लॉकडाउन नहीं होता तो अब तक होती 26 लाख मौतें: 10 वैज्ञानिकों की कमिटी के अध्ययन में खुलासा

नहीं होता लॉकडाउन तो आ सकती थी बड़ी तबाही (फाइल फोटो साभार: CNN)

दुनिया भर में चल रही कोरोना महामारी और लॉकडाउन के धीरे-धीरे ख़त्म होने के बीच ‘कोविड-19 इंडिया नेशनल सुपरमॉडल कमिटी’ के 5 रिसर्च पेपर आए हैं, जिन्हें 10 भारतीय वैज्ञानिकों ने मिल कर तैयार किया है। आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर एम विद्यासागर इस कमिटी के अध्यक्ष थे। उन्हें 1997 में ‘मिसाइल मैन’ एपीजे अब्दुल कलाम की उपस्थिति में ‘DRDO साइंटिस्ट ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड मिल चुका है। कमिटी ने गणितीय रूप से कोरोना के प्रसार व रोकथाम का अधययन किया है।

उन्होंने जो मॉडल बनाया है, उसके हिसाब से अगस्त 2020 तक भारत के 14% लोगों के शरीर में कोरोना की एंटीबॉडी थी। जबकि फ़िलहाल 30% जनसंख्या के पास एंटीबॉडीज हैं। साथ ही मृत्यु दर कुल संक्रमित लोगों का 0.04% है। साथ ही इसमें प्रोजेक्ट किए गए एक ग्राफ के अनुसार, अगर लॉकडाउन नहीं होता तो कोरोना के मामलों की संख्या जून में ही 1.4 करोड़ तक पहुँच गई होती। साथ ही अगस्त ख़त्म होने तक 26 लाख लोगों की जानें गई होती।

वहीं जब भारत में कोरोना का प्रसार शुरू हुआ था, तब 18-31 मार्च के बीच मात्र 14 दिनों में इसके मामलों की संख्या 10 गुनी हो गई थी। रिसर्च पेपर के अनुसार, इसके बाद अप्रैल 1 से लेकर जून 12 तक 73 दिनों में कोरोना के मरीजों की संख्या 100 गुना बढ़ गई। अगर लॉकडाउन नहीं होता तो इन 73 दिनों में यही संख्या 10,000 गुना बढ़ जाती। साथ ही प्रवासी मजदूरों के पलायन को लेकर भी कहा गया कि अगर लॉकडाउन से पहले इसकी अनुमति दी जाती तो इसका खासा उलटा प्रभाव पड़ता।

अगर लॉकडाउन नहीं होता तो क्या होता? (रिसर्च पेपर का ग्राफ)

साथ ही इस रिसर्च पेपर में बताया गया है कि ठंडी के मौसम में ये वायरस कमजोर हो जाता है, अब तक किसी भी अध्ययन से ये साबित नहीं हो सका है। हालाँकि, बड़े जुटानों से संक्रमितों की संख्या ज़रूर बढ़ती है क्योंकि केरल में ओणम के दौरान इसमें वृद्धि देखी गई। इससे वहाँ संक्रमण की संख्या 32% बढ़ गई थी। इसमें कहा गया है कि अब सुरक्षा उपायों के साथ सारी गतिविधियाँ चालू की जा सकती हैं।

अगर एकदम ही सतर्कता नहीं बरती गई तो एक महीने के भीतर ही कोरोना संक्रमण के 26 लाख नए मामले आ सकते हैं। साथ ही पाया गया है कि अगर लोग सावधान रहे तो फ़रवरी 2021 तक इस पर काबू पाया जा सकता है। इस ओर ध्यान दिलाया गया है कि कोरोना संक्रमितों में से जहाँ कुछ ऐसे हैं जिन्हें सिम्पटम्स हैं, वहीं इसका एक बड़ा हिस्सा संक्रमित होने के बावजूद इसका कोई लक्षण कैरी नहीं कर रहा है।

अध्ययन का निष्कर्ष है कि अगर स्वास्थ्य सुविधाओं में बहुत बड़ी समस्या न हो तो फिर लॉकडाउन को जिला स्तर पर भी लगाने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही पाया गया है कि मृत्यु दर जो आज की तारीख में यूरोप या अमेरिका में है, भारत में उसका 10वाँ हिस्सा ही है, जो सकारात्मक है। साथ ही मेडिकल उपकरणों और तैयारियों के मामले में भी हम आज इस आपदा से निपटने में कहीं ज्यादा कुशल हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया