‘चाचा… शरीयत में मत दे दखल’: जावेद अख्तर ने तालिबानी शासन में महिला स्थिति पर उठाए सवाल, इस्लामी कट्टरपंथियों ने घेरा

जावेद अख्तर और तालिबान (साभार: कोईमोई/डक्कन हेराल्ड)

अफगानिस्तान में कट्टरपंथी तालिबान (Afghanistan, Taliban) शासन द्वारा वहाँ की लड़कियों की शिक्षा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। इसको लेकर बॉलीवुड के गीतकार जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने सवाल उठाया है। जावेद अख्तर के इस ट्वीट पर कट्टरपंथियों ने उन्हें घेर लिया।

जावेद अख्तर ने ट्वीट किया, “तालिबानियों ने इस्लाम के नाम पर सभी महिलाओं और लड़कियों के स्कूल-कॉलेजों और नौकरियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारतीय मुस्लिम पर्सनल बोर्ड और अन्य इस्लामिक विद्वानों ने इसकी निंदा क्यों नहीं की। क्यों। क्या वे तालिबानियों से सहमत हैं?”

इसको लेकर अल हिंद नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा, “श्याम बिहारी की चौथी पीड़ी तू ज़्यादा दख़ल ना दे शरीयत में।”

आदिल साइन नाम के यूजर ने लिखा, “जावेद भाई, अपने मुल्क की चुनौतियों को पहले समझ लें, फिर पड़ोसी मुल्क की बातों पर सोचा जाए। पर नहीं आप तो आप हैं… ऐसी उम्र में लोग थोड़े चिंतित हो ही जाते हैं.. उम्र का कसूर है आप तो मासूम हैं।”

सलमान नाम के यूजर ने लिखा, “भाई सब क्यों अपनी दुर्गति करवाने पर तुले हैं? आपका इस्लाम से कोई लेना देना है क्या?AIMPLB का तालिबान से कोई कनेक्शन बता रहे हो क्या? बेकार क्यों अपनी टाँग फैला रहे हो..जब किसी ने सपोर्ट नहीं किया है तो जरूरी है कि निंदा करें।”

नीलिमा पवार नाम की एक यूजर ने लिखा, “हाँ, भारत के 99% मुस्लिम सहमत हैं और वही शरिया यहाँ लाना चाहते हैं। इसलिए श्रद्धा के कितने भी टुकड़े हो चुप रहते हैं। गजवा-ए-हिंद के सपने देखते है। चाचा आप भी जाग जाओ, क्यूँकी शरिया में गैर मुस्लिम ही नहीं, जो शरिया ना माने वह भी काफिर है। पाकिस्तान में शिया, अहमदिया सभी काफिर हैं।”

संकेत एस जोशी ने लिखा, “मुझे हमेशा आश्चर्य होता है कि इन इस्लामिक देशों का किसी भी क्षेत्र के विकास में क्या योगदान है, जिससे मानव को लाभ होता है। वैज्ञानिक अनुसंधान, उत्पाद विकास, कला, खेल, शिक्षा में कोई बड़ी भूमिका नहीं… लेकिन गोला-बारूद के संबंध में उन्नत तकनीक का उपयोग करने में अग्रणी।”

T. Burhagohain नाम की एक अन्य ट्विटर यूजर ने लिखा, “इस्लाम में ईसाई और हिंदू धर्म की तरह एक मजबूत सुधार आंदोलन होना चाहिए। इस धर्म की शुरुआत से इस्लाम में कोई सुधार नहीं हुआ है।”

अफगानिस्तान में तालिबान शासन ने 21 दिसंबर 2022 को एक फरमान जारी करते हुए कहा कि अब तालिबानी महिलाएँ नौकरी और पढ़ाई नहीं करेंगी। तालिबान ने तर्क दिया था, ”विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जा रहे कुछ विषय इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।” इसके साथ ही उसने यह भी कहा था कि लड़कियों पर पश्चिमी देशों का रिवाज हावी हो रहा है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया