राजस्थान के डीग में मिले महाभारत काल के अवशेष, मौर्यकालीन मातृदेवी का सिर भी मिला: तमिलनाडु में शोधार्थियों को मिला चोल राजा का शिलालेख

तमिलनाडु में मिला चोल राजा का शिलालेख (ऊपर) और डीग में मिली मातृदेवी एवं अन्य अवशेष (साभार: भास्कर/न्यूज18)

राजस्थान के डीग जिले के बहज गाँव में खोदाई के दौरान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को महाभारत कालीन, महाजनपद कालीन, मौर्य कालीन, कुषाण कालीन अवशेष मिले हैं। गाँव में पिछले 4 महीने से खोदाई का काम जारी है। वहीं, तमिलनाडु के तिरुवेन्नईलालुर के पास के पास शोधकर्ताओं की एक टीम को चोल राजा आदित्य करिकालन से जुड़ा एक शिलालेख मिला है।

ब्रज क्षेत्र में आने वाले डीग जिले के बहज गाँव में खोदाई के दौरान हड्डियों से बने सुई के आकार के औजार मिले हैं। इन्हें जयपुर पुरातत्व विभाग को भेज दिया गया है। ASI का कहना है कि इस तरह के अवशेष और औजार अब तक भारत में कहीं नहीं मिले हैं। खोदाई में अब तक 2,500 साल से भी ज्यादा पुराने अवशेष मिल चुके हैं हैं।

इन अवशेषों में महाभारत कालीन मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े, यज्ञ कुंड, धातु के औजार, सिक्के, अश्विनी कुमारों की मूर्ति, मौर्यकालीन मातृदेवी प्रतिमा का सिर, फलक, अस्थियों से निर्मित उपकरण और मिले हैं। अश्विनी कुमारों का नाम महाभारत काल में द्रस्त्र और नास्त्य था। अश्विनी कुमारों को नकुल और सहदेव का मानस पिता माना जाता है।

बताया जा रहा है कि खुदाई में बहज गाँव से 700 ईसा पूर्व अश्विनी कुमारों के प्रमाण ही नहीं, बल्कि हजारों साल पहले यज्ञ, धार्मिक अनुष्ठान होने के प्रमाण भी मिले हैं। हवन कुंड से निकली मिट्टी को अलग रखा जा रहा है। इसका विशेष महत्व बताया जा रहा है। हवन कुंड से धातु के सिक्के भी मिले हैं। 

इतिहास के जानकारों का मानना है कि डीग को स्कंद पुराण में दीर्घपुर कहा गया है। डीग की मथुरा से 25 मील दूरी है। द्वापर युग से लेकर कुषाण, मौर्य, गुप्त, मुगल काल तक के चिह्न इस क्षेत्र में मिल चुके हैं। यहाँ कुषाण नरेश हुविष्क एवं वासुदेव के भी सिक्के यह से मिले हैं।

जयपुर मंडल के अधीक्षण पुरातत्वविद डॉक्टर विनय गुप्ता ने बताया कि अब ब्रज क्षेत्र में लगभग 50 साल के लम्बे अंतराल के बाद बड़े स्तर पर खोदाई का कार्य हुआ है। इससे पहले हुई खोदाई में इस तरह के प्रमाण नहीं मिले थे। उन्होंने यह भी कहा कि खोदाई का काम अभी कुछ दिन और जारी रहेगा। इस दौरान अन्य अवशेष मिलने की भी संभावना है।

वहीं, तमिलनाडु के तिरुवेन्नईलालुर में हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग के शोधकर्ताओं ने एक शिलालेख की खोज की है। यह शिलालेख चोल राजा आदित्य करिकालन के राज्य पर प्रकाश डालेगा।
तिरुवेन्नईलालुर के पास इमप्पुर में हजारों साल पुराने वेदपुरीसावरर मंदिर का निरीक्षण का काम चल रहा है।

टीम के सदस्य रमेश ने कहा, “हमें सुंदर चोल के बेटे और राजा राजा चोल के छोटे भाई आदित्य करिकालन के शासन काल का एक शिलालेख मिला है। इसके पहले चेपेडु (ताँबा शिलालेख) तिरुवलंगाडु, चेन्नई और एसलाम में पाया गया था। जर्मनी के एक संग्रहालय में रखे इस शिलालेख में पांडियन राजा वीरपांडियन को हराने और तंजौर के महल में उसका सिर रखने के उनके कृत्य का उल्लेख है।”

विल्लुपुरम क्षेत्रों में उनके शिलालेखों की उपस्थिति के बारे में बताते हुए उन्होंने आगे कहा, “सुंदर चोल ने थोंडाईमंडलम और थिरुमुनैपडी क्षेत्रों को करिकालन के शासन को सौंपा। हमने पहले पेरंगियूर और तिरुमुंडीश्वरम में शिलालेख खोजे हैं और अब यह हालिया खोज हमारी समझ को बढ़ाने में मदद करेगी।”

एमाप्पुर में पाए गए नए शिलालेख के बारे में बताते हुए रमेश ने कहा, “यह स्वस्ति श्री वीरपांडियन थलाई कोंडा कोप्पारा केसरी से शुरू होता है और 960 ईस्वी का है। इसमें इस क्षेत्र का उल्लेख एमाप्पेरुर नट्टू एमाप्पेरुर देश के थिरुमुनैपडी के रूप में वर्णित है, जो इसका मुख्यालय था। समय के साथ यह एमाप्पुर में विकसित हुआ।”

उन्होंने आगे कह, “एक चरवाहे ने मंदिर में तिरुवलंदुरई अज़वार के लिए नंदा विलाक्कु (एक तेल का दीपक) को बनाए रखने के लिए 96 बकरियों का योगदान दिया था, जो सूर्य और चंद्रमा के अस्तित्व तक चलने वाली परंपरा को दर्शाता है। इन बकरियों को मंदिर के ट्रस्टी पान मेगेश्वर को सौंप दिया गया था।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया