CAA दंगों में हिंसा करने वाले 86 उपद्रवी दोषी करार, भरना होगा ₹427000 का जुर्माना: UP में पहली सजा, फैसले को नहीं दे सकता कोई चुनौती

CAA विरोधी हिंसा में उत्तर प्रदेश में पहली सजा अमरोहा के उपद्रवियों को (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में दिसंबर 2019 में CAA विरोध के नाम पर हुई हिंसा में सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुँचाने के मामले में पहली सजा सुनाई गई है। हिंसा की जाँच के लिए गठित न्यायाधिकरण ने 86 अरोपितों को दोषी करार दिया है। सजा के तौर पर इन सभी आरोपितों से 4,27,439 रुपए की वसूली का आदेश जारी हुआ है। गुरुवार (22 दिसंबर 2022) को दिए गए ट्रिब्यूनल के इस फैसले को किसी अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह आदेश न्यायाधिकरण मेरठ संभाग द्वारा जारी हुआ है। ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष डॉ अशोक कुमार सिंह और प्रवीण अग्रवाल ने इस आदेश पर मुहर लगाई। आदेश मुताबिक हिंसक भीड़ द्वारा हुई तोड़फोड़ में नुकसान हुए 4,27,439 रुपए की भरपाई 86 दोषियों से की जाएगी जिसमें प्रति व्यक्ति पर लगभग 4971 रुपए का अर्थदंड है। इस पैसे की वसूली जिले के DM द्वारा जमीन के राजस्व बकाए की तरह करवाई जाएगी।

ट्रिब्यूनल ने इस बाबत उत्तर प्रदेश लोक और निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम 2020 की धारा-23 के तहत अमरोहा के DM को आदेश जारी किए हैं। आदेश में उपद्रवियों से वसूली कर के पैसे को सरकारी खजाने में जमा करवाने के लिए कहा गया है। इसी आदेश में इस बात का भी जिक्र है कि आरोपितों को यह जुर्माना 30 दिनों के अंदर भरना होगा। इसके बाद इस राशि पर 6% का ब्याज लगा कर वसूली का खर्च भी उपद्रवियों से ही वसूल किया जाएगा।

ट्रिब्यूनल द्वारा जिन 86 उपद्रवियों को नोटिस जारी हुआ है उसमें से 3 ऐसे हैं जिनकी नाम-पते की पहचान अभी तक नहीं हो पाई है। इन तीनों आरोपितों का पोस्टर लगवा कर उनकी जानकारी जुटाने के साथ इन कामों में खर्च हो रहे पैसे को भी उन्हीं तीनों से वसूलने का आदेश दिया गया है। मेरठ और आस-पास में हुए 20 अन्य उपद्रव के मामले में ट्रिब्यूनल ने 277 अन्य आरोपितों को भी नोटिस जारी की है। गौरतलब है कि इन हमलों में न सिर्फ सार्वजनिक सम्पत्तियों को नुकसान पहुँचाया गया था बल्कि पुलिस वालों पर भी हमले किए गए थे।

अमरोहा के DM बी के त्रिपाठी के मुताबिक ट्रिब्यूनल के आदेश पर तत्काल अमल शुरू किया जा चुका है। वहीं आरोपितों को वकील जमीयत उलेमा ए हिन्द ने मुहैया करवाए थे। जमीयत के वकील ने जनता का गवाह न होने की दलील देते हुए न्यायाधिकरण के फैसले का विरोध किया।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया