‘हम शर्मिंदा हैं’: बुर्का के समर्थन में 765 वकील, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने लिखा पत्र, हिजाब को बताया संवैधानिक अधिकार

765 वकील, शिक्षाविद और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने खुला खत लिख हिजाब को मुस्लिमों का अधिकार बताया (फोटो साभार: LiveLaw)

कर्नाटक से शुरू हिजाब/बुर्का विवाद (Karnataka Burqa/Hijab Controversy) को हाईकोर्ट द्वारा राज्य के स्कूल-कॉलेजों में धार्मिक कपड़े पहनकर जाने पर लगाए गए रोक को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने चिंता व्यक्ति की है। 765 वकीलों, कानून के छात्रों, शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक खुला पत्र लिखकर हिजाब पहनने से रोकने को मुस्लिमों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।

इन लोगों द्वारा लिए गए एक खुले पत्र में कहा गया है कि मुस्लिम छात्राओं और कर्मचारियों को स्कूलों और कॉलेजों में घुसने से पहले अपना हिजाब उतारने के मजबूर करने वाले जिला प्रशासन के निर्देश देकर उनका सार्वजनिक तौर पर अपमान के कारण उनका ‘सिर शर्म झुक’ गया है।

765 व्यक्तियों के खुले पत्र में कहा गया है कि हाईकोर्ट ने छात्रों को धार्मिक कपड़े पहनने से रोकने का आदेश ‘संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित आस्था की स्वतंत्रता के अधिकार’ से जुड़ा है, ना समझ पर आगे बढ़ता है’, न कि अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 से।

खुले पत्र में कहता गया है कि सरकारी प्रतिष्ठानों में वर्दी लागू करना कोई नई बात नहीं। मुस्लिम लड़कियों ने हिजाब पहना, सिख लड़कों ने पगड़ी पहनी, अन्य ने वर्दी के साथ अपने शरीर पर अपने धर्म के विभिन्न प्रतीकों को पहना, लेकिन मुस्लिम छात्राओं पर वर्तमान हमले ‘इस्लामोफोबिया’ का संकेत है।

पत्र में आगे कहा गया है, “जो छात्र हिंदू धर्म को मानते हैं, वे हर दिन स्कूल में बिंदी, तिलक, विभूति जैसे अपनी आस्था के विभिन्न प्रतीक के साथ आते हैं। लेकिन, इन प्रतीकों के खिलाफ वैसी प्रतिक्रिया कभी नहीं देखी गई, जैसी प्रतिक्रिया आज हिजाब पहनकर आने वाली मुस्लिम छात्राओं को लेकर देखने को मिल रही है।”

इन लोगों ने इसे मुस्लिमों का अपमान बताते हुए पत्र में कहा, “हम कर्नाटक HC से मुस्लिम छात्रों और कर्मचारियों के सार्वजनिक अपमान का न्यायिक नोटिस लेने और ऐसी किसी भी अपमानजनक कार्रवाई को रोकने के लिए तुरंत आवश्यक आदेश पारित करने का आग्रह करते हैं।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया