राजीव गाँधी से लेकर मनमोहन तक जो हो न सका, वह काम मोदी सरकार में पूर्ण: त्रिंकोमाली से श्रीलंका को संजीवनी, चीन को झटका

अपने श्रीलंकाई समकक्ष के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)

चीन के कर्ज जाल में फँस कंगाली के कगार पर पहुँच चुके श्रीलंका के साथ भारत ने रणनीतिक ल‍िहाज से बेहद अहम समझौता किया है। इसके तहत भारत और श्रीलंका मिलकर त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर (Trinkomali oil tank farm) को विकसित करेंगे। इसे चीन के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि इससे श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को भी बड़ी राहत मिलेगी।

समझौता के तहत दोनों देश मिलकर इस ऑयल टैंक फॉर्म को पुनर्जीवित करेंगे। इस मसले पर मंगलवार (4 जनवरी 2022) को श्रीलंका सरकार ने कहा कि भारत के साथ तीन समझौतों की समीक्षा के बाद दोनों पक्ष इस परियोजना का संयुक्त रूप से विकास करने पर सहमत हुए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, श्रीलंका के कैबिनेट ने सीलोन पेट्रोलियम कार्पोरेशन और इंडियन ऑयल कार्पोरेशन के लोकल ऑपरेटर्स को क्रमश: 24 और 14 तेल टैंक आवंटित करने के प्रस्ताव को मंजूर कर दिया है। वहीं 61 तेल टैंकों का विकास त्रिंको पेट्रोलियम टर्मिनल प्राइवेट लिमिटेड करेगी। इसमें 51 फीसदी हिस्सेदारी सीलोन की और 49 फीसदी हिस्सेदारी इंडियन ऑयल की होगी। श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री उदय गमनपिला (Uday Gammanpila) के मुताबिक, दोनों देशों के बीच ये एग्रीमेंट अगले 50 सालों के लिए हुआ है।

इस मामले में अगला कदम दोनों देशों के बीच तीन औपचारिक समझौते करना होगा। इसमें से दो समझौते सीलोन पेट्रोलियम और इंडियन ऑयल के बीच होगा। वहीं तीसरा समझौता श्रीलंकाई सरकार और इंडियन ऑयल के बीच होगा। उल्लेखनीय है कि 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने श्रीलंका का दौरा किया था। उसी दौरान इस परियोजना के पुनर्विकास को लेकर सहमति बनी थी।

गौरतलब है कि श्रीलंका की गोटाबाया राजपक्षे सरकार ने जिस त्रिंकोमाली समझौते को मंजूरी दी है उसका जिक्र करीब 35 साल पहले 29 अक्टूबर 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के शासनकाल में किया गया था। उस दौरान इस परियोजना के विकास के लिए दोनों देशों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान भी हुआ, लेकिन बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब 35 साल बाद मोदी सरकार इस परियोजना को अमलीजामा पहना रही है। ज्ञात हो कि त्रिकोंमाली द्वीप तमिलनाडु से बेहद नजदीक है। इसी कारण से रणनीतिक लिहाज से भी यह भारत के लिए बेहद अहम है।

त्रिंकोमाली तेल टैंक परिसर का असर

श्रीलंका चीन के कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है और आज कंगाली की कगार पर खड़ा हुआ है। श्रीलंका की अर्थव्यवस्था मुख्यत: पर्यटन पर आधारित है, लेकिन कोरोना के कहर के कारण ये चौपट हो चुकी है। वहीं उस पर चीन का करीब 5 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज है और पिछले साल उसने अपने गंभीर वित्तीय संकट से निपटने में मदद के लिए बीजिंग से अतिरिक्त 1 अरब डॉलर का ऋण लिया था, जिसका भुगतान किस्तों में किया जा रहा है। विश्व बैंक का अनुमान है कि श्रीलंका में महामारी की शुरुआत के बाद से 5,00,000 लोग गरीबी रेखा से नीचे आ गए हैं।

ऐसे में दोनों देशों के बीच इस समझौते से वहाँ रोजगार का सृजन होगा और उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह के विकास के नाम पर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। अब इस समझौते से रणनीतिक तौर पर भारत को बढ़त मिलेगी। साथ ही उसकी तेल की जरूरतें भी पूरी होंगी। चीन लंबे समय से इस ऑयल टैंक पर अपनी नजर बनाए हुए था। यह तेल टैंक द्वितीय विश्वयुद्ध के पहले का है जिसकी भंडारण क्षमता 10 लाख टन की है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया