ऑपइंडिया ने सोमवार (18 फ़रवरी) को अपने फ़ैक्ट चेक में ‘वंदे भारत एक्सप्रेस से ख़दकुशी पर पाठकों को किया भ्रमित’ शीर्षक से ख़बर लिखी थी। इस ख़बर में ऑपइंडिया ने ‘नवभारत टाइम्स’ की उस एक ख़बर पर आपत्ति दर्ज की थी जिसमें दिल्ली और गाज़ियाबाद के एडिशन में आख़िरी पेज पर दी गई सूचना भ्रम पैदा करने जैसी थी।
पाठकों की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ऑपइंडिया ने अपने फ़ैक्ट चेक के माध्यम से यह कोशिश की थी कि नवभारत टाइम्स जैसे नामी अख़बार अपने पाठकों को सही जानकारी से अवगत कराएँ।
हमें यह बताते हुए ख़ुशी है कि ऑपइंडिया की कोशिश रंग लाई और नवभारत टाइम्स ने आज (19 फरवरी 2019) अपने दिल्ली और गाज़ियाबाद के एडिशन में स्पष्टीकरण देते हुए पाठकों को सही जानकारी से अवगत कराया और अपनी ग़लती पर खेद प्रकट किया।
अपने स्पष्टीकरण के ज़रिए नवभारत टाइम्स ने अपनी ग़लती को स्वीकारते हुए लिखा कि वंदे भारत से जुड़ी ख़बर के साथ बॉक्स में जो ख़ुदकुशी की ख़बर प्रकाशित हुई थी जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक यह हादसा पिछले महीने ट्रेन के ट्रायल के दौरान हुआ था। लेकिन, त्रुटिवश नवभारत टाइम्स के एनसीआर (गाज़ियाबाद) एडिशन में यह ख़बर इस तरह छपी कि जैसे यह घटना अभी की हो। इस ख़बर के खेद प्रकट करते हुए नवभारत टाइम्स ने लिखा कि यह ख़बर त्रुटिवश ग़लत छपी है, ‘वंदे भारत ट्रेन’ को लेकर किसी तरह की दुर्भावना से इसका कोई संबंध नहीं है।
आइये आपको बता दें कि नवभारत टाइम्स ने किस प्रकार की त्रुटी अपने दोनों एडिशन में की थी।
दरअसल, नवभारत टाइम्स अख़बार ने 18 फरवरी को अपने पाठकों के समक्ष दो अलग-अलग एडिशन में अलग-अलग ख़बर परोसी। नवभारत टाइम्स ने गाज़ियाबाद के एडिशन में पेज-16 यानी आख़िरी पन्ने पर ‘वंदे भारत को रास्ते भर लगे झटके’ हेडिंग के नीचे एक ख़बर लिखी – ‘ट्रेन से कटकर युवक ने दी जान।’ ख़बर के मुताबिक़ एक शख़्स ने तब ख़ुदकुशी कर ली जब ट्रेन वाराणसी से दिल्ली आ रही थी।
वहीं दूसरी तरफ नवभारत टाइम्स अपने दिल्ली एडिशन के उसी पेज-16 पर उसी हेडिंग के नीचे इसी ख़बर को लिखी – सही फ़ैक्ट के साथ। इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि इस ख़बर में एक लाइन और दिखती है और वो ये कि ख़ुदकुशी का यह हादसा पिछले महीने ट्रायल के दौरान हुआ था।
ये बिल्कुल ज़रूरी नहीं कि इन ख़बरों को पढ़ने वाला पाठक दोनों एडिशन को पढ़ें। क्योंकि दोनों क्षेत्र अलग-अलग हैं। दिल्ली वाले दिल्ली एडिशन पढ़ेंगे और गाज़ियाबाद वाले गाज़ियाबाद एडिशन। लेकिन इस ख़बर को पढ़ने वालों पर इसका असर अलग-अलग तरीके से होगा। गाज़ियाबाद वाले पाठक इस हादसे को बीते दिन (17 फरवरी) का समझेंगे, जो ग़लत संदेश के रूप में अपना प्रभाव छोड़ जाएगा।
सोशल मीडिया के ज़माने में मीडिया कुछ भी लिख दे और ग़लतफ़हमी पैदा कर दे यह अब संभव नहीं। कुछ ऐसे भी पाठक होते हैं जो ख़बरों को गंभीरता से पढ़ते हैं और उटपटांग लगने पर अपनी प्रतिक्रिया भी दर्ज करते हैं। ऐसे ही एक ट्विटर यूज़र अनुज गुप्ता की नज़र नवभारत टाइम्स की इन दोनों ख़बरों पर अटक गई और उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया ट्वीट के माध्यम से दर्ज कर दी।
https://twitter.com/anujg/status/1097338029889466368?ref_src=twsrc%5Etfwइतने बड़े मीडिया हाउस ने अपने स्पष्टीकरण के साथ खेद व्यक्त किया अब यह उसके पाठकों के साथ कहीं न कहीं कुछ हद तक न्यायसंगत लगता है। लेकिन एक सवाल फिर भी घर करता दिखता कि क्या ये ज़रूरी है कि हर ख़बर पर लोग ख़ुद ग़ौर फ़रमाएँ और उसकी सही जानकारी के लिए भी ख़ुद ही कोशिश करें? ऐसे में यही कहना और लिखना निहायत ही ज़रूरी है कि किसी भी तरह की जानकारी देने वाले को हमेशा सजग और सतर्क रहना चाहिए जिससे वो समाज में रह रहे लोगों का सही दिशा में मार्गदर्शन कर सकें।