नसीरुद्दीन शाह विवाद जनने की फैक्ट्री बनते जा रहे हैं

नसीरुद्दीन शाह ने बंगलुरु में उगला जहर!

बॉलीवुड एक्टर नसीरुद्दीन शाह हाल ही में अपने कुछ विवादों के चलते लगातार घेरे में हैं। नसीर ने भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले जा रहे टेस्ट मैच श्रृंखला के दौरान विराट कोहली की आक्रामकता की सराहना नहीं की और क्रिकेटर को ‘दुनिया का सबसे ख़राब व्यवहार वाला खिलाड़ी’ तक कह डाला। यहीं से शुरू होता है विवादों वो दौर जो अब तक संभलने का नाम नहीं ले रहा है।

विवादों के इस मंज़र में देखते ही देखते अभिनेता नसीरुद्दीन शाह को कोहली के ख़िलाफ़ दिये गए इस बयान के चलते कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में, नसीरुद्दीन शाह बाहर आए और कहा कि वह आज के भारत में अपने बच्चों के जीवन के लिए डरे हुए हैं। अपेक्षित पंक्तियों के साथ, उनके इस विवादित बयान ने मुख्यधारा के मीडिया में काफी हलचल पैदा कर दी और विभिन्न समूहों द्वारा उनके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू करने के बाद उन्हें अजमेर साहित्य महोत्सव छोड़ना पड़ा

उसके बाद भी वो नहीं रुके और इसी विषय पर हाल ही में, एमनेस्टी इंटरनेशनल नामक एनजीओ के एक वीडियो में दिखे, जो कथित FCRA उल्लंघन के लिए जाँच के अधीन है। यहाँ उन्हें ‘शहरी नक़्सलियों’ (अर्बन नक्सल्स) का समर्थन करते हुए स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जिन्हें कोरेगाँव भीमा में हिंसा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक कथित हत्या की साज़िश के सिलसिले में ग़िरफ़्तार किया गया था।

नसीरुद्दीन शाह के ऐसे बयानों में नरेंद्र मोदी का विरोध स्पष्ट रूप से दिखता है। लेकिन, ऐसा भी लगता है कि नसीर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए भी झूठ का सहारा लेते हैं। इंडिया टुडे के साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी के बारे में उनकी राय पूछी गई, तो उन्होंने कहा, “यह बता पाना बहुत मुश्किल है,” फिर आगे उन्होंने कहा, “वर्ष 2014 में जब वह सत्ता में आए थे तो मुझे उनसे काफी उम्मीदें थी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मेरा विश्वास कहीं डगमगाया है। मैं अभी भी भविष्य के लिए सकारात्मक सोच रखता हूँ।”

निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि नसीरुद्दीन शाह के कारनामों, जिनमें विवादित बयानों की भरमार है, से ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता कि उन्हें वर्ष 2013 में नरेंद्र मोदी पर विश्वास था या उनसे किसी भी प्रकार की उम्मीदें थी। वास्तव में, उन्होंने 2013 में एक प्रायोजित तरीक़े का इस्तेमाल किया था,जिसकी मंशा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘बेनक़ाब’ करना था।

नसीरुद्दीन जब बोल रहे थे तो वे बहुत आश्वस्त दिखाई दे रहे थे। हालाँकि, इंटरनेट एक ऐसी व्यवस्था है जिसकी एक लंबी मेमोरी होती है और यह कभी भी कोई चीज नहीं भूलती है।

जब भी लोग उनके बयानों की आलोचना करते हैं तो अभिनेताओं के लिए यह कहना और ‘असहमति के लिए कोई स्थान नहीं है’ चिल्लाते रहना फ़िल्मी हस्तियों के लिए एक सामान्य विषय बन गया है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि बॉलीवुड की हस्तियाँ ये नहीं समझती कि वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कैसे काम करती है। ज़रूरत है तो एक गहन विचार की कि आख़िर कब, कैसे और क्यों अपने विचारों को दुनिया के दृष्टिपटल पर रखा जाए।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया