जो प्रत्याशी या संगठन धनबल और बाहुबल का इस्तेमाल नहीं करता, या उसके इस्तेमाल में झिझकता है; उसे कमजोर मान लिया जाता है। पूरी चुनावी व्यवस्था इतनी दूषित हो चुकी है कि सही और सकारात्मक साधनों से लड़कर चुनाव जीतना लगभग असंभव है।
पहली बार नहीं है जब हिंदू संत या धार्मिक संगठन किसी तरह के परोपकारी कार्य कर रहे हो, सालों से ऐसा हुआ, लेकिन वामपंथियों ने कभी उसका प्रचार नहीं होने दिया।
छोटी उम्र की लड़कियों को लालच देकर फँसाना हमेशा से ऐसे गिरोहों के लिए आसान रहा है। कारण कई होते हैं। छोटे उम्र में लड़कियाँ नहीं समझ पातीं कि ऐसी स्थिति में फँसने पर उन्हें डील कैसे करना है।
उमर खालिद को बेल न मिल पाने की वजह सुप्रीम कोर्ट नहीं बल्कि वो खुद और उनके वकील कपिल सिब्बल का रवैया है जो 'फोरम शॉपिंग' के लिए मामले को एडजर्न कराते रहे।