नशीली दवा दे बच्चियों से रेप, लेकिन तोंद वाला अंकल गायब: घर से श्मशान तक खुदाई, CBI फेल

यूॅं ही शिकंजा कसने पर भी नहीं खिलखिला रहा था मुख्य आरोपित ब्रजेश ठाकुर (फाइल फोटो)

एक क्रोनोलॉजी

  • 20 जुलाई 2018: पॉक्सो कोर्ट ने मुजफ्फरपुर बालिका गृह की मृत बच्ची का शव तलाशने के लिए खुदाई का आदेश दिया।
  • 23 जुलाई 2018: कोर्ट के आदेश पर बालिका गृह परिसर में खुदाई हुई। 5 घंटे तक दो-दो जगहों पर खुदाई के बावजूद कुछ नहीं मिला।
  • 03 अक्टूबर 2018: सिकंदरपुर श्मशान घाट में ब्रजेश ठाकुर के दो कर्मचारियों की निशानदेही पर सीबीआई ने खुदाई करवाई। 6 घंटे खुदाई चली। खोपड़ी, हाथ की हड्डी के साथ ही शव के अवशेष मिले।
  • 08 जनवरी 2020: सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को बताया शेल्टर होम में किसी भी लड़की की हत्या नहीं की गई है। सभी गायब 35 लड़कियों को जिंदा बरामद किया गया है। जो हड्डियॉं बरामद की गई थीं वो बच्चियों की नहीं है। जॉंच में पाया गया है कि ये हड्डियॉं वयस्कों की हैं।

कुछ सवाल

  • मुजफ्फरपुर बालिका गृह की पीड़ित बच्चियों ने अपने बयान में जिस तोंद वाले अंकल का जिक्र किया था, वह कौन हैं? उनकी क्या भूमिका थी?
  • बच्चियों ने अपने जिन साथियों को मार कर गाड़ देने की बात कही थी, वे कहॉं दफन हैं? मुख्य आरोपित ब्रजेश ठाकुर के ड्राइवर विजय तिवारी और बालिका गृह के सफाई कर्मचारी कृष्णा राम ने भी हत्या कर शव गाड़े जाने की पुष्टि की थी।

गुत्थी और उलझी

पूरे देश को झकझोर देने वाले बिहार के शेल्टर होम में यौन शोषण के मामलों की जॉंच सीबीआई को इस उम्मीद से सौंपी गई थी कि वह सबूतों के साथ सारे सवालों का जवाब देगी। दोषियों को कठघरे में खड़ा करेगी। लेकिन, सीबीआई की जॉंच रिपोर्ट ही कठघरे में खड़ी हो गई है। गुत्थी और उलझ गई है।

सुप्रीम कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल होने से पहले सीबीआई ने खुद 11 बच्चियों के गायब होने की बात कही थी। अब वह कह रही है कि 35 बच्चियॉं सकुशल बरामद कर ली गई हैं। आखिर, 24 और बच्चियॉं कहाँ से आईं, इसका जवाब सीबीआई की रिपोर्ट से नहीं मिलता।

इस मामले की याचिकाकर्ता निवेदिता झा ने ऑपइंडिया को बताया कि सीबीआई की रिपोर्ट बेदह संदेहास्पद है। साफ है कि रसूखदारों के बचाने के लिए जॉंच के नाम पर लीपापोती की गई है। उन्होंने कहा कि इस मामले में सत्ताधारी दल के कई नेताओं यहॉं तक कि उस समय समाज कल्याण विभाग की मंत्री रहीं मंजू वर्मा का भी नाम आया था। उल्लेखनीय है कि जब यह मामला सामने आया था तो मंजू वर्मा के पति चंदेश्‍वर वर्मा पर मुजफ्फरपुर मामले में गिरफ्तार बाल संरक्षण अधिकारी रवि रोशन की पत्नी ने अक्सर बालिका गृह में जाते रहने का आरोप लगाया था। यह भी कहा गया था कि बच्चियों ने अपने बयान में जिस तोंद वाले नेता जी की बात कही है, वह वर्मा ही हैं। सीबीआई अपने जॉंच में इस तथ्य से भी पर्दा उठाने में नाकाम रही है।

बकौल निवेदिता झा सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में सबूत नहीं मिलने की बात कही है। लेकिन, अपनी जॉंच में उसने पीड़ित बच्चियों के बयान को आधार नहीं बनाया है। उसने यह भी नहीं बताया है कि शवों के जिन दो अवशेषों को वह वयस्कों का बता रही है वह किनके हैं। इनका मुजफ्फरपुर शेल्टर होम मामले से कोई संबंध है या नहीं?

सीबीआई ने शीर्ष अदालत में दाखिल स्टेटस रिपोर्ट में बताया है कि उसने सभी 17 मामलों की जॉंच पूरी कर ली है। 13 मामलों में चार्जशीट दाखिल कर दी गई है। चार मामलों में सबूत नहीं मिल पाए हैं। जॉंच एजेंसी ने बताया है कि बच्चों का उत्पीड़न रोकने में सरकारी अधिकारी नाकाम रहे। कुल 71 अधिकारियों के खिलाफ एजेंसी ने कार्रवाई करने की सिफारिश बिहार सरकार से की है। इनमें 25 डीएम हैं। साथ ही 52 एनजीओ और निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी कार्रवाई की अनुशंसा की गई है। उन एनजीओ पदाधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई को भी कहा गया है जिनके नाम रिपोर्ट में दर्ज हैं।

निवेदिता झा के अनुसार इस मामले में भी सीबीआई ने बेहद सफाई से काम किया है। अधिकारियों पर विभागीय कार्रवाई की अनुशंसा की गई है। विभागीय कार्रवाई के नाम पर ज्यादा से ज्यादा ये अधिकारी सस्पेंड किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि आपराधिक मामले तय नहीं कर जॉंच एजेंसी ने सबके बच निकलने का रास्ता छोड़ दिया है।

विशेष अदालत में दाखिल दस्तावेजों में सीबीआई ने बताया है कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह में नशीली दवा देकर बच्चियों का यौन शोषण किया जाता था। दुष्कर्म के अलावा उनके साथ मारपीट की बात भी जाँच एजेंसी ने कही है। ये ऐसे तथ्य हैं जो टिस की रिपोर्ट से पूरी दुनिया के सामने सार्वजनिक हो गए थे। लेकिन, जो दो सबसे बड़े सवाल थे, उसका जवाब सीबीआई नहीं दे पाई है। बालिका गृह से गायब दाे किशोरियॉं आखिर कहॉं गईं? जिन दो बच्चियों की हत्या की बात उनके साथियों ने कही थी, उनके शव ब्रजेश ठाकुर एंड कंपनी ने कहॉं ठिकाने लगाया?

जैसा कि निवेदिता झा कहती हैं, “इनके जवाब अब शायद ही मिल पाएँ। लेकिन, हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।” यह भी दिलचस्प है कि चिल्ड्रेन होम, शॉर्ट स्टे होम, सेवा कुटीर, स्पेशल एडॉप्शन एजेंसी, ऑब्जर्वेशन होम वगैरह का सोशल ऑडिट पहली बार किसी बाहरी एजेंसी से करवाने का फैसला उसी नीतीश सरकार ने किया था, जिस पर इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा सवाल खड़े होते हैं।

सीबीआई की जॉंच से वह अंदेशा सही साबित होता दिख रहा है जो मुजफ्फरपुर मामले पर लोकसभा में कार्यस्‍थगन प्रस्ताव लाने के बाद तत्कालीन कॉन्ग्रेस सांसद रंजीता रंजन ने कहा था। उन्होंने आरोप लगाया था, “सरकार छोटी मछलियों पर कार्रवाई कर रही है। सबूतों को नष्ट किया जा रहा है।” लेकिन यह भी सच है कि उस समय मामले की सीबीआई से जॉंच करवाने पर जोर भी ज्यादा विपक्ष का ही था।

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