मोदी सरकार में खेलती-कूदती-पढ़ती बेटियाँ: वो 8 योजनाएँ, जो उनके सपनों को कर रहे साकार

मोदी राज में तरक्की करती बेटियाँ

भारत में महिलाओं की समस्याओं पर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं। हर क्षेत्र में महिलाएँ परचम लहराए, यह बात भी लोग खूब करते हैं। खुद को महिला हितैषी बता लंबी-चौड़ी बातें करने वाली कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन महिलाओं से जुड़े छोटे-छोटे मुद्दों पर किसी ने विशेष ध्यान नहीं दिया। सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन की बात हो, स्वच्छ भारत के जरिए शौचालय मुहैया कराना हो या उज्ज्वला योजना के जरिए करोड़ों परिवार को गैस कनेक्शन देकर स्वास्थ्य की चिंता करना, मोदी सरकार ने महिला हितैषी ऐसे कई कदम उठाए हैं, जिनके दूरगामी परिणाम होंगे। बात अगर शिक्षा की करें तो देश की बेटियाँ पढ़ें, आगे बढ़ें, हर क्षेत्र में अपना परचम लहराए, इसके लिए केंद्र सरकार ने कई अहम् कदम उठाए हैं। सरकार के उठाए इन कदमों से बेटियों को पढ़ने के अधिक अवसर मिल रहे हैं।

बेटी बचाओ – बेटी पढ़ाओ

देश की बेटियों को पढ़ने का भरपूर अवसर मिले और समाज उन्हें पढ़ने, आगे बढ़ने का मौका देने में सहयोगी बने, इसके लिए 22 जनवरी, 2015 को केंद्र सरकार ने बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ कार्यक्रम की शुरुआत की। महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय के इस साझा प्रयास से जहाँ देश भर में गर्ल चाइल्ड रेशियो में सुधार आया, वही बेटियों को पढ़ाने के लिए समाज के हर क्षेत्र में लोग सक्रिय व जागरूक हुए। इस योजना के तहत विशेष रुप से उन 100 जिलों को चुना गया है, जहाँ चाइल्ड सेक्स रेशियो में बच्चियों की संख्या कम थी। इस अभियान की सफलता इसी बात से आँका जा सकता है कि देश में पहली बार ऐसा हुआ है जब लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या बढ़ी है। लिंगानुपात में भी देश में काफी सुधार आया है। विशेषकर हरियाणा, जहाँ इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी।

हर स्कूल में बालिका शौचालय

देश के नीति नियंताओं ने बेटियों के लिए बड़ी-बड़ी बातें कीं, लेकिन शौचालय जैसी बुनियादी व्यवस्था मुहैया कराने पर ध्यान नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट की फटकार और यूनिसेफ जैसी वैश्विक संस्थाओं की रिपोर्ट के बावजूद के लिए देश के स्कूलों में बेटियाँ बगैर शौचालय के पढ़ने जाती रहीं। बड़ी संख्या में होने वाली अनुपस्थिति और ड्रॉपआउट की वजह शौचालय थी, इसके बावजूद कोई ठोस पहल नहीं किए गए। प्रधानमंत्री बनने के तुरंत बाद नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2014 को लाल किले के अपने भाषण से न केवल इस समस्या पर बातें की बल्कि युद्धस्तर पर देश में शौचालय बनवाने के अभियान की शुरुआत भी की। नतीजा, महज एक वर्ष में 2,61,400 स्कूलों में 4,17,796 शौचालय का निर्माण किया गया। वर्ष 2017-18 तक के प्राप्त आँकड़ों के मुताबिक देश में 98.38 प्रतिशत स्कूलों में बालिका शौचालय हो गए हैं।

कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय का विस्तार

“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” के सपने को साकार करने के लिए मोदी सरकार ने कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) को कक्षा 6-8 की बजाए कक्षा 6-12 तक चलाने का निर्णय लिया है। विद्यालय को विस्तारित करने की इस पहल से गरीब, अनाथ, दिव्यांग बेटियों के लिए उच्च शिक्षा का द्वार खुला है। देश के सभी पिछड़े ब्लॉक में चलने वाली कस्तूरबा गाँधी विद्यालयों में वे बेटियाँ पढ़ती हैं, जो आर्थिक, भौगौलिक व सामाजिक वजहों से प्राथमिक कक्षाओं में ही ड्रॉप आउट हो जाती हैं। इन विद्यालयों में बच्चियों के पढ़ने, रहने की व्यवस्था सरकार करती है। अब तक यही होता रहा है कि स्कूल से दूर होने के बाद बेटियाँ स्कूल से ड्रॉप आउट होकर घर-परिवार के कामकाज में ही हाथ बँटाने का काम करती थीं। किसी तरह नामांकन हो गया, तब भी 8वीं के बाद उनके पास उच्च शिक्षा के अवसर बेहद सीमित होते थे। सरकार के इस कदम से वे फिर से ड्रॉप आउट होने की बजाए 12वीं तक की शिक्षा प्राप्त कर आगे की पढ़ाई का स्वप्न देख सकेंगी।

आकांक्षी जिला परिवर्तन कार्यक्रम

मोदी सरकार ने देश के उन 115 पिछड़े जिलों की पहचान की, जहाँ अन्य बातों के साथ शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं थी। केंद्र सरकार ने इन जिलों में आकांक्षी जिला परिवर्तन कार्यक्रम की शुरुआत जनवरी, 2018 में की। इन जिलों में 8 चिन्हित मानकों के आधार पर शिक्षा की स्थिति बेहतर करने का कार्य युद्धस्तर पर हो रहा है। शिक्षा के लिए चिन्हित मानकों में कक्षा- 3,5,8 के बच्चों में गणित और भाषा में सीखने का स्तर सुधारने, कक्षा 5वीं से 6ठी व कक्षा 8वीं से 9वीं में होने वाले नामांकन दर की स्थिति बेहतर करना, अकादमिक सत्र के शुरुआती एक महीने में ही समय पर पाठ्य-पुस्तकों की पहुँच सुनिश्चित करना, शिक्षक-विद्यार्थी का अनुपात सही करना, माध्यमिक विद्यालयों में बिजली कनेक्शन उपलब्ध करवाने के साथ-साथ विशेष रूप से महिला साक्षरता दर बढ़ाने और हर विद्यालय में बालिका शौचालय बनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम की निगरानी स्वयं प्रधानमंत्री कलेक्टरों के साथ होने वाले प्रगति बैठक में नियमित करते हैं। आकांक्षी जिला कार्यक्रम की वजह से देश के 115 जिलों में सरकारी शिक्षा तो बेहतर हो ही रही है, इससे सबसे अधिक लाभ बेटियों को हो रहा है।

सैनिक स्कूलों में अब ले सकेंगी बेटियाँ भी एडमिशन

देश की बेटियाँ सेना में अधिकारी बनने का सपना अब पूरा कर पाएँगी। केंद्र सरकार ने अब सैनिक स्कूल में लड़कों के साथ-साथ लड़कियों के भी पढ़ने की सुविधा दे दी है। रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए देश के पाँच सैनिक स्कूलों को चुना है। इनमें चंद्रपुर (महाराष्ट्र), बीजापुर (कर्नाटक), कोडागु (कर्नाटक), कलिकिरी (आंध्र प्रदेश) और घोड़ाखाल (उत्तराखंड) स्थित सैनिक स्कूल शामिल हैं। इन स्कूलों में लड़कियाँ भी कक्षा 6 में नामांकन ले सकेंगी। 2020-21 सत्र से इन स्कूलों में नामांकन की प्रक्रिया शुरु हो गई है।

पढ़ने के साथ-साथ खेलने के अवसर

मोदी सरकार ने “पढ़ेगा भारत बढ़ेगा भारत” को सुनिश्चित करने के लिए लगभग 10 लाख से अधिक स्कूलों में पुस्कालयों को बेहतर बनाने का अभियान चलाया है। पुस्तकालय की स्थिति में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2018-19 में सरकारी स्कूलों को 5,000 रुपए से लेकर 20,000 रुपए तक का पुस्तकालय-अनुदान दिया है। पुस्तकालय के साथ साथ खेल-कूद में बच्चे आगे बढ़ें, इसके लिए “खेलेगा भारत, खिलेगा भारत” पर मोदी सरकार कार्य कर रही है। स्कूली बच्चों के बीच खेल को प्रोत्साहित करने हेतु प्रत्येक प्राथमिक विद्यालय को 5000 रुपए, उच्च प्राथमिक को 10,000 रुपए एवं माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक स्कूलों के लिए 25,000 रुपए खेलकूद के उपकरण खरीदने के लिए मुहैया कराए गए हैं।

खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए खेलो इंडिया कार्यक्रम के तहत “खेलो इंडिया स्कूल गेम्स” के आयोजन की शुरुआत 2018 से हुई। स्कूल गेम्स की वजह से बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली बच्चों को अवसर मिल रहे हैं। अभी 22 फरवरी, 2020 को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने बताया कि खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में 80 रिकॉर्ड टूटे हैं, जिनमें 56 रिकॉर्ड बेटियों ने तोड़े। खेलो इंडिया स्कूल गेम्स ने गाँव, गरीब और अभावग्रस्त इलाकों के बेटियों को खेलकूद में देश का मान बढ़ाने और खुद के लिए बड़े सपने देखने का अवसर दिया है। स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए खेलो इंडिया गर्ल्स लीग की भी शुरुआत की है, जिसके तहत अंडर-13 व अंडर-15 आयु समूह के बेटियों को और अधिक अवसर दिए जाएँगे। बात चाहे पुस्तकालय की हो या फिर खेल-कूद की, सबमें बेटियों को खूब मौके मिल रहे हैं पढ़ने और खेल-कूद में आगे बढ़ने के लिए।

सुकन्या समृद्धि योजना

शादी पर होने वाले खर्च की चिंता करने के बजाए माँ-बाप बेटियों की शिक्षा पर ध्यान दें, इस दिशा में केंद्र सरकार ने दो अभिनव पहल की है। बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के तहत केंद्र सरकार ने 2015 में बेटियों के हित में छोटी बचत को बढ़ावा देने के लिए सुकन्या समृद्धि योजना की शुरुआत की। इस योजना के तहत सरकार 8.5 प्रतिशत ब्याज (वर्तमान समय में) इनकम टैक्स की छूट की सुविधा के साथ देती है। इस योजना में जन्म लेने के 10 साल से पहले की उम्र में कम से कम 250 रुपए के जमा के साथ पोस्ट ऑफिस में खाता खोला जा सकता है, जिसे बाद में एक हजार के गुणक में डेढ़ लाख की राशि जमा करवाई जा सकती है। बेटी की आयु 18 साल होने पर जमा की गई राशि में से उच्च शिक्षा के लिए 50 फीसदी तक की निकासी की जा सकती है। ये योजना न केवल बेटी को पढ़ाने के लिए प्रेरित करने का काम कर रही है बल्कि बेटियों को पढ़ने के लिए समाज में एक बेहतर माहौल भी बना रही है।

सेल्फ अटेस्टेड करने का अधिकार

देश के युवाओं को विभिन्न तरह की नौकरियों के आवेदन करने के लिए अपने अंक-पत्र सहित अन्य दस्तावेज पर अधिकारियों से हस्ताक्षर करवाने के लिए भाग-दौड़ करना पड़ता था। मोदी सरकार ने इस समस्या को समझा और इस समस्या से निजात दिलाने के लिए खुद से ही प्रमाणित अर्थात सेल्फ अटेस्टेड करने का हक दिया। इसका सबसे अधिक लाभ ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में रहने वाली बेटियों को हुआ, जिन्हें अब सरकारी फॉर्म भरने में दिक्कतों का सामना नही करना पड़ता। यह छोटा सा लेकिन महत्वपूर्ण प्रयास न केवल युवाओं में सरकार के भरोसे की अभिव्यक्ति थी बल्कि इस वजह से होने वाली परेशानियों से निजात दिलाने वाला भी था।

Abhishek Ranjan: Eco(H), LL.B(University of Delhi), BHU & LS College Alumni, Writer, Ex Gandhi Fellow, Ex. Research Journalist Dr Syama Prasad Mookerjee Research Foundation, Spent a decade in Students Politics, Public Policy enthusiast, Working with Rural Govt. Schools. Views are personal.