स्वामी विवेकानंद का संन्यासी जीवन से पूर्व का नाम भी नरेंद्र था और भारत के प्रधानमंत्री भी नरेंद्र हैं। जगह भी वही है, शिला भी वही है और चिंतन का विषय भी।
'विवेकानंद शिला स्मारक' के बगल वाली शिला पर संत तिरुवल्लुवर की प्रतिमा की स्थापना का विचार एकनाथ रानडे का ही था, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि राजनीतिक इस्तेमाल के लिए बाद में यहाँ किसी की मूर्ति लगवाई जा सकती है।
मिशनरियों ने वहाँ क्रॉस लगा दिया, मूर्ति फेंक दी, जेवियर का स्मारक बनाने की चेष्टा की। कॉन्ग्रेसी मुख्यमंत्री M भक्तवत्सलम ने अड़ंगा लगाया। नेहरू के मंत्री हुमायूँ कबीर इसके पक्ष में नहीं थे। इन सबके बावजूद RSS के एकनाथ रानडे ने इसे कर दिखाया।
"ये समझ में नहीं आता है कि ये कौन सा गैंग है, खान मार्केट गैंग जो कुछ लोगों को बचाने के लिए इस प्रकार के नैरेटिव गढ़ती है। पहले आप ही कहते थे छोटों को पकड़ते हो बड़े छूट जाते हैं।"
बीजेपी का समर्थन करने से नाराज सलीम पन्नी पहले भी ऐसी घटनाएँ कर चुका है। पीड़िता सबा नाज ने पुलिस से अपनी और परिवार की जान माल की सुरक्षा की गुहार लगाई है।