₹10000 करोड़ की ज़मीन की हेराफेरी: प्रयागराज के ईसाई संगठनों द्वारा ‘देश का सबसे बड़ा घोटाला’

ईसाई संगठन ज़मीन की हेराफेरी के कई मामलों में आपस में ही लड़ रहे हैं (प्रतीकात्मक चित्र)

प्रयागराज में इंडियन चर्च ट्रस्टीज, डायसिस ऑफ लखनऊ के अंतर्गत आने वाली 100 अरब रुपए की ज़मीन को धोखाधड़ी के जरिए बेचने का मामला सामने आया है। इतनी बड़ी क़ीमत वाली ज़मीन को बेचने के बाद रुपए का बंदरबाँट भी कर लिया गया। ये ज़मीनें सिविल लाइन्स के अधीन थीं। फ़र्ज़ी काग़ज़ात और जाली दस्तावेजों का सहारा लेकर सौ अरब रुपए की ज़मीन को दूसरे संस्थानों को बेच डाला गया। इस मामले में सम्बंधित संगठनों ने मामला दर्ज कराया है, जिसमें बिशप समेत 16 लोगों पर मुक़दमा दर्ज किया गया है।

इन संस्थाओं की सम्पत्तियाँ पहले भी विवादों में रही हैं और इस बार बिशप जॉन अगेस्ट्रिन ने मुक़दमा दर्ज कराया है। जिन लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है, उनमें कई बड़े पदाधिकारी और अज्ञात भी शामिल हैं। आरोपितों में एक बिशप पीटर बलदेव भी शामिल है। इन लोगों ने फ़र्ज़ी सोसाइटी और फेक दस्तावेज बना कर ज़मीन बेचने के मामले में हेराफेरी की।

प्रयागराज के शहरी व देहाती इलाक़ों में ईसाई संगठनों की अरबों की ज़मीनें हैं। इससे पहले ऐसे कई मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें एक संस्था के अंतर्गत दूसरी संस्था बनाई गई और फिर ज़मीन का बंदरबाँट किया गया। संस्थाओं को ज़मीन ट्रांसफर कर के कुछ वर्षों बाद उन्हें बेच दिया जाता था। इससे पहले जॉन अगेस्ट्रिन सोसाइटी के नाम पर भी करोड़ों का घोटाला किया गया था। इसी तरह छात्रावास के नाम पर भी करोड़ों रुपए का घोटाला किया गया।

प्रयागराज के ईसाई प्राइवेट स्कूलों व ईसाई संगठनों के पदाधिकारियों पर ज़मीन घोटाले व हेराफेरी से जुड़े कई मामले दर्ज हैं। ईसाई संस्थाएँ इन मामलों में आपस में ही लड़ रही हैं और एक-दूसरे पर ही मुक़दमा दर्ज करा रही हैं। कीडगंज में एक ईसाई कम्पाउंड की ज़मीन को एक बिल्डर को बेच डाला गया था। इस मामले में एक बुजुर्ग ने फाँसी भी लगा ली थी। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि उन्हें ज़मीन खाली करने को मजबूर किया जा रहा है।

बिशप अगेस्ट्रिन ने कहा है कि यह खेल देश भर में चल रहा है, जहाँ ईसाई संगठन और उनके पदाधिकारी फ़र्ज़ी संगठन बना-बना कर ज़मीन की हेराफेरी कर रहे हैं। प्रयागराज ज़मीन घोटाले को उन्होंने देश का सबसे बड़ा घोटाला करार दिया। यह खेल कई दशकों से चल रहा है। 1971 में ही फ़र्ज़ी संगठन बनाया गया था और 1991 में फ़र्ज़ी पदाधिकारी बन कर ज़मीनें इधर-उधर ट्रांसफर की गई थीं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया