महाराष्ट्र का ‘चाणक्य’ जिसने अंग्रेजों, निज़ाम, टीपू सबको बाँध कर रखा: इस चितपावन ब्राह्मण की कूटनीति का यूरोप ने भी माना लोहा, गुरु रामदास की किताब से बदला जीवन

नाना फडणवीस ने एक मुश्किल समय में मराठा सत्ता का मार्गदर्शन किया (फाइल फोटो)

मराठा साम्राज्य के उद्भव के साथ ही मुगलों का पतन शुरू हो गया था यही कारण था कि औरंगजेब के समय अपने चरम को छूने वाली मुगलिया सत्ता उसके मरने के बाद ताश के पत्तों की तरह बिखरने लगी। छत्रपति शिवाजी महारज, संभाजी और साहूजी के बाद मराठा साम्राज्य में छत्रपति की जगह पेशवा का दबदबा रहने लगा, जो सेनापति होते थे। नानाजी फडणवीस एक ऐसा नाम है, जो छत्रपति या पेशवा नहीं थे, लेकिन उन्होंने इन दोनों को मजबूत करने में अपनी बुद्धिमत्ता और बहादुरी से कोई कसर नहीं छोड़ी।

नाना फडणवीस का जन्म सन् 1742 में 12 फरवरी को हुआ था, जबकि उनका निधन 13 मार्च, 1800 को हुआ। उनसे पहले हम इटली के निकोलो मैकियावेली के बारे में जानते हैं, जिन्हें आधुनिक राजनीतिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। 15वीं-16वीं शताब्दी में जब यूरोप मध्यकाल से आधुनिक युग में घुस रहा था, तब मैकियावेली उस दौर के सबसे बड़े कूटनीतिज्ञ बन कर उभरे। फ्लोरेंस में जन्मे निकोलो से ही नाना फडणवीस की तुलना विदेशियों ने की।

बालाजी जनार्दन भानु, जिन्हें आगे चल कर नाना फडणवीस कहा गया – वो एक चितपावन ब्राह्मण थे। महात्मा गाँधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में उनके समर्थकों ने बड़ी संख्या में चितपावन ब्राह्मणों का नरसंहार किया था। भीड़ ने वीर विनायक दामोदर के भाई नारायण सावरकर की भी हत्या कर दी थी। वो भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे। बालाजी का जन्म सतारा में हुआ था। पेशवा बालाजी विश्वनाथ भट्ट और भानु के परिवार का अच्छा रिश्ता था।

बालाजी महादजी, जो कि फडणवीस के नाना थे, उन्होंने मुगलों की एक साजिश से पेशवा की जान बचाई थी। पेशवा जब मराठा साम्राज्य के सर्वेसर्वा बन गए, तब फडणवीस उनके खासमखास हो गए और सरकार में धमक रखने लगे। पेशवा ने नाना फडणवीस के लिए भी शिक्षा-दीक्षा की वही व्यवस्था की थी, जो उन्होंने अपने बेटों विश्वास राव, माधव राव और नारायण राव के लिए की थी। नाना फडणवीस पानीपत के तीसरे युद्ध में बच कर निकल गए थे।

उस युद्ध में दुर्रानी ने मुगलों व अन्य इस्लामी ताकतों के बल पर मराठा साम्राज्य को बड़ा नुकसान पहुँचाया था, जिससे कुछ वर्षों के लिए उनका विजय रथ रुक गया था। नाना फडणवीस ने इसके बाद मराठाओं को आगे बढ़ने में मदद की और ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के बढ़ते प्रभाव के बीच अपनी कूटनीति से साम्राज्य को मजबूत किया। उन्होंने अंग्रेजों, मैसूर के टीपू सुल्तान और हैदराबाद के निजाम के खिलाफ युद्ध में रणनीति बनाई और उन्हें परास्त किया।

भीमाशंकर मंदिर के शिखर के निर्माण का श्रेय नाना फडणवीस को ही दिया जाता है। अहिल्याबाई, तुकोजी और माधोजी के चल बसने के बावजूद अंग्रेजों के खतरों के बीच नाना फडणवीस ने मराठों को एकता के सूत्र में बाँधे रखा था। लेकिन, सन् 1800 में उनके निधन के बाद मराठे बँट गए और सिंधिया-होल्कर आपस में लड़ने लगे। पेशवा ने सिंधिया का साथ दिया। पेशवा को अंग्रेजों के साथ ‘बेसिन की संधि’ करने को मजबूर होना पड़ा।

नाना फडणवीस के बारे में कहा जाता है कि वो असाधारण बुद्धि के स्वामी थे और एक योद्धा न होने के बावजूद युद्धकला की समझ रखते थे। उनकी सूझबूझ के कारण ही मैसूर, हैदराबाद और अंग्रेजों से मराठे बचे रहे। सन् 1789 में उन्होंने महादजी सिंधिया को पत्र लिख कर कहा था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करना हिन्दू धर्म के लिए एक योग्य कार्य होगा। उनका मानना था कि इस कार्य से न सिर्फ उस समय की मराठा सरकार के लोगों के नाम हिन्दुओं के दिमाग में छप जाएँगे, बल्कि इससे राज्य की भलाई भी होगी और प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।

यही वो समय भी था, जब मुग़ल बादशाह शाह आलम को मराठों ने निर्देश दिया कि वो गौहत्या को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी करे। नाना फडणवीस को मात्र 16 वर्ष की उम्र में सदाशिव राव का सचिव नियुक्त किया गया था। उन्होंने अहमदशाह अब्दाली के विरुद्ध पानीपत की लड़ाई में हिस्सा लिया। इस युद्ध के बाद मराठा सेनाओं को भागना पड़ा। इस पूरे प्रकरण में नाना फडणवीस की माँ और पत्नी कहीं गम हो गईं। उन पर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ा और वो दुनिया से अलग-थलग रहने लगे।

लेकिन, इस दौरान समर्थ गुरु रामदास की एक पुस्तक ‘दास बोध’ का उन्होंने अध्ययन किया और उनका दिमाग बदला। उन्होंने तब महाराष्ट्र के लिए कुछ करने का निर्णय लिया। उनके मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री बनने के बाद अंग्रेजों को दो बार मुँह की खानी पड़ी। उन्होंने लगभग 40 वर्षों तक मराठा कूटनीति के शीर्ष पर खुद को बनाए रखा। महाराष्ट्र के कई जमींदार उस दौरान गद्दार हो गए थे, लेकिन अपने जीवित रहते नाना फडणवीस ने गद्दारों को रोके रखा।

पेशवा नाना साहब (बालाजी) तो पानीपत की हार की व्यथा में ही चल बसे, जिसके बाद उनके 16-17 साल के बेटे माधव राव को पेशवा बनाया गया। उन्होंने नाना फडणवीस के मार्गदर्शन में फिर से मराठा प्रभुत्व स्थापित किया और खोई गरिमा को वापस हासिल किया। माधव राव की युवावस्था में ही मौत के बाद उनके बेटे नारायण राव ने बागडोर सँभाली। लेकिन, वो उतने योग्य साबित नहीं हुए। उधर पेशवा नाना का भाई भी लॉबिंग में लगा था।

राघोबा ने नारायण राव को मरवा दिया, लेकिन नाना फडणवीस ने एक हत्यारे को पेशवा नहीं बनाया। उन्होंने ‘अष्ट प्रधान’ सदस्यों की मदद से नारायण राव के बेटे सवाई माधो राव को पेशवा बना दिया। नाना फडणवीस को मराठा ख़ुफ़िया विभाग को मजबूत करने के लिए भी जाना जाता है। उनका ख़ुफ़िया विभाग इतना मजबूत था कि देश में कहीं कोई महत्वपूर्ण घटना होती थी तो नाना फडणवीस के पास उसकी सूचना अलग-अलग सूत्रों से पूरे विवरण के साथ पहुँचती थी।

फिर वो अपने अध्ययन कक्ष में बैठ कर मनन करते थे कि आगे क्या करना है और क्या नहीं। उन्होंने महादजी सिंधिया से कई बार कहा था कि अगर अंग्रेजों को छूट दे दी गई तो वो पूरे देश को गुलाम बना देंगे। अंग्रेजों ने नाना फडणवीस को रास्ते से हटाने की कई बार कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए। उलटे, निजाम और भोंसले को नाना फडणवीस ने अंग्रेजों के खिलाफ कर दिया। वो एक दूरदृष्टि वाले नेता थे, जिन्हें बखूबी पता था कि राज्य के असली दुश्मन कौन हैं और कौन नहीं। नाना फडणवीस के वक्त मराठों ने जो संधियाँ की, उनकी बात कभी और।

अनुपम कुमार सिंह: चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.