26 जनवरी स्पेशल: मोर के राष्ट्रीय पक्षी बनने की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

राष्ट्रीय पक्षी मोर

मोर, जिसका ख़्याल आते ही एक ऐसा मनमोहक दृश्य उभरकर सामने आता है, जो बेहद सुखद एहसास कराता है। मोर को नाचते हुए देखना भला किसे रोमांचित नहीं करता। अपने एक रंग-बिरंगे पंखों से मंत्रमुग्ध कर देना वाला पक्षी ‘मोर’ का अस्तित्व केवल एक पक्षी होने तक ही नहीं सीमित है बल्कि यह हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी है।

आपको बता दें कि भारत सरकार द्वारा मोर को 26 जनवरी,1963 में राष्ट्रीय पक्षी के रूप में घोषित किया गया। ‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है, इंग्लिश भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं। संस्कृत भाषा में मोर को ‘मयूर’ कहा जाता है।

मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया गया

जानकारी के मुताबिक़, राष्ट्रीय पक्षी के रूप में मोर का चयन यूँ ही रातों-रात नहीं हुआ था बल्कि इस पर काफ़ी सोच-विचार किया गया था। माधवी कृष्‍णन द्वारा 1961 में लिखे गए उनके एक लेख के अनुसार भारतीय वन्‍य प्राणी बोर्ड की ऊटाकामुंड में बैठक हुई थी। इस बैठक में राष्ट्रीय पक्षी के लिए अन्य पक्षियों भी विचार किया गया था, जिनमें सारस, क्रेन, ब्राह्मिणी काइट, बस्टर्ड और हंस का नाम शामिल थे। दरअसल राष्ट्रीय पक्षी के चयन के लिए जो गाइडलाइन्स थीं उनके मुताबिक़ जिसे भी राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया जाए उसकी देश के सभी हिस्सों में मौजूदगी भी होनी चाहिए।

इसके अलावा इस बात पर भी ग़ौर किया गया कि जिस भी पक्षी का चयन किया जाए, उसके रूप से देश का हर नागरिक वाक़िफ़ हो यानी उसकी पहचान सरल हो। इसके अलावा राष्ट्रीय पक्षी को पूरी तरह से भारतीय संस्कृति और परंपरा से ओत-प्रोत होना चाहिए।

बैठक में गहन चर्चा के बाद मोर को इन सभी मानदंडों पर खरा पाया गया जिसके परिणामस्वरूप मोर को भारत का राष्‍ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया क्‍योंकि यह शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक भी है। इसके अलावा आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नीला मोर हमारे पड़ोसी देश म्यांमार और श्रीलंका का भी राष्ट्रीय पक्षी है।

राजाओं-महाराजाओं व कवियों की भी पसंद था मोर

हिन्दु मान्यताओं के अनुसार मोर को कार्तिकेय के वाहन ‘मुरुगन’ के रूप से भी जाना जाता है। कई धार्मिक कथाओं में भी मोर का ज़िक्र होता है। भगवान कृष्ण ने तो अपने मुकुट में मोर पंख धारण किया हुआ है, और इसी से मोर के धार्मिक महत्व को समझा जा सकता है। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी ऊपर का दर्जा दिया है।

अनेकों राजाओं-महाराजाओं को भी मोर से काफ़ी लगाव था। जिसका प्रमाण उस दौर के राजाओं के शासनकाल के दौरान कुछ तथ्यों से मिलता है। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जिन सिक्कों का चलन था उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह शाहजहाँ जिस तख़्त पर बैठते थे, उसकी संरचना मोर जैसे आकार की थी। दो मोरों के बीच बादशाह की गद्दी हुआ करती थी और उसके पीछे पंख फैलाए मोर। हीरे-पन्नों जैसे क़ीमती रत्नों से जड़ित इस तख़्त का नाम ‘तख़्त-ए-ताऊस’ था, जिसे अरबी भाषा में ‘ताऊस’ कहा जाता था।

मोर को राष्ट्रीय पक्षी के रूप में घोषित किए जाने के पीछे केवल उसकी सुंदरता ही नहीं बल्कि उसकी लोकप्रियता भी है। एक ऐसी लोकप्रियता जिसका नाता आज से नहीं बल्कि पिछले कई वर्षों से है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया