कारगिल दिवस पर उमर-शेहला-महबूबा भूले ट्विटर पासवर्ड, ट्वीट करने वाली स्याही खत्म

सेना के पराक्रम पर स्याही सूखी

सोशल मीडिया पर अक्सर हर दूसरी बात पर उपद्रव मचाने वाले लोगों के पास कारगिल विजय दिवस के बीस वर्ष पूरे होने पर शब्दों का अकाल दिख रहा है। इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जो ऐसे परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं, जिन्होंने सालों कश्मीर पर राज किया।

कारगिल विजय दिवस पर अपने ट्विटर एकाउंट डिटेल्स भूल चुके इन चंद लोगों में उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और शेहला रशीद प्रमुख ‘अभियुक्त’ हैं! इस सूची में कॉन्ग्रेस पार्टी के ‘संभावित अध्यक्ष’ राहुल गाँधी आते-आते रह गए, क्योंकि राहुल गाँधी के ट्विटर एकाउंट से कारगिल विजय दिवस पर कुछ देर पहले ही एक ट्वीट आया है।

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राहुल गाँधी पर जिम्मेदारियाँ ज्यादा हैं, इस कारण उनकी सुबह जरा देर से शुरू होती है। यह भी गौर करने लायक बात है कि कॉन्ग्रेस विजय दिवस मनाने से कतराती आई है, क्योंकि उसके अनुसार यह भाजपा की जीत है। यही वजह है कि UPA सरकार के ज़माने में 2004-2009 तक कारगिल दिवस नहीं मनाया जाता था। इसके बाद जब राहुल गाँधी का ट्वीट आया तो लोग उन्हें गुड मॉर्निंग कहना नहीं भूले।

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उमर अब्दुल्ला हों या फिर शेहला रशीद, सोशल मीडिया पर अफवाहों और मनगढ़ंत मुद्दों पर अपने प्रलापों की वजह से अक्सर चर्चा में बने रहने वाले इन सभी का कारगिल विजय की वर्षगाँठ पर सन्नाटे में चले जाना तो यही दर्शाता है कि इनकी खुशियाँ और प्राथमिकताएँ अन्य नागरिकों से भिन्न हैं। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कारगिल युद्ध के समय फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। आज, कारगिल विजय की 20वीं वर्षगाँठ पर वो किस मजबूरी में खामोश हो सकते हैं, यह शोध का विषय है।

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JNU की फ्रीलांस प्रोटेस्टर शेहला रशीद, जिन पर कठुआ रेप पीड़ितों के लिए जमा किए गए चंदे को अकेले डकार जाने के भी आरोप लगते आए हैं, पुलवामा आतंकी हमले के वक़्त अफवाह और उन्माद फैलाने के लिए पचहत्तर ट्वीट प्रति मिनट की रफ़्तार से ट्वीट करते हुए देखी गई थी। आज वही शेहला रशीद शायद किसी जरूरी मीटिंग या दैनिक जीवन की व्यस्तता के बीच कारगिल विजय दिवस पर भारतीय सैनिकों के नाम 2 शब्द लिख पाने में भी असमर्थ रहीं।

इस जमात में शामिल लोग कुछ छुटपुट ट्वीट कर भी रहे हैं तो वो मात्र गोबर से गैस बनाने की ही प्रक्रिया है।

एक नजर कुछ चुनिंदा ऐसी हस्तियों पर जो आम तौर पर ट्विटर पर ‘सुई से लेकर सब्बल’ तक पर निबंध लिखते देखे जाते हैं, लेकिन कारगिल विजय दिवस समारोह के अवसर पर इनके कीबोर्ड की स्याही खत्म हो गई –

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