26 जनवरी पर क्यों दो बार सैल्यूट करता है सिख रेजिमेंट? गणतंत्र दिवस पर 1979 से शुरू हुई परंपरा के बारे में सब कुछ

सिख रेजिमेंट (साभार: The Statesman)

भारतीय सेना की सबसे महत्वपूर्ण पैदल रेजीमेंट में से एक है- सिख रेजिमेंट। देश 71वाँ गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियाँ लगभग पूरी कर चुका है, ऐसे में सिख रेजिमेंट से जुड़ी एक बेहद अलग और ख़ास परंपरा है। जहाँ एक तरफ भारतीय सशस्त्र बल का हर सैन्य दल एक बार सैल्यूट करता है, वहीं सिख रेजिमेंट दो बार सैल्यूट करता है। 

यह प्रक्रिया लगभग 42 साल पहले 24 जनवरी 1979 को शुरू हुई थी। गणतंत्र दिवस (रिपब्लिक डे) की परेड के पूर्वाभ्यास (रिहर्सल) के दौरान सिख रेजिमेंट ने विजय चौक से लाल किले तक मार्च किया। ब्रिगेडियर इंजो गखल (Injo Gakhal) ने इस रेजिमेंट की अगुवाई की थी जो कि राजपथ से होते हुए केजी मार्ग, कनॉट प्लेस, मिन्टो ब्रिज, रामलीला मैदान, चावड़ी बाज़ार, किनारी बाज़ार, शीशगंज गुरुद्वारा साहिब, चाँदनी चौक के बाद लाल किले पर रुकी थी। 

जब सैन्य दल शीशगंज गुरुद्वारा साहिब से गुज़रा तब ब्रिगेडियर इंजो गखल ने तलवार नीचे करके (सैल्यूट का चिह्न) टुकड़ी को आदेश दिया, ‘दाएँ देख’। यह गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए आश्चर्यजनक था, इसके बाद वह सैन्य दल के साथ लाल किले तक गए। इसके अलावा गुरुद्वारे के लोगों ने टुकड़ी को बतौर सम्मान ‘कड़ा प्रसाद’ भी दिया।

2 दिन बाद 1979 की गणतंत्र दिवस के परेड के मौके पर ब्रिगेडियर इंजो गखल ने अपनी तलवार नीचे करते हुए टुकड़ी को आदेश दिया, ‘दाएँ देख’। लेकिन इस बार गुरुद्वारा प्रबंधन पहले से ही तैयार था। ‘सत श्री अकाल’ के नारे लगाते हुए उन्होंने लाल किले की तरफ बढ़ते हुए सैन्य दल पर गुलाब के फूल बरसाने शुरू कर दिए। तभी से दो बार सैल्यूट की परंपरा शुरू हुई, पहला भारत के राष्ट्रपति के सामने और दूसरा शीशगंज गुरुद्वारा साहिब के सामने। 

शीशगंज गुरुद्वारा साहिब का महत्व

गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के 10 सिख गुरुओं में से 9वें गुरु थे। उन्होंने सिर्फ कश्मीरी पंडितों को जबरन इस्लाम में परिवर्तित होने से नहीं रोका, बल्कि इस्लाम कबूल नहीं करने की वजह से मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने दिल्ली में सरेआम उनका सिर कलम करवा दिया था। उन्होंने मुग़ल अत्याचार के विरुद्ध जंग छेड़ी थी, जिसकी वजह से उन पर इस्लाम कबूल करने का दबाव बनाया जाता था। उन्होंने ऐसा करने से साफ़ मना कर दिया, जिसकी वजह से उनका गला काट दिया गया था। गुरुद्वारा शीशगंज ठीक उस जगह पर बनाया गया है जहाँ गुरु तेग बहादुर की हत्या की गई थी। उनका ‘शीश’ (सिर) उनके शिष्य भाई जैता आनंदपुर साहिब लेकर आए थे और सिखों के 10वें गुरु गोबिंद राय ने उनका अंतिम संस्कार किया था।    

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया