NCERT किताबों में बदलाव, भारतीय इतिहास कॉन्ग्रेस कर रहा विरोध… जबकि RTI में खुलासा कि बिना तथ्यों के पढ़ाया

NCERT की किताबों में बदलाव, भारतीय इतिहास कॉन्ग्रेस कर रहा विरोध... जबकि RTI में खुलासा कि बिना तथ्यों के पढ़ाया गया

एकतरफ जहाँ NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ एड्यूकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) खुद कई बार RTI में यह स्वीकार कर चुका है कि पाठ्यपुस्तकों में बहुत से ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को वह बिना किसी सबूत के पढ़ाता है वहीं इतिहासकारों की सबसे बड़ी संस्था भारतीय इतिहास कॉन्ग्रेस (IHC) ने NCERT की स्कूल टेक्स्टबुक में संभावित बदलाव का विरोध किया है। इसके पीछे उनका कहना है यह राजनीति से प्रेरित है न कि अकादमिक जरुरत।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस साल की शुरुआत में, राज्य सभा सचिवालय ने अधिसूचना जारी कर संसदीय स्थायी समिति द्वारा पाठ्यपुस्तक के पाठ्यक्रम में बदलाव के अनुमोदन की बात की थी। इसे ‘सुधार’ के रूप में प्रदर्शित करते हुए इसका मुख्य लक्ष्य ‘अनैतिहासिक तथ्यों’ और ‘हमारे राष्ट्रीय नायकों के बारे में विकृतियों’ को खत्म करना और ‘भारतीय इतिहास के सभी अवधियों के समान या आनुपातिक संदर्भ’ तय करना बताया गया था। इस विषय में जनता की प्रतिक्रिया 30 जून तक आमंत्रित की गई है और बाद में समय सीमा 15 जुलाई तक बढ़ा दी गई, अभी हाल ही में आईएचसी ने अपनी प्रतिक्रिया भेजी।

गौरतलब है कि 1935 में स्थापित IHC में 35,000 से अधिक सदस्य हैं। टीओआई की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि- उनके पास IHC का जो पत्र है, उसमें कहा गया है, “वर्तमान एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में सुधार लाने के नाम पर पेश की जा रही गलत सूचना और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण से आईएचसी बहुत परेशान है।” उसमें कहा गया है, “सुधारों’ में निहित मौजूदा पाठ्यपुस्तकों की आलोचना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त इतिहासकारों के किसी विशेषज्ञ निकाय से नहीं बल्कि पूर्वाग्रह के गैर-शैक्षणिक समर्थकों द्वारा समर्थित राजनीतिक स्थिति से उभर रही है।”

IHC ने कहा, उसे ‘विरूपण’ की आशंका थी क्योंकि एक मिसाल है। पत्र में कहा गया है, “देश के कुछ सबसे बड़े विद्वानों द्वारा एनसीईआरटी के लिए लिखी गई स्कूल की पाठ्यपुस्तकों को हटा दिया गया था, और उनके स्थान पर 2002 में एक स्पष्ट सांप्रदायिक, बहुसंख्यक पूर्वाग्रह वाली किताबें पेश की गई थीं।” हालाँकि, 12 महीने बाद वह किताबें वापस ले ली गई थीं।

IHC के सदस्यों ने मीडिया संस्थान टीओआई को बताया, “पुस्तकों की हमेशा समीक्षा और जाँच की जानी चाहिए। लेकिन यह ऐतिहासिक काल की शोध-आधारित समझ से प्राप्त अकादमिक सामग्री पर ध्यान देने के साथ मान्यता प्राप्त विद्वानों को शामिल करके किया जाना चाहिए।” आईएचसी के अध्यक्ष अमिय बागची ने आगे कहा, “हम जिस चीज का विरोध करते हैं, वह इतिहास की विकृत समझ को पेश करने की कोशिश है।”

अब जरा उन सन्दर्भों पर नजर डालिये जब NCERT ने खुद स्वीकार किया है कि किताबों में जो तथ्य के रूप में वह बच्चों को पढ़ा रहे हैं उसका उनके पास खुद कोई सबूत नहीं है।

ऑपइंडिया की एक रिपोर्ट में यहाँ बताया गया है कि मुगलों का महिमामंडन मुख्यधारा की मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर उदारवादियों और वामपंथियों द्वारा अक्सर किया जाता है। यहाँ तक भी दावे किए जाते हैं कि औरंगजेब जैसे आक्रांताओं ने भी भारत में रहते हुए मंदिरों की रक्षा की और उनकी देखरेख का जिम्मा उठाया था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्कूलों में जिस पाठ्यक्रम में हमें NCERT यह सब बातें सदियों से पढ़ाते आई है, उसके पास इसकी पुष्टि के लिए कोई आधिकारिक विवरण ही मौजूद नहीं है?

एक व्यक्ति ने नवंबर 18, 2020 में एक आरटीआई (RTI) आवेदन दायर कर NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) की पुस्तकों (जो स्कूलों में इस्तेमाल होती आई हैं) में किए गए दावों के स्रोत के बारे में जानकारी माँगी।

इस RTI में विशेष रूप से उन स्रोतों की माँग की गई, जिनमें NCERT की कक्षा-12 की इतिहास की पुस्तक में यह दावा किया गया था कि ‘जब (हिंदू) मंदिरों को युद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया था, तब भी उनकी मरम्मत के लिए शाहजहाँ और औरंगजेब द्वारा अनुदान जारी किए गए। जिसका उनके पास कोई सबूत नहीं है।

वहीं एक दूसरे मामले में, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) एक बार फिर विवादों में है। NCERT कई वर्षों से सती प्रथा को लेकर भारतीय संस्कृति के खिलाफ जहर फैलाने की कोशिश में लगा हुआ है, वह भी बिना सबूत के।

तीसरी घटना भी ऐसी ही है, किताबों में मुगलों का महिमामंडल करने वाली NCERT को भरतपुर के एक RTI कार्यकर्ता ने लीगल नोटिस भेजा था। NCERT को ये नोटिस मुगलों पर अप्रमाणित कंटेंट छापने को लेकर भेजा गया था।

दरअसल, NCERT की कक्षा-12 की इतिहास की पुस्तक में यह दावा किया गया है कि जब (हिंदू) मंदिरों को युद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया था, तब भी उनकी मरम्मत के लिए शाहजहाँ और औरंगजेब द्वारा अनुदान जारी किए गए। जबकि इसका उनके पास कोई प्रमाण मौजूद नहीं था।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया