‘देख क्या रहे हो, गोली चलाओ’: बेअंत के कहते ही इंदिरा गाँधी पर सतवंत ने खाली कर दी पूरी कार्बाइन… केहर के साथ फाँसी पर लटकाया गया

इंदिरा गाँधी बेअंत सिंह के साथ (बाएँ), सतवंत सिंह और केहर सिंह (दाएँ)

6 जनवरी 1989 वह तारीख है, जिस दिन सुबह 6 बजे दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के हत्यारों सतवंत सिंह और केहर सिंह (हत्या की साजिश में शामिल) को फाँसी दी गई थी। तकरीबन 4 साल पहले सतवंत सिंह और बेअंत सिंह इंदिरा गाँधी के सुरक्षाकर्मी थे। इन दोनों ने 31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा को उनके सरकारी आवास पर गोलियों से भून डाला था। इस साजिश में केहर सिंह भी शामिल था। बेअंत सिंह को उसी वक्त मौके पर मौजूद अन्य सुरक्षाकर्मियों ने मार गिराया था। आइए आपको बताते हैं कि 37 साल पहले यानी 31 अक्टूबर 1984 को कैसे इंदिरा गाँधी की हत्या की गई थी?

30 अक्टूबर 1984 के दिन इंदिरा गाँधी ओडिशा में चुनाव प्रचार करने के बाद दिल्ली पहुँची थी। ओडिशा से लौटने के बाद ​इंदिरा को यही सलाह दी गई थी कि वह लोगों से ना मिलें, लेकिन उस दिन एक आयरिश डॉक्यूमेंट्री मेकर पीटर उस्तीनोव से उनकी मुलाकात तय थी। पीटर पूर्व प्रधानमंत्री पर एक डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे। इसके लिए इंदिरा पीटर को इंटरव्यू देने की तैयारी कर रही थीं। सुबह तकरीबन नौ बजे इंटरव्यू की तैयारियाँ पूरी हो चुकी थी।

इसके बाद वह (इंदिरा) सफदरजंग रोड को अकबर रोड से जोड़ने वाले गेट के पास पहुँची, जहाँ दिल्ली पुलिस की सिक्योरिटी विंग के कॉन्स्टेबल बेअंत सिंह की तैनाती थी और बगल में सतवंत सिंह हाथों में ऑटोमैटिक कार्बाइन गन लिए खड़ा था। इंदिरा गाँधी जैसे ही उनके पास पहुँची उन्हें नमस्ते की आवाज आई और कुछ पलों में गोली चलने की आवाज। बेअंत सिंह ने अपनी सर्विस रिवाल्वर से उन पर गोली चला दी। किसी को कुछ समझ नहीं आया। बिना देर किए बेअंत सिंह ने दो और गोलियाँ इंदिरा के पेट में मार दी। 3 गोलियाँ लगते ही इंदिरा गाँधी जमीन पर गिर गईं और बोली तुम लोग ये क्या कर रहे हो?

इसके बाद बेअंत सिंह ने साथ खड़े सतवंत सिंह से चिल्लाकर कहा- देख क्या रहे हो, गोली चलाओ। यह सुनते ही सतवंत ने अपनी पूरी कार्बाइन इंदिरा और उन्हें बचाने दौड़े सब इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल पर खाली कर दी। उसने काफी देर तक ट्रिगर से हाथ नहीं उठाया। सतवंत सिंह इंदिरा के शरीर में कुल 30 गोलियाँ उतार चुका था। इस हादसे से कुछ देर पहले ही इंदिरा गाँधी और उनके निजी सचिव आर के धवन बातें कर रहे थे। वे इस हमले से बिल्कुल बेखबर थे। गोलियाँ चलाने के बाद बेअंत सिं​ह ने कहा कि हम अपना काम कर चुके हैं अब आप अपना काम करें, लेकिन वहाँ मौजूद आर के धवन के दिमाग में केवल एम्बुलेंस का ख्याल आया।

बेअंत सिंह को वहीं मौजूद एसीपी दिनेश चंद ने पकड़ लिया और पास में खड़ा हेड कॉन्स्टेबल डॉक्टर बुलाने के लिए दौड़ा। उधर इंटरव्यू के लिए बाहर इंतजार कर रहे पीटर ने गोलियों की आवाज सुनी, लेकिन वह वहीं बैठे इंतजार करते रहे।

इसके बाद इंदिरा को क्षत-विक्षत हालत में एम्स ले जाया गया, जहाँ डॉक्टरों की टीम उन्हें बचा नहीं पाई। 31 अक्टूबर 1984 को लगभग सवा दो बजे बजे इंदिरा गाँधी की मृत्यु का मेडिकल बुलेटिन जारी कर दिया गया। इसके बाद आनन-फानन में राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, जिसके तुरंत बाद ही देश में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे, जिसमें हजारों सिखों की जान चली गई थी।

वहीं, प्रधानमंत्री आवास के सुरक्षा गार्डों ने दोनों हमलावरों को पकड़ लिया था। बेअंत सिंह भागने की कोशिश में सुरक्षा गार्डों की गोलियों से मारा गया। इसके बाद सतवंत सिंह और केहर सिंह को (बेअंत सिंह का रिश्तेदार) और बलबीर सिंह (जिस पर वीभत्स साजिश रचने का आरोप था) को भी पकड़ लिया गया था।

यह हाई-प्रोफाइल मामला हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुँचा। बचाव पक्ष की ओर से राम जेठमलानी, पी.एन. लेखी और आर.एस. सोढ़ी जैसे बड़े-बड़े वकील पेश हुए। इन वकीलों की दलीलों के कारण कई बार हत्यारों की फाँसी को टाला गया, यहाँ तक कि सबूतों के अभाव में बलबीर सिंह को बरी भी कर दिया गया था। इसके बाद सतवंत सिंह और केहर सिंह को फाँसी की सजा सुनाई जानी थी, लेकिन इन दोनों की फाँसी को भी कई बार टाला गया। आखिरकार, 6 जनवरी 1989 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद इंदिरा के हत्यारों को फाँसी दी गई।