479949 स्वयंसेवक, 85701 स्थानों पर सेवा: कोरोना के खिलाफ जंग में जन-जन के संग RSS

अहमदाबाद में जरूरतमंदों की मदद करते स्वयंसेवक (साभार: डेक्कन हेराल्ड)

आज पूरी मानवता कोरोना महामारी की अग्निपरीक्षा से जूझ रही है। दुनिया के नक्शे पर कुछ कम ही देश ऐसे हैं जहाँ इस बीमारी ने हाहाकार मचाकर नहीं रखा है। भारत, अमेरिका, रूस समेत कई देश कोरोना की वैक्सीन बनाने में जुटे हैं ताकि मानवता को सर्वकालिक सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक, कोरोना वायरस से बचाया जा सके।

ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि वैक्सीन कब आएगी, लेकिन इस बीच कोरोना महामारी से निपटने की सरकारी कोशिशों के इतर कई समाजसेवी संस्थाएँ भी इस लड़ाई में तन-मन-धन से लगी हैं।

इसी कड़ी में सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण नाम है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)। पूरी दुनिया में भारत को एक बार फिर से विश्वगुरु बनाने की मुहिम में जुटे संघ ने इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में भी कोई कसर नहीं छोड़ रखी है।

कोरोना संक्रमण के दौरान जब हम आप महामारी से बचाव के लिए सरकार का कहा मान ज्यादा से ज्यादा समय घरों में बिता रहे हैं, संघ के स्वयंसेवक फ्रंट लाइन वॉरियर्स बनकर डटे हुए हैं। देश के अधिकतर हिस्सों में इस संस्था के कार्यकर्ता इस महमारी से जन-जन को बचाने में जुटे हैं। इनका योगदान अद्भुत है। परंतु यह कोई नई बात नहीं है कि जब यह संस्था अपना योगदान दे रही है। अतीत के पन्नों को पलटें तो संघ का योगदान इतिहास में भी स्वर्ण अक्षरों में लिखा नजर आता है।

जब भी कोई आपदा आई, स्वयंसेवक मदद में रहे सबसे आगे

देश के किसी भी हिस्से में, जब भी कोई आपदा आई है, तब राहत/सेवा-कार्यों में राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ के कार्यकर्ताओं ने आगे बढ़-चढ़कर लोगों की मदद की है। उदाहरण के तौर पर, गुजरात भूकंप, ओडिशा चक्रवात, केरल बाढ़, केदारनाथ आपदा या अन्य आपात स्थितियों में संघ के स्वयंसेवकों की पूर्ण निष्ठा एवं समर्पण की भावना को याद किया जा सकता है। इन आपदाओं के दौरान संघ के स्वयंसेवकों ने एक तरह से अपना जीवन दाँव पर लगा कर समाज हित में अद्भुत योगदान दिया है।

‘संघ के लिए सेवा उपकार नहीं, बल्कि करणीय कार्य’

26 अप्रैल, 2020 को सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी के एक संबोधन में संघ के सेवाभाव की मनसा को सहज रूप में समझा जा सकता है। उस संबोधन के दौरान उन्होंने कहा था कि स्वयंसेवक के लिए ‘सेवा’ उपकार नहीं है, बल्कि उनके लिए यह ‘करणीय कार्य है’। इसलिए स्वयंसेवक अपना दायित्व मान कर सेवा-कार्य करते हैं।

उन्होंने यह भी कहा, “सेवा-कार्यों की प्रेरणा के पीछे हमारा कोई भी स्वार्थ नहीं होता है। हमें अपने अहंकार की तृप्ति एवं अपनी कीर्ति-प्रसिद्धि के लिए सेवा-कार्य नहीं करना है। यह अपना समाज है, अपना देश है, इसलिए हम कार्य कर रहे हैं। स्वार्थ, भय, मजबूरी, प्रतिक्रिया या अहंकार, इन सब बातों से रहित आत्मीय वृत्ति का परिणाम है, यह सेवा।”

संघ के स्वयंसेवकों से उन सभी को सीख लेनी चाहिए जो सिर्फ अपने स्वार्थ-पूर्ति हेतु सेवा कार्य करते हैं। वर्तमान समय में तो ऐसा बन गया है कि जो भी सेवा कार्य किया गया, उसका श्रेय तो लेना ही है। साथ ही साथ जो नहीं किया उसका भी श्रेय लूटने का प्रयास किया जाता है। हर तरफ श्रेय लेने की होड़ लगी हुई है।

कोरोना महामारी के खिलाफ युद्ध में कुछ इस तरह डटा है संघ

अब जब समूचा देश कोरोना जैसी महामारी से लड़ रहा है, तब इस संकट की घड़ी में आरएसएस के स्वयंसेवक संकटमोचक के रूप में आगे आकर सेवा-कार्यों में जुटे हुए हैं। स्वयंसेवक राशन बाँटने से लेकर लोगों को जागरूक करने, ट्रेसिंग एवं टेस्टिंग में मदद करने जैसे कार्यों में लगे हुए हैं।

आरएसएस एवं विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) ने लोगों की मदद के लिए ‘सेवा एवं स्वावलंबन’ अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान को दिवाली तक चलाया जाएगा। इस अभियान में संघ से जुड़े विहिप, सेवा भारती, मातृशक्ति, राष्ट्र सेविका समिति एवं दुर्गावाहिनी जैसे सहयोगी संगठन शामिल हैं।

इसके तहत कहीं निर्धन महिलाओं को मास्क बनाने के कार्यक्रम में लगाया गया है, तो कहीं दूसरे माध्यमों से उन्हें आमदनी के तरीके बताए जा रहे हैं।

20 मई तक के आँकड़े के अनुसार, आरएसएस ने पूरे देश में राहत कार्यों हेतु 4,79,949 समर्पित स्वयंसेवकों को तैनात किया। इन समर्पित स्वयंसेवकों ने 85,701 स्थानों पर सेवाएँ दी। 1,10,55,450 लोगों को राशन किट तथा 7,11,46,500 लोगों को खाने के पैकेट वितरित किए गए। साथ ही साथ 62,81,117 मास्क बाँटे गए और 27,98,091 माइग्रेंट वर्कर्स की सहायता की गई। बात इतने पर ही नहीं रुकती, संघ के इन समर्पित स्वयंसेवकों द्वारा 39,851 लोगों को ब्लड भी डोनेट किया गया।

इस संकट के दौरान उनके द्वारा किए जा रहे सहायता कार्यों की सूची इतनी लंबी है कि क्या बताया जाए और क्या छोड़ा जाए। सेवा कार्यों के दौरान संघ के स्वयंसेवकों की तबीयत भी खराब हुई परंतु वे भयभीत नहीं हुए।

सेवा कार्य में कोई भेदभाव नहीं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवा कार्यों की सबसे अहम विशेषता यह है कि इसमें किसी भी तरह का भेदभाव नहीं होता। स्वयं सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने 26 अप्रैल के अपने भाषण में यह स्पष्ट रूप से कहा था कि “सेवा-कार्य बिना किसी भेदभाव के सबके लिए करना है। जिन्हें सहायता की आवश्यकता है वे सभी अपने हैं, उनमें कोई अंतर नहीं करना। अपने लोगों की सेवा उपकार नहीं है, वरन हमारा कर्तव्य है।”

आरएसएस के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले ने भी बल देकर कहा कि कोरोना वायरस जैसी महामारी के समय आरएसएस के स्वयंसेवक सभी वर्ग की मदद कर रहे हैं। चाहे वह किसी भी धर्म के मानने वाले ही क्यों न हों।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह सेवा भाव आज हम सभी लोगों के लिए एक सीख है। प्राचीन भारत के मनीषियों ने हमें निःस्वार्थ सेवा के नैतिक गुण सिखाए थे, लेकिन बाद के सालों में हम यह गुण भूल गए।

आज संघ के लोग अपने सेवा कार्यों से हमें यही गुण फिर से सिखा रहे हैं। स्वयंसेवक हमें सिखा रहे हैं कि हमने समाज से लिया तो बहुत कुछ है, लेकिन क्या हम समाज को कुछ दे भी पा रहे हैं या नहीं। ऐसे में जरूरी है कि हम सभी अपने अंदर के स्वयंसेवक को जगाएँ और इस आपदा की घड़ी में माँ भारती की सेवा में जुट जाएँ।

Avni Sablok: Senior Research Fellow at Public Policy Research Centre (PPRC), New Delhi