व्यंग्य: रामायण काल के फेकन्यूज और धोबीकुमार की खोज में निकले हनुमान को क्या मिला?

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

राजनीति में 300 पृष्ठों के भ्रष्टाचार के प्रमाणों के साथ युगपुरुष प्रकट हुए तो उनके साथ क्रन्तिकारी पत्रकारों का समूह जुटा जिन्होंने मिथ्या समाचार को राजनैतिक समझ का स्थान दिया और ‘ईज़ इट ट्रू’ के फुँदने का उपयोग करके राजनैतिक आरोप लगाने की। युगपुरुष के सिंहासन पर आरूढ़ होने के साथ ही इन क्रन्तिकारी पत्रकारों की उपयोगिता उसी प्रकार समाप्त हो गई जैसी विवाहोपरांत शेरवानी की होती है। जैसे लौट के बुद्धू घर को आता है, ये भी पत्रकारिता के गाँव को लौटे और अब न्यू मीडिया में इनका दैनिक जीवन प्रातः काल में किसी आउटरेज की निर्मिति करना है। 

तुर्की का हिंसक ड्रामा एरतोगुल जहाँ इन्हें रोमांचित करता है, रामायण का पुनःप्रसारण इन्हें आतंकित करता है। जिस रामायण ने इनके कैशोर्य में प्रसारित होकर इन्हें आतंकवादी नहीं बनाया था, वही धारावाहिक इन्हें लगता है वर्त्तमान युग में युवाओं को पथभ्रमित कर देगा। जैसे सरकार के विरोध में ये भारत का विरोध करने लगे हैं, धारावाहिक के विरोध में ये रामायण का विरोध करने लगे हैं और रामायण के माध्यम से हिन्दू धर्म का विरोध करने लगे हैं जो सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि के सरल, सस्ता एवं टिकाऊ मार्ग है। इसी श्रृंखला में आज इनके एक पत्रकार श्रीराम एवं महर्षि वाल्मीकि से पूछते हैं कि वह उत्तरकाण्ड जिसके रामायण के भाग होने पर ही संदेह है उसमें उल्लिखित शम्बूक वध का और सीता के अयोध्या से निष्काषन क्या उत्तर है? अच्छा ही हुआ कि ऐसे पत्रकार रामायण काल में नहीं हुए, या संभव है हुए हों। पढ़ें इस लेख में:

राजधर्म में स्वयं को व्यस्त रखें श्रीराम का दुख लक्ष्मण से देखा न जाता था। उन्होंने जानकी के विरह से दुःखित श्रीराम की स्थिति देख कर मामले की तह तक जाने का विचार किया और बजरंग बली को बुला भेजा।

बजरंग बली जेएनयू की मेस के ऑडिट से लौटे ही थे कि उन्हें लखन का संदेश मिला। वैसे तो हनुमान जी के पास अपना खुद का स्टाफ़ था, परंतु जेएनयू की मेस का ऑडिट उन्हें स्वयं ही करना होता था। जेएनयू का छात्रसंघ किसी अन्य ऑडिटर को वहाँ प्रवेश नहीं देता था। हनुमान जी की लाल देह और लाल लंगोट साथ ही मज़बूत गदा उन्हें वहाँ प्रवेश दिला पाती थी।

हनुमान जी लक्ष्मण जी के समक्ष प्रस्तुत हुए बोले- प्रभु, प्रणाम धरते हैं। प्रणाम को भी धरा जाते देख कर लक्ष्मण किष्किन्धा के बजरंगबली के उत्तरप्रदेशीकरण के प्रति निश्चिंत हुए और उनका यह विश्वास प्रबल हो गया कि उनके प्रश्नों के उत्तर अब बजरंगबली अवश्य दे सकेंगे, क्योंकि जिन प्रश्नों के उत्तर कहीं नहीं होते वे उत्तर प्रदेश में होते हैं। उत्तर प्रदेश जो उन दिनों अयोध्या था, आज भी ऐसे कई प्रेतरूपी उत्तरों का घर है, जिनके प्रश्नों का अभी निर्माण नहीं हुआ है।

इस प्रकार निश्चिंत हो कर लखन बोले, “हे बजरंगी, आप की गुप्तचर सेना लंका से माँ सीता को ढूँढ लाई, परंतु आपने एक प्रश्न का उत्तर नहीं ढूँढा। जब से आप वित्त मंत्रालय से अटैच हुए हैं आपकी गुप्तचरीय शक्तियों में कमी देखी गई है।”

बजरंगबली बोले, “प्रभु, वित्त मंत्रालय का एक-एक नोटिस स्वयं समझने हेतु मुझे गहन अध्ययन करना पड़ता है। मैं इन दिनों वित्त मंत्रालय के नोटिसों पर शोध कर के एक वृहद् टीकाकृत भाष्य लिख रहा हूँ। आगामी समय में श्रीराम की कृपा से आप मुझे डॉक्टर हनुमान के नाम से जानेंगे और मैं भी कभी राहुल जी को इंटरव्यू देता हुआ देखा जाऊँगा।”

लक्ष्मण चिंतित हो गए। बोले- “हे हनुमान, अब आपको जेएनयू का ऑडिट कम करना होगा, वहाँ के वातावरण का आप पर कुप्रभाव हो रहा है। वह छोड़े, मेरे प्रश्न का उत्तर दें। माँ सीता को मैं प्रभु के आदेशानुसार महर्षि वाल्मीकि आश्रम में छोड़ तो आया हूँ, परंतु एक प्रश्न मुझे बहुत चिंतित करता है। वह धोबी कौन था जिसने माता के चरित्र पर प्रश्न उठाया, जिसके परिणामस्वरूप आज भ्राता श्रीराम अकेले हैं? यह सत्य आप ढूँढ कर मुझे सूचित करें।”

बजरंगबली ने आदेश स्वीकार किया और जाँच में जुट गए। सप्ताह भर बाद, हनुमान प्रकट हुए और बोले, “हे प्रभु, यह तो विचित्र कथा निकली। मैंने उस गुप्तचर से पूछताछ की जिसने यह धोबी वाली बात प्रभु तक पहुँचाई थी। पता चला कि उस गुप्तचर ने धोबी को कभी देखा ही नहीं था।”

लक्ष्मण ने पूछा, “तो फिर यह प्रसंग कहाँ से आया?” तो बजरंगबली ने इसका जवाब देते हुए कहा, हे देव, उस गुप्तचर को डिजिटल न्यूज़ पढ़ने का शौक है। उसने एक वरिष्ठ पत्रकार की रिपोर्ट पढ़ी थी। उस रिपोर्ट का शीर्षक था- क्या सीता की अग्निपरीक्षा भरोसेमंद एजेंसी से कराई गई थी? क्या उस पर अयोध्यावासी विश्वास कर सकते हैं? – पूछते हैं धोबीश्रेष्ठ।”

सवाल अब भी वही था। “परंतु कौन थे यह धोबीश्रेष्ठ?”

बजरंगबली कहते हैं, “हे देव, जाँच में पता चला कि यह वरिष्ठ पत्रकार प्रत्येक दिवस ऐसे ही किसी काल्पनिक पात्र को सामने कर के प्रश्न पूछते हैं। ऐसे प्रश्नसूचक फेकन्यूज से यह मिथ्याभाषण के अभियोग से बचे रहते हैं। सूत्रों के अनुसार यह कला उन्होंने राजनीति के अनुभव के समय सीखी है, जब इनके भूतपूर्व स्वामी ‘ईज इट ट्रू’ का फुदना बाँध कर कुछ भी फेंकते रहते थे। अपने स्वामी की सेवा से निष्कासित होने के बाद भी इनका इस कला में और भूतपूर्व स्वामी में कुमार विश्वास बना हुआ है। उन्होंने उसी ‘ईज इट ट्रू’ को ‘पूछते हैं फ़लाना ढिमकाना’ का स्वरूप देकर ‘अलेजेडली’ को पीछे छोड़ दिया है।”

लक्ष्मण फिर से पूछते हैं, “परंतु धोबीकुमार कौन थे?”

हनुमान जी सीधे खड़े होकर एड़ियाँ जोड़कर बोले, “लक्ष्मण सर, जो चित्र लेख पर धोबीश्रेष्ठ के नाम से लेख पर चिपकाया गया था, वे जाँच में लंका के राजधोबी निकले। हमने केस दर्ज करने की प्रयास किया तो फ़ोटो को सांकेतिक बता कर पत्रकार वर्ग ने हमें केस वापस लेने को बाध्य किया। दरअसल इस केस में कोई धोबी है ही नहीं, यह पत्रकारों की कपोल कल्पना है।”

लक्ष्मण कहते हैं, “परंतु हे हनुमान, हम कुछ तो कर सकते होंगे?” बजरंगबली ने कहा, “हम भाग्य को धन्यवाद दे सकते हैं कि लंका युद्ध के समय वहाँ पत्रकार नहीं थे, वरना वे रावण को गणितज्ञ बता कर हमारा अयोध्या लौटना तक दूभर कर देते।” लक्ष्मण लंबी साँस ले कर चुपचाप टहलने लगे।

Saket Suryesh: A technology worker, writer and poet, and a concerned Indian. Writer, Columnist, Satirist. Published Author of Collection of Hindi Short-stories 'Ek Swar, Sahasra Pratidhwaniyaan' and English translation of Autobiography of Noted Freedom Fighter, Ram Prasad Bismil, The Revolutionary. Interested in Current Affairs, Politics and History of Bharat.