माओवादी कहीं ना कहीं अब ये बात जान और समझ गए हैं कि 'जल-जंगल-जमीन' का उनका नारा अब प्रासंगिक नहीं रहा है। इनके पोषक ये बात अच्छे से जानते है कि यदि अब यह 3 मुद्दे ही प्रासंगिक नहीं रहे, तो अब माओवंशी किस तरह से अपना अभियान आगे बढ़ाएँ? लोगों के बीच डर पैदा कर के ही ये आतंकवादी संगठन अब प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं।
मेजर जनरल आसिफ गफूर ने रावलपिंडी में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए बताया कि 1947 में पाकिस्तान में 247 मदरसे थे, जो कि 1980 में बढ़कर 2861 हो गए और मौजूदा वक्त में पाकिस्तान में 30 हजार से ज्यादा मदरसे चलाए जा रहे हैं।
“हमने हिंसक चरमपंथी संगठनों और जिहादी संगठनों को प्रतिबंधित कर दिया है और हम उनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। दहशतगर्दी का समूल नाश करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। हमारे देश ने इस दहशत के साम्राज्य के कारण बहुत नुकसान उठाया है। आतंकवाद के कारण लाखों डॉलर गँवाए हैं।”
मुझे इससे कोई मतलब नहीं है कि फ़लाँ किताब के फ़लाँ चैप्टर में यह लिखा है कि एक मानव की हत्या पूरे मानवता की हत्या है, क्योंकि ये कहने की बातें हैं, इनका वास्तविकता से कोई नाता नहीं है। ये फर्जी बातें हैं जो आतंकियों के हिमायती उनके बचाव में इस्तेमाल करते हैं।
बैस्टियन मवाता के निजी बस अड्डे में यह डेटोनेटर पेटा की स्थानीय पुलिस ने बरामद किए हैं। उन्हें पहले तो केवल 12 डेटोनेटर बस स्टैंड के अन्दर से मिले। पर फिर वहाँ पर पड़े कूड़े के ढेर को हटाने पर पुलिस ने 75 डेटोनेटर और बरामद किए।