पार्टी के दो युवा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर बरसे पोलित ब्यूरो के तीन सदस्य। उनका गुस्सा इस बात को लेकर था कि ऐसा उस राज्य में हुआ जहॉं पार्टी की सरकार है। जनवरी में पार्टी की सेंट्रल कमेटी की बैठक में भी इस पर चर्चा होगी।
पुलिस ने बताया कि उन महिलाओं को मंदिर की परंपरा के बारे में पता नहीं था और उन्हें जैसे ही इसका भान हुआ, वो ख़ुद वापस चली गईं। पुलिस ने बताया कि उन महिलाओं को समझाने की कोई ज़रूरत ही नहीं पड़ी।
“राज्य सरकार सबरीमाला मंदिर जाने वाली किसी भी महिला को सुरक्षा प्रदान नहीं करेगी। तृप्ति देसाई जैसी कार्यकर्ताओं को सबरीमाला को अपनी शक्ति प्रदर्शन के स्थान के रूप में नहीं देखना चाहिए। अगर उन्हें पुलिस सुरक्षा की जरूरत है, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट से आदेश लेकर आना होगा।”
"सबरीमाला में घुसने का प्रयास करने वाली 10 से 50 वर्ष तक की उम्र की महिलाओं को राज्य सरकार कोई सहायता मुहैया नहीं कराएगी। हमें अभी इस बात पर विचार करना है कि आगे क्या किया जा सकता है अगर..."
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के अवाला जस्टिस खानविलकर और जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेजने के पक्ष में अपना मत सुनाया। जबकि पीठ में मौजूद जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरीमन ने सबरीमाला समीक्षा याचिका पर असंतोष व्यक्त किया।
75 वर्षीय एपी चेरियन को लोहे के रॉड से मार डाला। 68 वर्षीय उनकी पत्नी लिलिकुट्टी चेरियन को हत्यारों ने कुदाल से काट डाला। हत्यारों की तलाश में लुक आउट नोटिस जारी।
इस की जाँच हो कि एनकाउंटर में शामिल अफसरों के हाथों इस घटना के दौरान कोई आपराधिक कृत्य तो नहीं घटित हुआ है। लेकिन इसे एनकाउंटर की सत्यता, उसकी परिस्थितियों या माओवाद के आरोपितों की मृत्यु पर सवाल के रूप में न देखा जाए।
सबरीमाला के भक्तों पर अत्याचार करने के बाद केरल के वामपंथियों ने जून 2019 में केंद्र सरकार से सबरीमाला के रीति-रिवाजों की रक्षा करता एक कानून बनाने को कहा था। जबकि यू-टर्न ले लेने के बाद अब वही वामपंथी कह रहे हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट 2018 का फैसला मानेंगे
सेंट मैरी चर्च पिछले कई महीनों से बंद था। इसके स्वामित्व को लेकर ऑर्थोडॉक्स और जैकबाइट गुटों के बीच कई बार झड़पें हुई थीं। जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आधार पर चर्च का नियंत्रण ऑर्थोडॉक्स गुट को सौंप दिया गया था।