‘अपनी इज्जत और दीन देखो तुम’: हिंदू त्योहारों में घुसने के लिए मुस्लिमों को उकसा रही थीं आरफा खानम, ट्वीट देख कट्टरपंथियों ने लताड़ा

आरफा खानम शेरवानी

प्रोपेगेंडा पोर्ट ‘द वायर’ की स्तंभकार और हिंदू विरोधी आरफ़ा खानम शेरवानी फिर दुखी हैं। इस बार उनके दुख का कारण है गरबा पंडालों में गैर-हिंदुओं खासकर मुस्लिमों के प्रवेश पर पाबंदी। दरअसल, बजरंग दल जैसे हिंदू संगठनों ने की जगहों पर गरबा के आयोजकों को पंडालों में जाने वालों की पहचान जाँच करने के लिए कहा है।

इसको लेकर आरफा ने एक ट्वीट किया। अपने ट्वीट में आरफा खानम शेरवानी ने लिखा, “हिंदुत्व फासीवादी उन मुस्लिमों का मजाक उड़ा रहे हैं, हतोत्साहित कर रहे हैं, धमका रहे हैं और यहाँ तक ​​कि उनकी पिटाई कर रहे हैं, जो हिंदू त्योहारों के उत्सव में भाग लेना चाहते हैं। वे भारत और उसकी मिलीजुली संस्कृति का जो कुछ बचा हुआ है, उसे नष्ट कर रहे हैं।”

दरअसल, मूर्ति पूजा इस्लाम में पाप है और नवरात्रि के दौरान गरबा कार्यक्रम देवी-देवताओं की पूजा का एक रूप है। वहीं, कई लोगों ने धार्मिक त्योहार को सांस्कृतिक रूप देने की कोशिश की है, जबकि तथ्य यह है कि नवरात्रि एक हिंदू त्योहार है, जो पूरे भारत में और हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है।

हालाँकि, आरफ़ा के ट्वीट ने मुस्लिमों के एक बड़े वर्ग को नाराज कर दिया है, जो मुस्लिमों के गरबा और नवरात्रि उत्सव में भाग लेने के से खुश नहीं हैं। AIMPLB की सदस्य और शरिया कमेटी, हैदराबाद की अध्यक्ष डॉक्टर अस्मा ज़ेहरा तैयबा ने कहा, “सूरा काफिरून स्पष्ट रूप से कहता है ‘लकुम दिनुकम वालिया दीन’, तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और हमारे लिए हमारा दीन। आप उनके धार्मिक उत्सव में क्यों नाच रहे हैं?”

आरफा को जवाब देेते हुए ट्विटर यूजर मिसराई अली ने कहा, “जब हिंदू त्योहार हिंदुत्व गौरव और मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा कारण बन गए हैं तो आपको ऐसी जगहों पर भाग लेने के लिए मुस्लिमों की और अधिक आलोचना करनी चाहिए।”

इसको लेकर ट्विटर यूजर अहादुन ने कहा, “कम से कम स्वाभिमान के लिए आरफा जैसे लोगों को दूसरे धर्मों के त्योहारों में भाग लेना बंद कर देना चाहिए।”

ट्विटर यूजर शाहिद रजा ने कहा, “मुस्लिम उनके त्योहारों में क्यों जाना चाहते हैं? मुस्लिमों के लिए अन्य धर्मों के अनुष्ठानों में शामिल होने की अनुमति नहीं है। हाल ही में बजरंग दल के कुछ लोगों ने गरबा में भाग लेने/देखने के लिए मुस्लिम पुरुषों की पिटाई की। अगर मुस्लिम उनके त्योहार नहीं पसंद करते तो यह घटना नहीं होती।”

बता दें कि गरबा पंडालों में जिन मुस्लिमों की पिटाई की बात कही जा रही है, वे सभी नकली हिंदू नामों से गरबा स्थल में प्रवेश किया था। इसको लेकर एक अन्य ट्विटर यूजर हमद ने कहा, “माफ करना आरफा, लेकिन मुस्लिमों को हिंदू त्योहारों में शामिल होने की क्या जरूरत है। एक सच्चे मुस्लिम को इससे दूर रहना चाहिए और कम से कम इसकी परवाह करनी चाहिए, क्योंकि तेरे लिए तेरा धर्म है और मेरे लिए मेरा दीन। (सूरत अल-काफिरून)।”

ट्विटर यूजर अबुबकर शेख ने लिखा, “किसी को भी पीटना उचित नहीं है, लेकिन आप दूसरे धर्म के त्योहार में क्यों भाग लेना चाहते हैं। आपको उनकी आस्था का सम्मान करना चाहिए। आपको इसमें भाग लेने की आवश्यकता क्यों है? क्या कोई आपको एक साथ स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए रोक रहा है?”

ट्विटर यूजर मुस्लिमपेन ने कहा, “हम हिंदू फेस्टिवल में हिस्सा नहीं लेना चाहते, क्योंकि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। इसलिए हमारी तरफ से चीजें बेचना बंद कर दें। बस इतना कहो कि तुम जाना चाहती हो और वे तुम्हारा मजाक उड़ा रहे हैं।”

ट्विटर यूजर शिफा सीकर ने कहा, “आपकी इस मानसिकता पर शर्म आती है, जहाँ आप संस्कृति की आड़ में इस गैर-इस्लामिक और पाप वाले कृत्य का बचाव करना चाहती हैं। मुस्लिम उस #ईमान की अंतिम समय तक रक्षा करते हैं, जो केवल यही एक चीज आपको अल्लाह के प्रकोप का सामना करने से बचा सकती है।”

ट्विटर यूजर Talktoamuslim ने कहा, “समझदार मुसलमान उन जगहों पर क्यों जाएँगे, जहाँ उनका स्वागत नहीं है? वर्तमान बहुसंख्यकवादी व्यवस्था में उनके उत्सव में शामिल होने पर जोर देना मूर्खता है।”

ट्विटर यूजर मोहम्मद सलमान ने आरफा की हिंदू त्योहार में शामिल होने की इच्छा की निंदा की और सवाल किया कि वह अन्य धर्मों के उत्सवों में क्यों शामिल होना चाहती है। उन्होंने आगे कहा कि व्यक्ति कई इज्जत और उसका दीन (धर्म) अपने हाथों में होता है।

बता दें कि ऊपर में कुछ मुस्लिम यूजर जिस सूरा अल काफिरून का हवाला देकर मुस्लिमों को दूसरे धर्म के त्योहारों में भाग लेने से मना कर रहे हैं, वो कुरान के 109वें अध्याय का नाम है। इसमें ‘अविश्वासियों’ (काफिरों) को लेकर कहा गया है, जिसमें पैगंबर मुहम्मद ने मूर्तिपूजा पर समझौता करने से इनकार कर दिया था।

आरफा हिंदुओं के खिलाफ कर चुकी विष-वमन

आरफा खानम शेरवानी अतीत में हिंदू धर्म और संस्कृति के खिलाफ जहर उगलती रही हैं। अब गरबा को सांस्कृतिक बता रही हैं। बहुत समय पहले, दिसंबर 2018 में आरफ़ा ने ‘भारत माता की जय’ के नारे को सांप्रदायिक कहा था।

अपने ट्वीट में उन्होंने कहा था, “हाँ, भारत माता की जय सांप्रदायिक है, क्योंकि यह मातृभूमि को एक देवी होने के एक निश्चित पौराणिक विचार को मजबूर करता है। यह आपके विश्वास और धार्मिक दर्शन के अनुकूल हो सकता है, लेकिन एकेश्वरवाद- ‘एक ईश्वर में विश्वास करने वाले’ लोगों के लिए नहीं। यह एक बहुसंख्यकवादी नारा है।”

आरफा ने एक देश को एक ‘देवी’ के रूप में ‘जबरदस्ती’ चित्रण पर अपना गुस्सा दिखाया था। दिलचस्प बात यह है कि गरबा नवरात्रि उत्सव के दौरान माँ दुर्गा की पूजा का एक रूप है। माँ दुर्गा एक हिंदू देवी हैं। एक ओर शेरवानी इस बात से नाराज थीं कि मुस्लिमों को एक देवता की पूजा करने के लिए कहा गया और दूसरी ओर वह चाहती हैं कि हिंदू देवी पूजा के उत्सव में मुस्लिमों को आने दें। शेरवानी जिस तरह से ‘दोनों हाथों में लड्डू’ रखना चाहती हैं, वह हैरान करने वाला है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया