आडवाणी, नरेंद्र मोदी के बाद अब मीडिया ने CM योगी आदित्यनाथ को अपनी नफरत का पसंदीदा विषय बना लिया है

महंत और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ (साभार: PTI)

कई पत्रकार अपना करियर उन राजनेताओं पर लिखकर बनाते हैं, जिनसे वे नफरत करना पसंद करते हैं। इसी पर लिखकर वो अपनी करियर को नई ऊँचाई देते हैं। हमने पिछले दो दशकों में देखा है कि किस तरह से मोदी-विरोध कई लोगों के लिए पूर्णकालिक करियर विकल्प के रूप में उभरा है।

अब मीडिया ने महंत योगी आदित्यनाथ को भी अपनी नफरत की सूची में शामिल कर लिया है। ये सभी पत्रकार इस तथ्य को आसानी से भूल जाएँगे कि सीएम योगी पाँच बार के सांसद हैं, इस दौरान उनका संसद में उपस्थिति और बहस का अद्भुत रिकॉर्ड रहा है।

2004 और 2009 में जब बीजेपी शानदार प्रदर्शन नहीं कर रही थी, तब भी योगी अपने चुनावों में भारी अंतर से चुनाव जीते थे। मोदी के बाद योगी ही ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिनका उल्लेख न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट में किया गया। एक सामान्य फैक्ट-चेक से पता चलता है कि इनमें से अधिकांश लेख विदेशी भूमि पर बैठकर लिखे गए हैं और तथ्यों के बजाय पक्षपात पर आधारित हैं।

2017 में, जब योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, तो उन्हें पिछले 15 वर्षों से अखिलेश यादव, उनके पिता मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती द्वारा चलाया जा रहा निष्क्रिय उत्तर प्रदेश मिला था।

उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था इन तीन वजहों से लचर थी- 

  1. एक अपर्याप्त पुलिस बल – राज्य की स्वीकृत 3 लाख पुलिस पदों में से केवल 1.5 लाख पदों पर ही पूर्ववर्ती सपा और बसपा सरकारों ने नियुक्ति की थी।
  2. राजनीति का बाहुबलीकरण – राजा भैया, अतीक अहमद, विकास दुबे, गायत्री प्रजापति जैसे लोग जेलों के बजाय सत्ता की गलियारों में थे।
  3. ‘लडके हैं, गलती हो जाती है’ की पितृसत्तात्मक और नारी-विरोधी मानसिकता वाली मुलायम सिंह यादव की ‘लीडरशिप’ वाली सरकार।

योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश में 1.3 लाख अतिरिक्त पुलिस बल की भर्ती की जा चुकी है। दिन में 18 घंटे काम करने वाले योगी ने पहले दिन से इस साँठगाँठ पर नकेल कसनी शुरू कर दी। उन्होंने गृह विभाग से उत्तर प्रदेश के सभी ख़ूँख़ार बदमाशों की सूची निकालने के लिए कहा – जो जेल से भाग गए हैं, अदालत में भाग गए हैं, कभी भी पूर्व में एफआईआर नहीं की गई, क्योंकि राजनीतिक संरक्षण के कारण या कई अदालती आदेशों के बाद भी कभी गिरफ्तार नहीं हुए।

उन्होंने इन सभी ख़ूँख़ार अपराधियों का शिकार करना शुरू कर दिया, जिन्हें पिछले 15 वर्षों में राजनीतिक आश्रय मिला। उन्हें पकड़ने के लिए उन्होंने विशेष टीमें बनाईं। कई मामलों में, इन अपराधियों ने पुलिस टीमों पर गोलीबारी की, जब वे गिरफ्तार होने वाले थे और पुलिस की जवाबी गोलीबारी में मारे गए या फिर घायल हुए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले 16 महीनों में 3000 से अधिक ऐसे अभियान चलाए हैं।

कुल 78 अपराधियों को मार गिराया गया है, 838 से अधिक अपराधियों को लगातार चोटें आई हैं और 7043 अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। मीडिया ने इस बड़े पैमाने पर किए गए योगी की सराहना करने के बजाय, मानव अधिकार मामलों के उल्लंघन के बहाने योगी के प्रयास को कम कर दिया। उल्लेखनीय है कि इन सभी मुठभेड़ों ने मजिस्ट्रीयल जाँच भी पास की और इसे वैध पाया गया। मीडिया ने कभी इस तथ्य को उजागर करने की जहमत नहीं उठाई।

लेकिन इंडस्ट्री उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति में तेजी से सुधार देख रहा था। सुरक्षित उत्तर प्रदेश ने के 5 लाख करोड़ का निवेश किया। इनमें से 250 से अधिक परियोजनाओं को 2019 तक धरातल पर उतारकर पूरा किया। वास्तव में, 2020 में, आंध्र प्रदेश के बाद, उत्तर प्रदेश ने व्यापार रैंकिंग करने में दूसरे स्थान पर पहुँच गया। लेकिन मीडिया ने कभी भी योगी को उत्तर प्रदेश से बाहर आने वाली सकारात्मक खबरों के लिए फ्रंट पेज पर या प्राइम टाइम डिबेट में जगह नहीं दी।

वैश्विक रूप से आधुनिक सभ्य समाज में महिलाओं के खिलाफ हमला सबसे बड़ा दाग है। पश्चिमी मीडिया भारत को दुनिया की बलात्कार की राजधानी के रूप में चित्रित करता है, जबकि स्वीडन में बलात्कार दर (जनसंख्या में प्रति लाख जनसंख्या पर बलात्कार) 63.5 है, ऑस्ट्रेलिया में 28.6, संयुक्त राज्य अमेरिका में 27.3 और भारत में केवल 1.8 है। 

NCRB के आँकड़ों के अनुसार, छत्तीसगढ़ की 14.7 बलात्कार दर की तुलना में यूपी में बलात्कार की दर 3.7 है। राजस्थान में बलात्कार दर 11.7 और केरल की 10.7 है। अधिकांश मीडिया हाउस दिल्ली या नोएडा में स्थित होने के कारण, योगी का उत्तर प्रदेश ‘डोर स्टेप रिपोर्टिंग’ का शिकार हो जाता है।

सितंबर 2020 में, केरल के पठानमिट्टा के एक 19 वर्षीय कोरोना मरीज के साथ एंबुलेंस के भीतर बलात्कार किया गया था।  पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले में 16 और 14 वर्ष की दो आदिवासी लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया था, जिसके बाद उन्होंने जहर लिया था और उनमें से एक की मौत हो गई है। इसी तरह राजस्थान, बाराँ की दो नाबालिग लड़कियों के साथ 3 दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया। लेकिन किसी कारण से, ये हमारे टीवी चैनलों पर प्राइम टाइम डिबेट में जगह नहीं बनाते हैं, जबकि हाथरस पर जमकर रिपोर्टिंग हो रही है।

राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी हाथरस का दौरा करते हैं, लेकिन केरल के बारे में ट्वीट भी नहीं करते हैं। पश्चिम बंगाल के टीएमसी सांसद, डेरेक ओ ब्रायन भी हाथरस जाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अपने ही राज्य पश्चिम बंगाल में दो नाबालिग आदिवासी लड़कियों के साथ जघन्य अपराधों के बारे में टिप्पणी करने से परहेज करते हैं। चूँकि योगी की यूपी उन्हें टीआरपी देती है, इसलिए मीडिया एंकर भी हाथरस पर आँसू बहाते हैं, लेकिन भारत की अन्य बेटियों की परवाह नहीं करते हैं।

पिछले तीन वर्षों में, योगी ने 1.3 लाख रिक्त पदों को भरकर यूपी पुलिस बल में वृद्धि की है। ख़ूँख़ार अपराधी अब जेल में हैं। मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद और विकास दुबे की अवैध संपत्तियों को या तो कब्जे में ले लिया गया है या फिर ध्वस्त कर दिया गया है। यूपी में सुरक्षित माहौल प्रदान करने के लिए रोमियो स्क्वॉड पूरी कोशिश कर रहा है। सभी गंभीर मामलों की निश्चित समय के भीतर जाँच करने के लिए विशेष जाँच दल (SIT) का गठन किया गया है। जहाँ कभी शिथिलता पाई जाती है, वहाँ पुलिस कर्मचारियों को निलंबित कर दिया जाता है।

यूपी में इंडस्ट्री वापस आ रही हैं, क्योंकि वे अपने पैसे और कर्मचारियों को अब यूपी में सुरक्षित पाते हैं। इस सब के बावजूद, योगी वो राजनेता बने हुए हैं, जिनसे मीडिया नफरत करना पसंद करती है। पहले लाल कृष्ण आडवाणी, फिर नरेंद्र मोदी और अब मीडिया ने योगी आदित्यनाथ को अपना पसंदीदा लक्ष्य बना लिया है।

Shantanu Gupta: Author. Biographer of Uttar Pradesh CM Yogi Adityanath, titled The Monk Who Became Chief Minister. Founder of youth based organization Yuva Foundation.