बजट 2019: Zero Budget Farming से बदलेगी देश के किसानों की तस्वीर, दोगुनी होगी आय

निर्मला सीतारमण ने बजट में जीरो बजट फार्मिंग को बढ़ावा देने की बात कही

मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में बजट पेश करने के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज (जून 5, 2019) कई बड़ी घोषणाएँ की। इन घोषणाओं में रेलवे में निजी भागीदारी बढ़ाने से लेकर देश में जल्द आदर्श किराया क़ानून लागू करना तक शामिल हैं। अपनी घोषणाओं के बीच में वित्त मंत्री ने जीरो बजट फार्मिंग का भी जिक्र किया।

उन्होंने कहा कि बजट 2019 में जीरो बजट खेती को बढ़ावा मिलेगा ताकि किसानों की आय दोगुनी हो सके। अब ये कैसे होगा और जीरो बजट फार्मिंग आखिर है क्या? आइए जानते हैं।

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दरअसल, जीरो बजट खेती में कीटनाशक, रासायनिक खाद और हाइब्रिड बीज या फिर किसी भी आधुनिक तकनीक/ उपाय का इस्तेमाल नहीं होता है। जीरो फार्मिंग खेती पूर्ण रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होती है।
इस खेती में किसान सिर्फ़ प्राकृतिक खेती के लिए उनके द्वारा बनाई गई खाघ और अन्य चीजों का प्रयोग करते हैं, जिससे उन्हें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती। देश के कई क्षेत्रों में किसानों ने इस प्रणाली के तहत खेती करना शुरू किया है, जिससे काफ़ी कम समय के अंदर यह बहुत लोकप्रिय भी हुई है।

बताया जाता है कि ऐसी खेती से उगाई गई फसल सेहत के लिए स्वास्थ्यवर्धक होती है और किसानों को खेती करने के दौरान शून्य रुपए का खर्चा आता है, जिसके कारण इसे जीरो बजट फार्मिंग का नाम दिया गया है। जिन किसानों ने इस प्रणाली को अपनाया है, आज वह इससे लाभ कमा रहे हैं। इसलिए देश भर के किसानों के बीच इसे बढ़ावा देने के लिए आज संसद में बजट पेश करने के दौरान इसका जिक्र हुआ।

बता दें इस तरह की खेती में किसान रासायनिक खाद की जगह जो खुद के द्वारा निर्मित देशी खाद का इस्तेमाल करते हैं, उसे ‘घन जीवा अमृत’ कहा जाता है। यह गोबर, गौमूत्र, चने के बेसन, गुड़, मिट्टी तथा पानी से बनाई जाती है। इसके अलावा कीटनाशकों की जगह नीम, गोबर और गौमूत्र से बना नीमास्त्र का इस्तेमाल करते हैं, जिससे फसलों में कीड़े लगने का संभावनाएँ न्यूनतम हो जाती हैं। इस खेती में संकर प्रजाति के बीजों की जगह देशी बीजों का इस्तेमाल किया जाता है।

इसके अलावा इस खेती में सिंचाई,जुताई और मड़ाई का सारा काम बैलों की मदद से किया जाता है, जिससे किसी भी प्रकार के डीजल या ईंधन से चलने वाले तकनीक का प्रयोग नहीं होता और न ही किसान की जेब पर जोर पड़ता है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया