एक समय था कि मजदूरों को पूंजीपतियों और विकास के विरुद्ध भड़का कर कम्युनिस्ट नेतागिरी चमकाया करते थे। अब वह दौर नहीं रहा। कन्हैया की इस राजनीति को बिहार नहीं स्वीकार करने वाला है।
सबसे अधिक दोगलापन तो कुणाल कामरा का ही विक्टिम कार्ड खेलना होगा। आज बोलने की आजादी पर रोने वाला कुणाल कामरा कंगना रनौत का दफ्तर BMC द्वारा गिराए जाने पर अट्टाहास कर रहा था।
महाकुंभ से पहले ठीक एक वर्ष पहले भी गाँधी परिवार ने स्पष्ट कर दिया था कि उनकी प्राथमिकताएँ क्या हैं। 500 वर्षों के संघर्ष के बाद हिन्दुओं को मिले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण कॉन्ग्रेस ने ठुकरा दिया था।
पहली बार नहीं है जब हिंदू संत या धार्मिक संगठन किसी तरह के परोपकारी कार्य कर रहे हो, सालों से ऐसा हुआ, लेकिन वामपंथियों ने कभी उसका प्रचार नहीं होने दिया।
छोटी उम्र की लड़कियों को लालच देकर फँसाना हमेशा से ऐसे गिरोहों के लिए आसान रहा है। कारण कई होते हैं। छोटे उम्र में लड़कियाँ नहीं समझ पातीं कि ऐसी स्थिति में फँसने पर उन्हें डील कैसे करना है।
उमर खालिद को बेल न मिल पाने की वजह सुप्रीम कोर्ट नहीं बल्कि वो खुद और उनके वकील कपिल सिब्बल का रवैया है जो 'फोरम शॉपिंग' के लिए मामले को एडजर्न कराते रहे।