सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामला वाराणसी जिला अदालत को किया ट्रांसफर, बोले जस्टिस चंद्रचूड़- धार्मिक चरित्र पता करने से नहीं रोकता वर्शिप एक्ट

ज्ञानवापी मामले को सुप्रीम कोर्ट ने निचली को किया ट्रांसफर

वाराणसी के ज्ञानवापी विवादित ढाँचे (Gyanvapi Controversial Structure, Varanasi) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जस्टिस चंद्रचूड़ की अदालत ने कहा कि किसी स्थान के धार्मिक चरित्र के निर्धारण को पूजा स्थल अधिनियम, 1991 द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। इसके साथ ही उन्होंने मामले को सुनवाई के लिए वाराणसी के निचली अदालत को स्थानांतरित कर दिया।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “इस मामले में बहुत जटिलता और संवेदनशीलता है, इसलिए इसे निचली अदालत द्वारा एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी द्वारा सुना जाना चाहिए।” जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यही कारण है कि ट्रायल कोर्ट को केस की सुनवाई जारी रखने देना चाहिए।

मुस्लिम पक्षकार को स्पष्ट कर दिया कि इस मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर वह रोक नहीं लगा सकता। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि निचली अदालत को निर्देश देने के बजाय संतुलन बनाने की जरूरत है।

सुनवाई के दौरान उदाहरण देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “भारत में धार्मिक स्थलों का हाइब्रिड चरित्र बहुत आम है। मस्जिद और शिवलिंग को भूल जाइए, एक जगह पर क्रॉस का होना किसी जगह को ईसाई पूजा का स्थान नहीं बना देगा।”

इस दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील हुजैफा अहमदी ने कहा कि जिस क्षेत्र में हिंदू पक्ष कह रहे हैं कि शिवलिंग मिला है, वहाँ एक तालाब है। अहमदी ने कहा, “हम कहते हैं कि यह एक फव्वारा है। उस क्षेत्र में नल हैं। उस क्षेत्र को वज़ू के लिए खोला जा सकता है।”

अहमदी की इस माँग पर सॉलिसिटर जनरल ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा कि इससे कानून-व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी। अदालत की बेंच ने भी अहमदी की इस माँग को मानने से इनकार कर दिया।

मुस्लिम पक्षकारों के वकील हुजैफा अहमदी ने कोर्ट को बताया कि ट्रायल कोर्ट ने अब तक जो किया है, उससे माहौल खराब हो सकता है। उन्होंने कोर्ट से यथास्थिति बनाए रखने का आग्रह करते हुए कहा कि पिछले 500 सालों से उस स्थान को जैसे इस्तेमाल किया जा रहा था उसे बरकरार रखा जाए। हालाँकि, यह माँग स्वीकार नहीं हुई।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया