एमएस गोलवलकर… वो ‘गुरुजी’ जिनका संगठन मंत्र और तंत्र आज भी प्रासंगिक: पटेल और वाजपेयी दोनों जिनके कायल

एमएस गोलवलकर, वो जो नाम से नहीं... 'गुरुजी' से प्रसिद्ध

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अधिकतर कार्यक्रमों में मुख्यतः तीन चित्र मंच पर दिखाई देते हैं। सबसे बाईं ओर डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का, उसके बाद बीच में भारत माता का और सबसे दाहिनी ओर माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर का।

स्वाभाविक है डॉ. हेडगेवार संघ के संस्थापक रहे हैं और भारत माता संघ के स्वयंसेवकों के लिए आराध्य हैं, इसलिए उनका चित्र लगाया जाता है। तीसरा चित्र एमएस गोलवलकर का होता है, जो मात्र उनके संघ के द्वितीय सरसंघचालक होने के नाते नहीं बल्कि उनके व्यक्तित्व की विशेताओं के कारण लगाया जाता है।

आज यह जानना और भी जरूरी हो जाता है कि किन कारणों से अपनी मृत्यु के इतने वर्षों के बाद भी एमएस गोलवलकर लाखों स्वयंसेवकों के लिए मार्गदर्शक हैं और क्यों आज भी हर संघ स्वयंसेवक उनको ”गुरुजी” के नाम से पुकारता है। क्योंकि वो गोलवलकर ही थे, जिनके कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लम्बे संघर्ष और उथल-पुथल के बाद भी आज देश का ही नहीं अपितु दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन पाया है।

आज के परिप्रेक्ष्य में उनके संगठन तंत्र और मंत्र की विशेषता जानना और भी प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि उनके मार्गदर्शन में स्थापित सभी संगठन चाहे वह किसी भी क्षेत्र में हो… जैसे शिक्षा, सेवा, वनवासी कल्याण, मजदूर उत्थान, राजनीति या अन्य हर क्षेत्र में… वह देश या दुनिया के सबसे मुख्य संगठनों में से एक है।

एमएस गोलवलकर 1940–1973 तक संघ के सरसंघचालक रहे और यह वही दौर था, जब संघ ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया और बाद में महात्मा गाँधी का हत्यारा होने का आरोप भी सहा सबूतों के अभाव में फिर प्रतिबंध हटाया भी जाता है और 1962 के भारत-चीन युद्ध में संघ स्वयंसेवकों की भूमिका देख कर 1963 में राजपथ पर परेड में भाग लेने के लिए बुलाया भी जाता है।

आज संघ का स्वयंसेवक राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक का दायित्व निभा रहा है। यह “गुरुजी” की कार्यशैली ही थी, जिसके कारण भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार पटेल दिनांक 11 अगस्त 1948 को उनके लिखे पत्र के उत्तर में लिखते हैं,

”राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने संकटकाल में हिन्दू समाज की सेवा की, इसमें कोई संदेह नहीं है। ऐसे क्षेत्रों में, जहाँ उनकी सहायता की आवश्यकता थी, संघ के नवयुवकों ने स्त्रियों तथा बच्चों की रक्षा की तथा उनके लिए काफी काम किया।”

एमएस गोलवलकर ऐसे संगठनकर्ता थे, जिनके संगठन तंत्र और मंत्र चुनौतियों का सामना करना भी सिखाते हैं और साथ ही साथ दृढ़ होकर विस्तार का मार्ग भी दिखलाते हैं। अपने कार्य के प्रति अद्भुत वैचारिक स्पष्टता थी गोलवलकर में। यह उनकी वैचारिक स्पष्टता और स्पष्ट दृष्टिकोण ही था, जिसके कारण वह इतने विशाल जन समर्थन और प्रसिद्धि पाने के बाद भी राजनीति से दूर रह कर जीवन भर मनुष्य निर्माण के कार्य में, व्यक्ति को समाज से जोड़ने की साधना में और हिन्दू समाज को एकत्रित करने में लगे रहे।

जब गोलवलकर 1940 में संघ के द्वितीय सरसंघचालक बने, तब तक संघ का कार्य देश के हर प्रान्त और जिले तक नहीं पहुँचा था। लेकिन अपने दायित्व पर रहते हुए उन्होंने इस लक्ष्य को पूर्ण किया। कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण, उनका चिंतन, उनके सुख-दुःख में सहभागी होना… यह एमएस गोलवलकर की दिनचर्या का अहम भाग बन गया था। उन्होंने अपने साथी कार्यकर्ताओं को उपदेश नहीं अपितु स्वयं के उद्धरण से प्रेरित किया।

डॉ कृष्ण कुमार बवेजा द्वारा लिखित पुस्तक ‘श्री गुरुजी – व्यक्तित्व एवं कृतित्व’ के अनुसार “गुरुजी” को यह कदापि पसन्द नहीं था कि कोई भी सेवाकार्य जनता पर उपकार की भावना से किया जाए। उनके अनुसार,

”सेवा हिन्दू जीवन-दर्शन की प्रमुख विशेषता है। निःस्वार्थ सेवा ही उसका स्वभाव है। जहाँ स्वार्थ है, वह सेवा नहीं हो सकती। स्वार्थ का प्रवेश होते ही, वह सेवा न रह कर व्यापार बन जाती है।”

यह एमएस गोलवलकर की असीम साधना ही थी, जिसके कारण संघ इतने उथल-पुथल के बाद भी राष्ट्रजागरण का केंद्र-बिंदु बना और भारत की जनता का आकर्षण केंद्र ही नहीं बल्कि आशा का केंद्र भी बन पाया। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कहते थे कि ”श्री गुरुजी” के महान व्यक्तित्व में समर्थ स्वामी रामदास की भक्ति तथा शिवाजी महाराज की शक्ति का अपूर्व संगम था।

आत्मविस्मृत हिन्दू समाज को स्वत्व का साक्षात्कार करा कर “गुरुजी” ने उसे संगठित शक्तिशाली तथा आत्मविश्वास से परिपूर्ण बनाने के राष्ट्रकार्य के लिए अपने शरीर का कण-कण और जीवन का क्षण-क्षण समर्पित कर दिया। आज भी लाखों संघ स्वयंसेवक एमएस गोलवलकर को ”गुरुजी” के नाम से पुकारते हैं और वह सैकड़ों युवाओं को राष्ट्र समर्पित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं।

nikhilyadav: Nikhil Yadav is Presently Prant Yuva Pramukh, Vivekananda Kendra, Uttar Prant. He had obtained Graduation in History (Hons ) from Delhi College Of Arts and Commerce, University of Delhi and Maters in History from Department of History, University of Delhi. He had also obtained COP in Vedic Culture and Heritage from Jawaharlal Nehru University New Delhi.Presently he is a research scholar in School of Social Science JNU ,New Delhi . He coordinates a youth program Young India: Know Thyself which is organized across educational institutions of Delhi, especially Delhi University, Jawaharlal Nehru University (JNU ), and Ambedkar University. He had delivered lectures and given presentations at South Asian University, New Delhi, Various colleges of Delhi University, and Jawaharlal Nehru University among others.