी कहा जाना है, तो आपका तर्क उतना ही विश्वसनीय है जितना कि आपका देश दावा कर रहा है कि वे ब्रिटिश संग्रहालय को सुशोभित करने वाली चोरी की कलाकृतियों के असली मालिक हैं। जब आपकी पत्रकार हिंदुओं को ‘फासीवादी’ कहती तो मुझे उसी तरह से जवाब देने का अधिकार है।
जब कोई माजिद फ्रीमैन जैसे तत्वों के साथ तालमेल बिठाता है, तो गार्जियन को अपने पत्रकार के नाम से क्या उम्मीद थी? वास्तव में, गार्जियन ने खुद 9/11 के हमले को ‘इस्लामी कट्टरपंथी’ करार दिया था – अब, यदि आपकी पत्रकार किसी ऐसे व्यक्ति को मार्गदर्शक मानती है जो आतंकवादी हो या उनसे संबंध रखता हो तो क्या उसे इस्लामवादी नहीं कहा जाना चाहिए?
ऐसे समय में जब दुनिया भर में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए खतरा बढ़ रहा है, एक युवा महिला रिपोर्टर के खिलाफ नफरत को प्रोत्साहित करना बेहद गैर-जिम्मेदाराना है, चाहे वह ऑनलाइन हो या व्यक्तिगत रूप से। इसके अलावा, ऐसा करने से एक मीडिया संगठन के रूप में आपकी विश्वसनीयता को कम करने का जोखिम है।
आपने एक बार फिर से आपने ‘पर्दे’ का बेहतरीन उपयोग किया है आपने पत्रकारों की सुरक्षा का एक असंबंधित मुद्दा उठाया है। हाँ, पत्रकार निश्चित रूप से खतरे में हैं – वास्तव में, एक पत्रकार को कल ही भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में हिंदुओं के खिलाफ हमले की रिपोर्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। यह स्टोरी द गार्जियन पर कभी भी प्रकाशित नहीं होगी। “नफरत” के आरोप को आगे बढ़ाते हुए बिना किसी आधार के। शारीरिक हमले के वास्तविक खतरे के साथ आपने “ऑनलाइन हमलों” से “नफरत” में कितनी सहजता से बदल दिया है। क्या आप जानतीं हैं कि वास्तव में कौन नफरत को बढ़ावा दे रहा है और सुरक्षा को खतरे में कौन डाल रहा है? माजिद फ्रीमैन जैसे तत्व जो आपके पत्रकार के साथ थे।
और हाँ, हमारे संगठन की विश्वसनीयता के बारे में चिंता करने के लिए धन्यवाद। उस पर हमला करने के लिए एक पूरा कबीला मौजूद है। जैसे कि विकिपीडिया पर हम जो कचरा देखते हैं, और अब तक हम उससे बचाव करने के तरीके ढूंढ चुके हैं। ऐसे परिदृश्य में, यह कथित चिंता एक खतरे की तरह लगती है “हम आपकी विश्वसनीयता को नष्ट कर देंगे”। क्या यह हमारे खिलाफ तैयार किए जा रहे हिटजॉब है? मुझे उम्मीद है कि कम से कम यह द गार्जियन में प्रकाशित हुआ है। बता दूँ, ऑपइंडिया भारत में ब्राउन कूलियों द्वारा चलाई जाने वाली वेबसाइ में से नहीं हैं। आप यह जान लें, हम सभी चीजों के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
मैं देख सकती हूँ कि ऑपइंडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए जा रहे कार्यों की हमारी द्वारा कवरेज से ऑपइंडिया असहमत है; आप हमारे कवरेज की आलोचना करने के हकदार हैं। हालाँकि आप फिट देखते हैं, लेकिन हमारे पत्रकारों पर व्यक्तिगत हमले करने के लिए नहीं।
ईमानदारी से, मुझे यकीन नहीं है कि इस पर कहाँ से शुरुआत करनी। मैं आपको बताना चाहूँगी कि ईमेल का यह विशिष्ट भाग मेरी टीम के लिए निरंतर मनोरंजन का स्रोत था। प्रधानमंत्री मोदी का लीसेस्टर हिंसा के हमारे कवरेज, माजिद फ्रीमैन या इस तथ्य से कोई लेना-देना नहीं है कि आतंकवादी हमदर्द आपके पत्रकार का प्राथमिक स्रोत था। यदि आप मानती हैं कि हमने लीसेस्टर के बारे में आपके रिपोर्ताज की आलोचना की है सिर्फ इसलिए की है कि हमें आपका पीएम मोदी का कवरेज पसंद नहीं है, तो यह पूरी तरह से आपकी कल्पना है।
हमारे लिए, लीसेस्टर हिंदुओं पर इस्लामवादियों द्वारा हमले किए जाने के लिए फोकस में था और आपकी इस्लामवादी पत्रकार ने पीड़ितों को दोषी ठहराया, जबकि एक अन्य इस्लामवादी की तारीफ में कसीदे पढ़ रही थी। आपका इस तरह से तर्क देना बेतुका है और मैं सुरक्षित रूप से यह निष्कर्ष निकाल सकती हूँ कि आप और गार्जियन की संपादकीय टीम भारतीयों की तुलना में भारतीय प्रधान मंत्री के प्रति अधिक जुनूनी प्रतीत होती है। मेरी आपको शुभकामनाएँ।
जहाँ तक मेरे हक का सवाल है, मैं आपको बता सकती हूँ कि दशकों पहले आपके देश ने यह तय करने का अधिकार खो दिया था कि हम क्या पाने के हकदार हैं। यदि आप चाहें तो भारतीयों से मुकाबला करने के लिए मैं आपको कुछ अलग चीजों का सुझाव दे सकती हूँ।
यदि आपको गार्जियन के संपादकीय कवरेज के बारे में कोई चिंता है, तो आप हमारे स्वतंत्र पाठकों के संपादक को [email protected] पर ईमेल कर सकते हैं।
ठीक है, सुश्री पुलहम, आपने अपने कृपालु ईमेल के जवाब के रूप में ईमेल पर हमारे प्रश्न का उत्तर देने से इनकार कर दिया।इसलिए, आपके सुझाव के लिए धन्यवाद जिसे ध्यान में रखते हुए विधिवत खारिज कर दिया गया है। आपने इसे सार्वजनिक करने का फैसला किया है और हम इसका पालन करेंगे और अपनी प्रतिक्रिया को सार्वजनिक रूप से भी प्रकाशित करेंगे।हालाँकि, मैं अपने पाठकों को आपके स्वतंत्र पाठकों के संपादक को लिखने और गार्जियन के संपादकीय स्तर और आपके पत्रकारों के आचरण के साथ उनकी शिकायतों को सामने लाने के लिए प्रोत्साहित करती हूँ।
(नूपुर जे शर्मा द्वारा लिखे गए मूल अंग्रेजी लेख को आप यहाँ क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। आकाश शर्मा ‘नयन’ ने इसका हिंदी में अनुवाद किया है।)