तबलीगी जमात के मुखिया मौलाना साद ने PM रिलीफ फंड में दिया ₹1 करोड़, अखबार में छपी खबर: Fact Check

मौलाना साद को बचाने के लिए फैलाई जा रही फर्जी खबर

कोरोना वायरस के बीच सबसे बड़ा नाम बनकर उभरा तबलीगी जमात का मुखिया मोहम्मद साद कंधालवी फरार है। हालाँकि जमात का खुलासा होने के बाद और साद की ऑडियो वायरल होने के बाद सबके सामने इसे लेकर स्थिति साफ है। मगर फिर भी कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी ऐसे हैं, जो इस समय में भी मौलाना की छवि निर्माण करने में जुटे हैं। दरअसल, नोटिस जारी होने के बाद से अंडरग्राउंड हुए साद को लेकर व्हॉट्सअप पर खबरें फैलाई जा रही है कि उसने कोरोना से लड़ने के लिए पीएम रिलीफ फंड में 1 करोड़ रुपए का दान दिया।

इस खबर को प्रमाणिक बताने के लिए एक अखबार की कटिंग भी शेयर की जा रही है और धड़ल्ले से इसे सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा है। न्यूज़लेटर नाम के अखबार की इस कटिंग पर मोहम्मद साद की फोटो लगी हुई है और इसके मुख्य पृष्ठ पर हेडलाइन है कि 28 मार्च को मौलाना साद ने पीएम रिलीफ फंड में 1 करोड़ रुपए का दान दिया। रिपोर्ट में अंदर ये भी लिखा है कि इस्लाम को हर बार आतंकवाद के रूप में बदनाम किया गया। लेकिन इस बार कोरोना ने हर धर्म को एक कर दिया है और ये सब मौलाना साद के कारण हुआ है, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रिलीफ फंड में 1 करोड़ रुपए का दान दिया। मगर इस डोनेशन को गुप्त रखा। इसके अलावा इस रिपोर्ट में आगे ये भी लिखा यह मोदी जी को बदनाम करने का नहीं बल्कि उनका समर्थन करने का समय है, इस समय मोदी जी देश के हित में सोच रहे हैं।

अब इसी अखबार की कटिंग को शेयर करते हुए लोगों के बीच संदेश भेजा जा रहा है, “उस महान शख्सियत ने जिस पर इल्जाम लग रहा है, उसने यानी मौलाना साद साहब ने 29 मार्च को ही प्रधानमंत्री राहत कोष में 1 करोड़ रुपए का दान दिया था।”

अब हालाँकि, कोई भी आमजन जिसे फेक न्यूज़ की समझ हो, वो तनिक देर भी नहीं लगाएगा इस रिपोर्ट के पीछे छिपे अजेंडे को जानने में। एक सरसरी निगाह पड़ने से ही उसे यह स्पष्ट होगा कि यह रिपोर्ट पूरी तरह नकली है। क्योंकि इस रिपोर्ट में भाषा, व्याकरण एक वैध समाचार वाला नहीं है। बल्कि इसे पढ़कर ये आभास होता है कि मौलाना साद की छवि निर्मित करने के लिए इसे गढ़ा गया।

यहाँ बता दें कि जिस अखबार की आड़ में ये खबर प्रकाशित हुई है, वह अस्तित्व में है और उत्तरी आयरलैंड से प्रकाशित होता है। ये अखबार वहाँ का एक पुराना दैनिक समाचार पत्र है, जिसकी शुरुआत 1737 में हुई थी। मगर, जब हमने इस खबर संबंधी शब्दों वाक्यों को इस पर सर्च करना शुरू किया, तो मालूम हुआ कि अखबार में मो. साद को लेकर ऐसी कोई भी खबर प्रकाशित ही नहीं हुई।

सोचने वाली बात है कि आखिर कोई आयरिश अखबार भारत की इस छोटी सी सूचना को अपनी मुख्य हेडलाइन क्यों बनाएगा? इस समय तो भारत में कई लोग ऐसे हैं जो बड़ा-बड़ा दान कर रहे हैं, तो फिर आयरिश अखबार सिर्फ़ मो साद को ही क्यों चुनता?

जब हमने अपनी पड़ताल की कड़ी में अखबार की तस्वीर जाँची। तो वास्तविकता में वो पेपर 6 जून 2019 का निकला। जिसका इस्तेमाल मोहमम्मद साद के अनुयायियों ने किया था और डोनॉल्ड ट्रंप के आयरलैंड दौरे की तस्वीर हटाकर वहाँ मोहम्मद साद को पेस्ट कर दिया था। बाद में उन्होंने अपने अनुसार खबर को लिख दिया।

अब उम्मीद है, उन लोगों को यह स्पष्ट होगा कि तब्लीगी जमातियों को भड़काकर मरकज़ में इकट्ठा करने वाला मौलाना द्वारा 1 करोड़ के दान की खबर न केवल झूठी थी बल्कि उसको बचाने के लिए चली गई एक चाल थी। हम देख सकते हैं कि किस चतुराई से तब्लीगी जमात के मुखिया को महान बनाने के लिए असलियत के साथ छेड़छाड़ की गई और उसके गुहानों पर पर्दा डालने का प्रयास हुआ।

बता दें कि इससे पहले, दि प्रिंट के शेखर गुप्ता ने भी तब्लीगी जमात के कुकर्मों को व्हॉइटवाश करते हुए ये बताने की कोशिश की थी कि भाजपा आईटी सेल के लोग तब्लीगी जमात की बेवकूफी के लिए पूरे समुदाय को दोष दे रही है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया