आज ही के दिन की थी आइंस्टीन ने एक पत्र लिखकर ऐसी गलती, जिसका उन्हें मौत तक अफ़सोस रहा

इस पत्र को लिखने का अफ़सोस आइंस्टीन को जिंदगी भर रहा

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो अल्बर्ट आइंस्टीन के नाम को न जानता हो। लेकिन एक बात, जिससे हर कोई शायद ही परिचित हो, वो ये है कि आइंस्टीन ने भी अपने जीवन में कुछ गलतियाँ की थीं। हालाँकि, गलतियाँ करना इस बात का प्रमाण हैं कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन भी एक ‘मानव’ ही थे। क्या आप जानते हैं कि जर्मन मूल के आइंस्टीन ने जर्मनी के ही खिलाफ अमेरिका को आगाह किया था? लेकिन ऐसा करने के पीछे उनके पास पर्याप्त तर्क और कारण थे।

अल्बर्ट आइंस्टीन (जर्मन उच्चारण आइनश्टाइन) का जन्म, मार्च 14, 1879 को तत्कालीन जर्मन साम्राज्य के उल्म शहर में रहने वाले एक यहूदी परिवार में हुआ था। जर्मनी के अलावा वे उसके पड़ोसी देशों, स्विट्ज़रलैंड और ऑस्ट्रिया में भी वहाँ के नागरिक बन कर रहे। वर्ष 1914 से 1932 तक बर्लिन में रहने के दौरान हिटलर की यहूदियों के प्रति घृणा को समय रहते भाँप कर आइंस्टीन अमेरिका चले गए थे।

इस बीच जर्मनी ने आइंस्टीन की लिखी तमाम पुस्तकों की होली जलाई और ‘जर्मन राष्ट्र के शत्रुओं’ की सूची बनाते हुए आइंस्टीन को मारने वाले के नाम पर इनाम भी रखा। तमाम शोध और बौद्धिक रचनाओं के बीच अल्बर्ट आइंस्टीन के नाम को जिस एक चीज़ ने अमर बना दिया, वह था उनका सापेक्षता का सिद्धांत यानी थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (The theory of relativity)।

यूँ तो आइंस्टीन के अपने पुत्र हांस अल्बर्ट और बहन माया, को ईश्वर-धर्म से संबंधित लिखे गए पत्र भी खूब चर्चा का विषय रहते हैं। लेकिन, इन सबके साथ ही अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिका के राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट के नाम भी एक खत लिखा था।

दरअसल, दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ ही दिन पहले, अगस्त 1939 में, आइंस्टीन ने अमेरिका में रह रहे हंगेरियाई परमाणु वैज्ञानिक लेओ ज़िलार्द के कहने में आ कर एक पत्र पर दस्तखत कर दिए थे। यह पत्र अमेरिकी राष्ट्रपति फ़्रैंकलिन रूज़वेल्ट के नाम लिखा गया था। इसमें रूज़वेल्ट से कहा गया था कि नाज़ी जर्मनी एक बहुत ही विनाशकारी ‘नए प्रकार का बम’ बना रहा है या संभवतः बना चुका है। इसमें उन्होंने रूजवेल्ट को परमाणु बम विकसित करने की सलाह दी थी और साथ ही उन्होंने रूजवेल्ट को आगाह किया था कि शायद जर्मनी न्यूक्लियर बम विकसित कर रहा है। 2 अगस्त, 1939 को लिखी गई यह चिट्ठी प्रेजिडेंट रूजवेल्ट को 11 अक्टूबर को मिली थी।

अमेरिकी गुप्तचर सूचनाएँ भी कुछ इसी प्रकार की थीं, इसलिए अमेरिकी परमाणु बम बनाने की ‘मैनहटन परियोजना’ को हरी झंडी दिखा दी गई। अमेरिका के पहले दोनों बम 6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहर पर गिरे।

रूजवेल्ट को लिखे गए इस पत्र के 6 साल बाद 6 और 9 अगस्त, 1945 को अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराया था। इतिहास और आइंस्टीन दोनों को यह अफ़सोस हमेशा रहा कि इस महान त्रासदी की नींव पर कुछ Best Brains के भी हस्ताक्षर थे।

इस पत्र को अमेरिका में नाभिकीय हथियारों की दौड़ की शुरुआत का महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। यह पत्र लियो स्ज़िलार्ड ने आइंस्टीन की तरफ़ से लिखा था। वैज्ञानिक लियो स्ज़िलार्ड ने नाभिकीय श्रंखला अभिक्रिया की खोज की थी। हालाँकि आइंस्टीन ने इस पत्र के सभी परिणामों की पूरी ज़िम्मेदारी स्वीकार की थी। आइंस्टीन ने इस पत्र को अपने जीवन की सबसे बड़ी ग़लती माना था।

इस घटना से आइंस्टीन को काफ़ी आघात पहुँचा। इस घटना के बारे में उन्होंने अपने एक मित्र को पत्र में लिखा था। अपने एक पुराने मित्र लाइनस पॉलिंग को 16 नवंबर 1954 को लिखे अपने एक पत्र में खेद प्रकट करते हुए आइंस्टीन ने लिखा, “मैं अपने जीवन में तब एक बड़ी ग़लती कर बैठा, जब मैंने राष्ट्रपति रूज़वेल्ट को परमाणु बम बनाने की सलाह देने वाले पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। हालाँकि, इसके पीछे यह औचित्य भी था कि जर्मन एक न एक दिन उसे बनाते।”

पढ़िए, आइंस्टीन द्वारा लिखा गया वो पत्र

(यह अनुवाद jankipul.com से लिया गया है)

अल्बर्ट आइन्स्टीन
ओल्ड ग्रोव रोड
नासाऊ प्वाइन्ट
पेकोनिक,
लोन्ग आइस-लैन्ड
२ अगस्त, १९३९

सेवा में,

फ़्रेंकलिन डी. रूज़्वेल्ट
राष्ट्रपति, संयुक्त राज्य अमेरिका,
ह्वाइट हाउस
वाशिन्गटन, डी.सी.

श्रीमान,
ए. फ़र्मी और एल. स्ज़िलार्ड के द्वारा किया गया कुछ नवीनतमकार्य, जो कि मुझे पान्डुलिपि के रूप में प्रेषित किया गया है, मुझे आशान्वित करता है, कि यूरेनियम तत्व, निकट भविष्य में ऊर्ज़ा के नवीनतम और महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में परिवर्तित किया जा सकेगा। इस बीच उभरकर सामने आई परिस्थितियों के कुछ पहलू, आँखें खुली रखने और आवश्यकता पड़ने पर प्रशासन की ओर से त्वरित प्रतिक्रिया की पुकार करते प्रतीत होते हैं। अत: मुझे विश्वास है, कि निम्नलिखित तथ्यों और सिफ़ारिशों की ओर आपका ध्यान खींचना मेरा कर्तव्य है।
पिछ्ले चार महीनों में, फ़्राँस के जुलियट और अमेरिका के फ़र्मी और स्ज़िलार्ड के शोध कार्य के ज़रिए यह सम्भव हो चुका है कि यूरेनियम के अत्यधिक द्रव्यमान में नाभिकीय अभिक्रिया स्थापित करना सम्भव है। जिसके द्वारा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा और रेडियम जैसे तत्व उत्पन्न हो सकेंगे। प्रतीत होता है, कि ऐसा निकट भविष्य मे संभव हो सकेगा।
यह नया तथ्य (परमाणु) बमों के निर्माण का रास्ता तैयार करेगा और ये कल्पनीय है (यद्यपि बहुत कम निश्चित) कि अत्यधिक, अप्रत्याशित क्षमता वाले नई तरह के बमों का निर्माण भी किया जा सकेगा। नाव के द्वारा ले जाकर, किसी बन्दरगाह पर यदि इस तरह के केवल एक बम का विस्फ़ोट किया जाए, तो यह बन्दरगाह और उसके आस-पास की कुछ बस्तियों को बहुत अच्छी तरह से ध्वस्त कर सकता है। हाँलाकि, ये बम हवाई यातायात के लिए काफ़ी भारी सिद्ध होंगे।
संयुक्त राष्ट्र के पास युरेनियम के अयस्क अत्यधिक घटिया और काफ़ी कम मात्रा में हैं। कनाडा और पूर्व चेकोस्लोवाकिया में (यूरेनियम के) कुछ अच्छे अयस्क हैं, जबकि युरेनियम का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत बेल्ज़ियन कॉन्गो है।
परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए आप ऐसी आशा कर सकते हैं कि प्रशासन और अमेरिका में काम कर रहे भौतिकविदों के समूह में आपसी रिश्ते स्थाई रहेंगे। इस स्थिति को प्राप्त करने का, आपके लिए एक सम्भव रास्ता यह हो सकता है, कि इस कार्य से सम्बन्धित एक व्यक्ति को, यह कार्य सौंप दें, जिस पर आपको भरोसा हो और जो कार्यालयी क्षमता से परे अपनी सेवाएँ दे सके। उसके कार्यों में कुछ कार्य यह भी हो सकते हैं :-
(क) सरकारी विभागों से सम्बन्ध रखकर तात्कलिक प्रगति के बारे में उन्हें अवगत रखना, सरकारी क्रियाकलापों के लिए सिफ़ारिश करना; विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र का युरेनियम अयस्क की पूर्ति की सुरक्षा की समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करना।
(ख) विश्वविद्यालयी प्रयोगशालाओं में सीमित बज़ट के साथ हो रहे प्रायोगिक कार्य (अनुसन्धान) की गति को तेज़ करना। यदि इस तरह के फ़न्ड की आवश्यकता है तो आपके और उसके व्यक्तिगत सम्बन्धों के द्वारा, जो लोग इस समस्या के लिए सहयोग के इच्छुक हैं, उनसे फ़न्ड उपलब्ध कराना और इसके साथ ही उन औद्योगिक प्रयोगशालाओं की सहकारिता को भी प्राप्त करना, जिनके पास आवश्यक उपकरण उपलब्ध है॑।
मैं समझता हूँ कि जर्मनी, वास्तव में चेकोस्लोवाकिया की खदानों से यूरेनियम की बिक्री बन्द कर चुका है, जिन पर कि उसने पहले कब्ज़ा किया था। उसके (जर्मनी) इस ज़रूरी कदम को इस तरह समझा जाना चाहिए, कि जर्मनी के प्रति (उप) राष्ट्र सचिव का पुत्र वॉन वीज़सेकर (प्रसिद्ध और अत्यन्त प्रतिभाशाली नाभिकीय भौतिकविद) कैसर-विल्हेम इन्स्टीट्यूट, बर्लिन से सम्बन्धित है। जहाँ युरेनियम पर अमेरिका में किया गया कुछ (शोध) कार्य पुनः दोहराया जा रहा है।

आपका आत्मीय
(अल्बर्ट आइन्स्टीन)

इस पत्र के जवाब में अक्टूबर 19, 1939 के दिन रूजवेल्ट ने कहा, “इसके मद्देनजर हमें तुरंत कुछ करना चाहिए।”

परमाणु हमले की घटना ने आइंस्टीन को गहरा आघात पहुँचाया था

अल्बर्ट आइंस्टीन को जब जापान पर एटम बम से हमले की जानकारी मिली, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ। ये ऐसी हकीकत थी वो जिसे मानने को तैयार ही नहीं थे। वो अपार दुख और क्षोभ से भर उठे। उन्हें गहरा धक्का लगा और वो बुदबुदाए- “भयानक… बहुत ही भयानक!” आइंस्टीन इतने आहत थे कि उन्होंने वर्ष भर इस घटना पर कोई टिप्पणी नहीं की। बाद में आइंस्टीन ने कहा, “अगर मैं जानता कि जर्मन एटम-बम कभी नहीं बना सकेंगे, तो मैं इस मुद्दे पर अपनी संस्तुति देना तो दूर, अपनी ऊँगली भी नहीं हिलाता।”

‘द वॉर इज वन, बट पीस इज नॉट।’ इस व्याख्यान में आइंस्टीन ने कहा-

“इस नए हथियार को विकसित करने में हमने मदद की, क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि इंसानियत के दुश्मन इसे हमसे पहले हासिल कर लें। कल्पना से परे तबाही और बर्बादी मचाना और शेष विश्व को अपना गुलाम बनाना ही हमेशा से नाजियों की मानसिकता रही है। हमने ये नया हथियार अमेरिकी और ब्रिटिश जनता के हाथों में, उन्हें संपूर्ण मानवजाति का प्रतिनिधि और शांति तथा स्वाधीनता का संरक्षक मानते हुए सौंपा है। लेकिन शांति तथा स्वाधीनता की वो गारंटी, जिसका वादा अटलांटिक चार्टर के देशों से किया गया था, हमें अब तक देखने को नहीं मिली है। जंग जरूर जीत ली गई है… लेकिन शांति नहीं… दुनिया को भय से मुक्ति दिलाने का वादा किया गया था, लेकिन असलियत में जब से जंग खत्म हुई है, डर कई गुना और बढ़ गया है। दुनिया से वादा किया गया था कि रोजमर्रा की चीजों की तमाम किल्लतें-तमाम दिक्कतें सब खत्म हो जाएँगी। लेकिन दुनिया का ज्यादातर हिस्सा भुखमरी का शिकार है, जबकि दूसरे जरूरत से ज्यादा चीजों का लुत्फ उठा रहे हैं।”

अपने जीवन के अंतिम दिनों में आइंस्टीन ने 10 अन्य बहुत प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के साथ मिल कर, अप्रैल 11, 1955 को, ‘रसेल-आइंस्टीन मेनीफ़ेस्टो’ कहलाने वाले एक आह्वान पर हस्ताक्षर किए। इस पत्र में मानवजाति को निरस्त्रीकरण के प्रति संवेदनशील बनाने का आग्रह किया गया था। इसके 2 दिन बाद ही, जब वे इजराइल के स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में एक भाषण लिख रहे थे, उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया और 18 अप्रैल को 76 वर्ष की अवस्था में वे दुनिया से चल बसे।

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