चुनावी स्नैपशॉट: वोट उसी को जो दाढ़ी के साथ पैडिक्योर, मैनिक्योर और फेशियल भी कराएगा

प्रतीकात्मक तस्वीर

ऋतुराज वसंत प्रेमी हृदयों को व्याकुल करने को प्रकट हुए, एवं मौसमी प्रेमियों ने चहुँओर हरित वातावरण से उत्साहित होकर, निकटवर्ती कवियों को धर दबोचा और उचित दरों पर पर प्रेम पत्र लिख कर पठाए ही थे। कठोर हृदय समाज की तनी हुई भृकुटियों से छुपते-छुपाते पत्र कमल-नयन, चंदन-वर्ण प्रियतमा की खिड़की पर पत्थर मे लपेट कर अभी भेजे ही गए थे। हाय, प्रेम पत्र के वाहक ढेले को फेंकने वाले प्रेमी के पाजामे के पायचों को जीर्ण शीर्ण करने वाले कुत्तों की गगनभेदी गर्जना और प्रेमी का हृदयरोगियों सा निनाद अभी थमा भी ना था।

ऐसे समय में जब प्रेमिका का उत्तर आया ही था और प्रेम प्रसंग उस खंड मे प्रविष्ट हो रहा था जब सत्तर के दशक के दक्षिणी फ़िल्मों के निर्देशक मटकों की क्यारियाँ और उत्तर के निर्देशक पुष्प-युगल ढूँढ लेते थे, चुनाव की घोषणा हो गई और आचार संहिता लागू हो गई। सब कुछ जहाँ जैसा था थम गया। प्रेमिका की आती हुई स्वीकृति अब मई की प्रतीक्षा में है। फटा पाजामा थामे हुए प्रेमी मेघदूतम के यक्ष की भाँति चुनाव स्लोगनो के माध्यम से प्रियतमा को सँदेश भेजने पर विचार कर रहा है किंतु आचार संहिता को ले कर असमँजस में है। पति के लिए प्रेम-पूर्वक पकौड़े बनाती हुई पत्नी आचार संहिता की आड़ मे पुन: लौकी की सब्ज़ी पर स्थिरप्रज्ञ हो गई है। पति मैनिफ़ेस्टो में साड़ियाँ फ़िट कर के जीवन को पुन: पकौड़ा-युक्त बनाने की जुगत में है।

देश में चुनावों की घोषणा हो गई। सोशल मीडिया पर पाँचजन्य के उद्घोष के साथ ट्विटर-वीरों ने धनुष सँधान कर लिए हैं, कीबोर्ड-रूपी गाँडीव धारण किया युवा पार्थ उत्साहपूर्वक युद्ध क्षेत्र का अवलोकन कर रहे हैं। महारथी टैग-रूपी शब्द-बाण छोड़ते हैं जो धनुष की टँकार के मध्य अनगिनत हैशटैगों का रूप धारण कर के आकाश को आच्छादित कर देते हैं।

युद्ध क्षेत्र एक सेना से दूसरी सेना की ओर आते-जाते महारथियों के पदचापों से गुँजायमान है। महान वीर ध्वजों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। कुछ योद्धा अपनी छोटी-छोटी युद्धभूमी बना कर उसी में लड़ रहे हैं। इंद्रप्रस्थ के प्रतापी सम्राट महायुद्ध की अक्षौहिणी सेनाओं के मध्य अपनी टिटिहरी सेना लिए हुए उतरे हैं, और युद्ध क्षेत्र के मध्य शक्ति प्रदर्शन की परेड करते हुए, योद्धाओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे अधेड़ होता अभिनेता मुष्टिकाएँ भींच कर, माँसपेशियाँ अकड़ा कर एक्शन सिनेमा के निर्माता को आकर्षित करने का प्रयास करता है। सैनिक वेशभूषा-धारी रिंकिया के पापा रथ ले कर पाकिस्तान सीमा की ओर प्रस्थान करने को आतुर दिखते हैं। दिल्ली सल्तनत इस चुनावी संग्राम में ओखला से बदरपुर के मध्य सीमित होती जान पड़ती है। केजरीवाल जी इसी उहापोह में हैं कि धरना करना है या नहीं करना है और अगर धरना नहीं करना है तो क्या करना है। यह चुनाव पाठ्यक्रम से बाहर हुआ जाता है। दिल्ली में कॉन्ग्रेस ने केजरीवाल जी के साथ गठबँधन से लगभग मना कर दिया है और विधि का विधान या ऊपर वाले का बेआवाज लट्ठ देखिए कि वहाँ उत्तर प्रदेश में बहनजी ने कॉन्ग्रेस को लगभग मना कर दिया है।

कॉन्ग्रेसी खेमे में अपनी ही चिन्ताएँ हैं। राजकुमार अपने घातक अस्त्रों को पिछले चुनावों में उपयोग कर के शरहीन प्रतीत हो रहे हैं। मंदिरों में चंदन लगवाने और चर्चों में बीफ बँटवाने के बाद युवराज के पास फैंसी ड्रेस के विकल्प समाप्तप्राय हैं। तरकश के राफ़ेल इत्यादि तीर रामानंद सागर के धारावाहिक के शस्त्रों की भाँति जगमगा कर धराशायी हो चुके हैं। युवराज्ञी की नाक की नानी से समानता का प्रारम्भिक उत्साह भी पत्रकारों की भद्द उड़वा कर और कार्यकर्ताओं के पिंक बाबासूट बनवाने के बाद बोरियत की कगार पर है। युवराज्ञी उत्पाती युवकों को दल में ले कर ईवीएम वाले दौर में बैलेट बॉक्स वाले युग के शौर्य की पुनर्स्थापना करने में प्रयासरत है। जिस प्रकार संध्या होते ही बछड़े माता के पास लौट आते हैं, चुनावी संध्या में भीम आर्मी के विकट वीर और हार्दिक पटेल जैसे महान योद्धा कॉन्ग्रेस की गौशाला की ओर लौट रहे हैं। सपा ‘पार्टी ही परिवार है’ और ‘परिवार ही पार्टी है’ के सिद्धांत पर पार्टी चलने दी जाए।

पार्टी प्रवक्ताओं ने अपनी कुर्सियों के पीछे मोटी-मोटी किताबें जमा ली हैं। जिनके पास किताबें नहीं हैं, उन्होंने पुस्तक की फ़ोटो वाले वॉलपेपर लगवा लिए हैं। प्रवक्ता सीरीज़ के वॉलपेपर मार्केट में वास्तविक पुस्तकों और साक्षात प्रवक्ता से अधिक डिमांड में है। चैनलों का माहौल देखते हुए सत्तर के दशक के बूथ कैप्चरिंग वाले बलिष्ठ पहलवान आज वॉलपेपर लगा कर प्रवक्ता बनने को तैयार हैं। सावन में प्रकट होने वाले मेंढकों की भाँति बैनर, पोस्टर वालों के साथ चुनाव विश्लेषको की नई खेप टीवी चैनलों पर उतर आई है। योगेन्द्र यादव और जीवीएल सरीखे सेफ़ॉलॉजिस्ट गरारे कर के वाणी की सौम्यता का अभ्यास कर रहे हैं। पुस्तक वाले वॉलपेपर की इस वर्ग में भी खासी डिमांड देखी जा रही है।

एक दिशा से जहाँ ‘चौकीदार चोर है’ का उद्घोष होता है, ‘मैं भी चौकीदार’ का जयघोष दूसरे खेमे से उठ कर उसे डुबा देता है। इस सब के बीच चुनाव आयोग मंद स्वर में जनता के बीच ‘जागते रहो’ पुकारता हुआ लाठी खटका रहा है। जनता ऊँघ सी रही है और चुनावी घोषणापत्रों की प्रतीक्षा में कलर टीवी और लैपटॉप की ख़रीददारी रोके बैठी है। पड़ोस के छगनलाल जी ने दाढ़ी भी बनाना बंद कर दिया है इस प्रण के साथ कि उनकी दाढ़ी चुनाव तक प्रत्याशी ही बनवाएँगे, और उनका मत उसी प्रतिभाशाली प्रत्याशी के पक्ष में गिरेगा जो शेव के साथ पैडिक्योर, मैनिक्योर और फेशियल करा के देगा। नोटावीरों ने चुनाव की तारीख़ों का संज्ञान लेते हुए, लॉन्ग वीकेंड की व्यवस्था कर ली है। मुफ़्त वाय-फाय वाले होटल ढूँढ लिए गए हैं ताकी वहाँ से भारत के राजनैतिक और नैतिक पतन पर ब्लॉग निर्बाध रूप से लिखे जाएँ। राग दरबारी और कैम्ब्रिज एनालिटिका आपस में संघर्षरत हैं और श्रीलाल जी के शिवपालगंज में चुनाव आयोग की लाठी की खटखटाहट सुन कर वैद्यजी पूछते हैं, यह कैसा कुकुरहाव है, और लाठी को तेल चढ़ाते तृणमूल कॉन्ग्रेस के बदरी पहलवान उत्तर देते हैं, देश में चुनाव है।

Saket Suryesh: A technology worker, writer and poet, and a concerned Indian. Writer, Columnist, Satirist. Published Author of Collection of Hindi Short-stories 'Ek Swar, Sahasra Pratidhwaniyaan' and English translation of Autobiography of Noted Freedom Fighter, Ram Prasad Bismil, The Revolutionary. Interested in Current Affairs, Politics and History of Bharat.