भारत की पत्रकारिता में यह रवीश का सबसे बड़ा योगदान है। अच्छी योजनाओं और सरकारी कार्यों में भी, खोज-खोज कर कमियाँ बताई जाने लगी हैं। देखा-देखी बाकी वामपंथी एंकरों और पुराने चावल पत्रकारों ने भी, अपनी गिरती लोकप्रियता बनाए रखने के लिए, अपने दैनिक शौच से पहले और फेफड़ों से चढ़ते हर खखार (हिन्दी में बलगम) के बाद, मोदी और सरकार को गरियाना अपना परम कर्तव्य बना लिया है।
ऐसे में गोकुलपुरी के कुछ नवयुवक क्या करते? आप इस स्थिति में क्या करेंगे जब आप शत-प्रतिशत जानते हों कि यह भीड़ आपके घरवालों को पहली नजर में हाथ काट कर, पैर काट कर दिलबर नेगी की तरह आग में जलने को फेंक देगी?