मोदी सरकार ने आतंकियों की ‘अंतिम यात्रा’ के नाम पर उन्हें हीरो बनाने के चलन पर रोक तो पहले ही लगा दी थी, अब इसके अमल में आने के बाद से इसका प्रभाव भी दिखना शुरू हो गया है। आतंकियों के परिवार और जम्मू कश्मीर के कई लोगों का कहना है कि मारे गए आतंकियों का इस्लामी और स्थानीय रीति-रिवाजों के हिसाब से ‘अंतिम संस्कार’ किया जाना चाहिए। आतंकियों को ‘ठीक तरीके से दफन करने’ की माँग जोर पकड़ रही है।
‘डेक्कन क्रोनिकल’ की ख़बर के अनुसार, जम्मू कश्मीर मे आइएस विंग के आतंकी शकूर फारूकी के मारे जाने के बाद उसके पिता फारूक अहमद लंगू ने इसे ‘जुर्म और ज्यादती’ बताया है। आतंकी फारूकी को कश्मीर के जोनिमार मे सशस्त्र बलों के साथ हुए मुठभेड़ में मार गिराया गया था। अहमद नगर में एक मोटरसाइकल बम से हमला किया गया था, जिसमें फारूकी का हाथ था। इसमें बीएसएफ के दो जवान वीरगति को प्राप्त हो गए थे।
जून 21 को हुई मुठभेड़ मे बीएसएफ जवानों से लूटे गए राइफल को भी बरामद किया गया। अहमद फारूक का कहना है कि पुलिस ने शाम 5 बजे उसके बेटे की बॉडी देने कि बात कही थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसका चाचा मुहम्मद मकबूल भी पुलिसकर्मियों के ‘व्यवहार’ से नाराज है। उसने कहा कि परिवार को उसकी ‘जिम्मेदारी’ निभाने देना चाहिए क्योंकि उनके ‘बच्चे’ को कैसे दफनाया जा रहा है, ये देखना उनका हक है।
सबसे मजाकिया बात ये है कि आतंकी का चाचा इसे ‘ह्यूमन ट्रैजडी’ भी करार देता है। आतंकी को उसका परिवार उसके घर के पास वाले कब्रगाह मे दफनाना चाह रहा था। डीजीपी दिलबाग सिंह कहते हैं कि शकूर को तो आत्मसमर्पण करने का मौका भी दिया गया था। लेकिन वो नहीं माना। इस साल अब तक 135 आतंकियों का सफाया किया जा चुका है। डीजीपी ने कहा कि अब ग्राउन्ड पर शांति बनाए रखने की कोशिशें करते हुए आतंकियों का सफाया हो रहा है।
साथ ही आतंकियों के शवों को उनके परिवार को सौंपने के बजाए चुपचाप दफनाया जा रहा है ताकि उन्हें ‘नायक’ बना कर पेश करने और ‘अंतिम यात्रा’ मे हजारों के जुटान को रोका जा सके। जम्मू कश्मीर में आतंकियों के हावी होने के बाद पिछले 31 सालों में यह पहला मौका है, जब इस तरह कि रणनीति अपनाई जा रही है। अप्रैल में बारामुला में एक आतंकी को दफन किए जाने समय हजारों लोग जमा हो गए थे।
कश्मीर के सोपोर (सैदपोरा गांव) में जैश ए मोहम्मद के आतंकी सज्जाद दार की अंतिम यात्रा में जुटी ये भीड़ देखिए। “कभी तबलीगी जमात के नाम पर भीड़ जुट जाती है कभी आंतकवादियो के जनाजे के नाम पर” सरकार के बार बार अपील करने के बाद भी आख़िर ये लोग सुनना क्यों नहीं चाहते है? #UrjaaGuru pic.twitter.com/4BzwFjNitL
— Arrihant Rishi (@ArrihantRishi) April 10, 2020
कम से कम कोरोना वायरस आपदा के समय तक तो परिवारों को शव नहीं ही सौंपे जाएँगे क्यों भीड़ जुटने से लोगों की जान को खतरा हो सकता है। जम्मू कश्मीर में कथित मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इसका रोना रो रहे हैं। वो जेनेवा कन्वेन्शन की दुहाई देकर सरकार का विरोध कर रहे हैं। यहाँ तक कि जम्मू कश्मीर यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर ने कहा कि आपदा का पुलिस गलत फायदा उठा रही है।
ज्ञात हो कि लिबरलों द्वारा गणित का शिक्षक बताए जाने वाले रियाज नायकू के मारे जाने के बाद सेना ने केवल ये कहा था कि दो आतंकवादी मारे गए हैं। सेना के अधिकारियों ने बताया था कि उनकी नजर में कोई बड़ा आतंकवादी या टॉप कमांडर नहीं होता हैं, सारे आतंकवादी केवल एक आतंकी की श्रेणी में आते हैं। यहाँ तक कि सेना के किसी भी ट्वीट में रियाज नायकू के नाम का कोई जिक्र नहीं किया गया था। ये सेना की बदली हुई नई रणनीति थी, जिसकी शुरुआत लॉकडाउन के दौरान ही की गई थी।
हाल ही में मंगलवार (जून 30, 2020) को सेना ने बताया था कि 2 आतंकी मार गिराए गए हैं। ये वही थे, जिन्होंने अनंतनाग के बिजबेहड़ा में पिछले शुक्रवार (जून 26, 2020) को सीआरपीएफ की पार्टी पर हमला किया था। उस अटैक में सीआरपीएफ का एक जवान वीरगति को प्राप्त हो गए और 5 साल के बच्चे की मौत हो गई थी। इससे पहले सोमवार (जून 29, 2020) को आर्मी और पुलिस ने जॉइंट ऑपरेशन में अनंतनाग जिले के खुलचोहर इलाके में 3 आतंकियों को ढेर कर डोडा जिले को आतंकवाद मुक्त घोषित कर दिया था।