जब सोनिया ने राहुल से कहा, ऐसे छोटे-मोटे चुनावी हार को दिल पर नहीं लेते!

अपनी माँ के साथ राहुल गाँधी (फाइल फोटो)

कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी की बैठक। राहुल जी ने त्यागपत्र दिया। सोनिया जी ने कहा, “बेटा, देश तो हमारा ही है, छोटे-मोटे चुनाव को दिल पर नहीं लेते। तुम छंगामल विद्यालय के योग्य थे, फिर भी हमने तुम्हें सेंट स्टीवेंस भेजा। मन पे मत लो, कुछ नहींं तो हथियार दलाली का काम फिर शुरू करा देंगे।”

राहुल जी के नेत्रकमल से अश्रुधारा बह निकली। यह देख कर पंजाब शिरोमणी सिद्धू जी उनके चरण कमलों मे गिर पड़े। सिद्धू जी को अपने स्थान पर पड़े देख कर पिद्दी गाँधी गुर्राए। राहुल जी ने कर कमलों से नेत्रकमल पोंछे, और चरण कमल से सिद्धू जी को हटाया।

सोनिया जी ने बुद्धिजीवी खेमे की ओर सुझाव के लिए संकेत फेंका। कोमल स्वर के स्वामी, पार्ट टाईम नेता और फुल टाईम चुनावी चिंतक सलीम भाई उर्फ़ योया जी गर्म पानी के गरारे कर के, संगीतमय स्वर में बोले, “देखिए… सारेगामापा।” वे अभी सुर ही बिठा रहे थे कि अलीमुद्दीन खान बोल पड़े, “इन्होंने तो चैनल पर बोला , कॉन्ग्रेस मस्ट डाई।”

योया जी ने डायबिटीक, सुलभ मुस्कान तत्काल धारण की और बोले, “मैंं तो कह रहा था कि कॉन्ग्रेस सभी विपक्षी दलों की धाय माँ है। आपको ही आआपा जैसे शिशु दलों को पाल पोस कर बड़ा करना है।”

“आप कोई काम के नहींं हैं। गुहा कहाँ हैं?” गुहा जी कोने मे दरी पर उकड़ूँ बैठे लिख रहे थे। सोनिया जी के आह्वाहन पर शीश उठा कर बोले, “वाह, वाह, वाह, वाह। मैंं देख पा रहा हूँ कि ऐसी परिस्थिति मे नेहरू होते तो ठीक ऐसे ही बैठते जैसे आज बाबा बैठे हैं और वे ना बैठते तो आज हम यहाँ न बैठते।” “अरे गुहा, इसी बैठा-बैठी मे पार्टी बैठ गई है। नेहरू ऐसे क्यों बैठते, अमेठी से कऊन कॉन्ग्रेसी हार सकता है।”

बरखा जी ने फ़ौरन गुटखा थूका और बोलीं, “हम इसको वीमेन इम्पावरमेंट से जोड़ सकते हैं। जब वाड्रा जी गाँव-गाँव मे कॉलोनी बना सकते हैं तो क्या राहुल अमेठी का विकास न कर सकते थे?” यह कह कर उन्होंने चहुँओर विजयी भाव से देखा और बोलीं, “बिल्कुल कर सकते थे, किंतु स्मृति ईरानी जी महिला हैं- राहुल जी चाहते थे कि वे जीतें, अत: तमाम दबावों के बावजूद उन्होंने विकास रोके रखा। राजीव शुक्ला जी जानते हैं कि कैसे दिन मे दो बार बाबा को ज़ोर से विकास आता था, पर वे उसे रोक लेते थे।”

“अरे वो आरनॉब तो कुछ भी कहला देता है बाबा से।” शैम्पूस्वामी ने तभी उस विलक्षण विधि से मस्तक को झटका दे कर अपने केश-विन्यास को नव-रूप दिया, जैसे कोई अरबी घोड़ा रेस के पूर्व कुलाँचे मारने को तत्पर हो गया हो। फिर वे बोले, “हे मातृतुल्य देवी, इस पत्नीतुल्य महिला समाज में आप एकमात्र मातृतुल्य हैं- इसका संज्ञान ले कर मैं बाबा को केरल ले गया, और वहाँ से वे विजयी हुए। केरल के लोग ज्ञानी हैं और वे बाबा की बातों को समझ गए।” कहते-कहते शैम्पूस्वामी बाईं ओर बैठी नई कार्यकर्ता को देख विचारों मे खो गए।

सोनिया जी बोलीं, “शशि, झूठ ना बोलो। वहाँ यह इसलिए नहींं जीता क्योंकि केरल वासी इसकी बातें समझ गए, बल्कि इसलिए जीता क्योंकि इसका ट्रांसलेटर अच्छा था। तुम्हारा बस चले तो अगला चुनाव तुम बाबा को लक्षद्वीप से लड़वाओगे। सैम, तुम्हारा क्या कहना है।”

सैम बोले, “हुआ सो हुआ…” यह सुनते ही राहुल जी उत्तेजित और उद्वेलित हो उठे, और सैम की ओर झपटे। सिद्धरमैया ने बीच-बचाव किया और बोले, “जाने दें बाबा, इस पर प्रेत बाधा है- इस पर अय्यर आए हुए हैं। जब तक कौए के पँख से, गिरगिट के ख़ून में डूबा कर इनके माथे पर फ़ोन का चित्र नहीं बनाया जाएगा, यह ठीक नहीं होंगे।”

माकन जी को फ़ौरन कौए के पँख के साथ केजरीवाल जी के निवास की ओर रवाना किया गया और मंथन को आगे बढ़ाया गया। राहुल बाबा चुपचाप मैगी खा रहे थे जो मानसिक दबाव कम करने के लिए माता जी ने उन्हें दी थी।

अचानक “फिच्च…” की आवाज़ आई, बरखा जी गुटखा थूक रही थीं। “कपिल, इसको मना करो। ये क्या आदत है?” सिबल जी कान खुजा कर बोले, “उमर ख़ालिद के साथ रह कर आदत हो गई है इसकी। आप बेकार चिंता कर रहीं हैं। जो माता है, वही बहन है- जो शून्य है, वह शून्य नहीं है। जो आज शून्य है, कल पिछत्तीस भी हो सकता है।”

“चुप रहो, सिबल। तुम्हारी सलाह ने अंडों की बारात लगाई है। बरखा से अच्छी ट्राईकलर वाली है। दिग्गी कहाँ हैं?” “वे सदमे मे हैं। दिग्गी भोपाल से गाड़ी की डिग्गी में छुप कर भागे हैं। कमल-कमल चिल्लाते हैं, पता नहीं भाजपा का भय है या कमलनाथ का?” “कमलनाथ का भय क्यों होगा? दिग्गी कोई सिख थोड़े हैं!” सोनिया जी बोलीं।

सिबल सहम गए और अपने आज़ाद लबों पर फ़ौरन 66-A लगाया। सोनिया जी बोलीं, “युवा कार्यकर्ताओं में रोष है। उनकी बात समझनी होगी, कुछ तो करना होगा।” पीछे से दिग्विजय जी की आवाज़ आई, “बगड़ बम।”
सोनिया जी आगे बोलीं, “क्या करना चाहिए? मोतीलाल वोरा जी से पूछा जाए!” मोतीलाल जी महाभारत काल मे संजय के टीवी का एंटीना घुमा कर रिसेप्शन ठीक करते थे, और सब परिस्थिति पर नज़र रखते थे। बोले, “किसी को इस्तीफ़ा देना होगा। पर किसे?”

दृष्टि एक चेहरे से दूसरे पर तैरती चली गई। ऐसे मातमी माहौल में जब कॉन्ग्रेस मुख्यालय एनडीटीवी-सा लगने लगा, तो कोई बोला, “चाय पी लें?” सोनिया जी ने अनमने भाव से संदेश बाहर भेजा। बाहर श्रद्धा भाव से नामपट्टिका निहारतीं पल्लवी जी ने मुसम्बी देवी को पटखनी देते हुए रामखिलावन को चाय लाने का आदेश पहुँचाया।

सोनिया जी गँभीरता से बोलीं, “लोग कहते हैं राहुल को इस्तीफ़ा देना चाहिए।” चिदम्बरम बोले, “हम क्या मर गए हैं?” “तो आप दे रहे हैं इस्तीफ़ा?”

“नहीं, नहीं। मेरा मतलब यह था कि यदि राहुल जी ठीक से संवाद नहींं कर पाए जनता से, तो इसका कारण उनका नींद में होना था। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उन्हें अच्छी चाय नहीं मिलती थी। मैंंने पहले रामखिलावन को निकालने को कहा था, तो उन्होंने राम को मिथक बता कर मना कर दिया। अब समय आ गया है कि पार्टी हित में कठोर निर्णय लिए जाएँ। रामखिलावन, चाय की ट्रे रखो और इस्तीफ़ा दो।”

सोनिया जी प्रसन्न हो गईं। बोलीं, “तुम्हारी इसी नैरेटिव घुमाने की कला के कारण हम तुम्हारे बेटे की सुपरमैन मुद्रा में ईडी ऑफ़िस जाने जैसी बेहूदगी बर्दाश्त करते हैं।” फिर रामखिलावन की ओर घूम कर बोलीं, “रामखिलावन, इस्तीफ़ा दो।”

“पर आगे चाय कौन देगा मैडम?”
“तुम उसकी चिंता मत करो, मनमोहन जी ख़ाली हैं। तुम पेपर डालो।”
मुसम्मी देवी चीख़ते हुए कैमरे की ओर दौड़ीं, “रामखिलावन हैज रिजाईन्ड, राहुल जी हैज अराईव्ड।”
राहुल जी मैगी खाने मे व्यस्त हो गए।

Saket Suryesh: A technology worker, writer and poet, and a concerned Indian. Writer, Columnist, Satirist. Published Author of Collection of Hindi Short-stories 'Ek Swar, Sahasra Pratidhwaniyaan' and English translation of Autobiography of Noted Freedom Fighter, Ram Prasad Bismil, The Revolutionary. Interested in Current Affairs, Politics and History of Bharat.