इसरो जासूसी केस में रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के हवाले: 27 साल पहले तबाह कर दी थी वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन की जिंदगी

नम्बी नारायण के मामले में समिति ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट

27 साल पुराने चर्चित इसरो जासूसी केस (ISRO Espionage Case) में उच्च स्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी है। तीन सदस्यीय समिति का गठन शीर्ष अदालत ने ही 14 सितंबर 2018 को किया था। पूर्व जज डीके जैन की अगुवाई वाली समिति को वैज्ञानिक नम्बी नारायणन (Nambi Narayanan) के खिलाफ साजिशों में केरल के पुलिस अधिकारियों की भूमिका की पड़ताल का जिम्मा सौंपा गया था।

मीडिया रिपोर्टों में सूत्रों के हवाले से सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपे जाने की जानकारी दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस समिति का गठन करने के साथ-साथ केरल सरकार को नारायणन को अपमानित करने और असहनीय पीड़ा देने के लिए 50 लाख रुपए का मुआवजा देने के भी निर्देश दिए थे।

नम्बी नारायणन की गिरफ्तारी 1994 में केरल में कॉन्ग्रेस शासन के दौरान हुई थी। अब इसी मामले में ढाई साल की जाँच के बाद समिति ने सीलबंद लिफाफे में उच्चतम न्यायालय को अपनी रिपोर्ट दी है। इसमें गिरफ्तारी के समय की परिस्थितियों की जाँच की गई है।

इससे पहले सीबीआई ने नारायणन की गैरकानूनी गिरफ्तारी के लिए केरल में तत्कालीन शीर्ष पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया था। वहीं इस केस के बाद कुछ लोगों ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के करुणाकरण पर निशाना साधा था, जिसकी वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।

ISRO जासूसी केस

घटना 30 नवंबर 1994 की है। कुछ पुलिस वाले नम्बी नारायणन के घर पर आ धमके। उन्होंने कहा कि DIG आपसे बात करना चाहते हैं। जब नारायणन ने पूछा कि क्या उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है तो पुलिसकर्मियों ने ना में जवाब दिया। उन्हें पुलिस की गाड़ी में आगे बिठा कर ले जाया गया (अपराधियों को अक्सर पीछे बिठाया जाता है)। असल में उससे पहले 20 अक्टूबर को मरियम रशीदा नामक मालदीव की एक महिला को गिरफ्तार किया गया था।

बताया गया था कि वो एक जासूस है और ISRO में कुछ संपर्कों के जरिए वो पाकिस्तान को भारतीय रॉकेट तकनीक की बारीकियाँ सप्लाई कर रही है। 13 नवंबर को उसी साल फौजिया हुसैन नामक मालदीव की एक और महिला को गिरफ्तार किया गया, जो मरियम की दोस्त थी। नम्बी नारायणन तब क्रायोजेनिक इंजन प्रोजेक्ट के मुखिया और लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स के डायरेक्टर इन चार्ज हुआ करते थे।

उस समय नारायणन के साथ दो अन्य वैज्ञानिकों डी शशिकुमारन और के चंद्रशेखर को भी गिरफ्तार किया गया था। इन तीन वैज्ञानिकों के अलावा रूसी स्पेस एजेंसी का एक भारतीय प्रतिनिधि एसके शर्मा, एक लेबर कॉन्ट्रैक्टर और फौजिया हसन नामक एक व्यक्ति की भी गिरफ्तारी हुई थी। इन सभी पर पाकिस्तान को इसरो के रॉकेट इंजन की सीक्रेट जानकारी देने के आरोप लगाए गए थे।

पूरे मामले की जाँच के दौरान नम्बी नारायणन को 50 दिनों तक हिरासत में रखा गया था और काफी यातनाएँ दी गई थीं। लेकिन पूरी कहानी में ट्विस्ट आया 1996 में। सीबीआई ने अप्रैल 1996 में चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट को बताया कि यह पूरा मामला फर्जी है। जो भी आरोप लगाए गए हैं उसके कोई सबूत नहीं हैं।

इसके बाद कोर्ट ने इसरो जासूसी केस में गिरफ्तार किए गए सभी आरोपितों को रिहा कर दिया था। लेकिन नम्बी नारायणन को रिहाई से संतुष्टि नहीं थी। वो अपने ऊपर लगा गद्दारी का दाग धोना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने लंबी कानूनी लड़ाई की ओर जाने का फैसला किया। उनकी यह लड़ाई चली भी सच में बहुत लंबी– 24 साल और सुप्रीम कोर्ट तक। देश की सर्वोच्च न्यायालय ने 14 सितंबर 2018 को कहा कि नारायणन को केरल पुलिस ने बेवजह गिरफ्तार किया और उन्हें मानसिक प्रताड़ना दी।

इस मामले में साल 2019 में पूर्व रॉ अधिकारी ने भारत के उप-राष्ट्रपति रहे हामिद अंसारी पर भी कई गंभीर आरोप लगाए थे। पत्रकार चिरंजीवी भट ने पूर्व रॉ अधिकारी एनके सूद से बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने हामिद अंसारी के क़रीबी द्वारा वैज्ञानिक नाम्बी नारायणन को बदनाम करने और उनका करियर तबाह करने की बात का खुलासा किया। (आप पूरे इंटरव्यू को हूबहू यहाँ पढ़ सकते हैं) पूर्व रॉ अधिकारी ने पत्रकार चिरंजीवी भट से बात करते हुए कहा:

“रतन सहगल नामक व्यक्ति हामिद अंसारी का सहयोगी रहा है। आपने नम्बी नारायणन का नाम ज़रूर सुना होगा। उन पर जासूसी का आरोप लगा था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके ख़िलाफ़ लगे सारे आरोपों को निराधार पाया था। वे निर्दोष बरी हुए। लेकिन, किसी को नहीं पता है कि उनके ख़िलाफ़ साज़िश किसने रची? ये सब रतन सहगल ने किया। उसने ही नम्बी नारायणन को फँसाने के लिए जासूसी के आरोपों का जाल बिछाया। ऐसा उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि बिगाड़ने के लिए किया। रतन जब आईबी में था तब उसे अमेरिकन एजेंसी सीआईए के लिए जासूसी करते हुए धरा जा चुका था। अब वह सुखपूर्वक अमेरिका में जीवन गुजार रहा है। वह पूर्व-राष्ट्रपति अंसारी का क़रीबी है और हमें डराया करता था। वह हमें निर्देश दिया करता था।”

फिलहाल नारायणन अपनी जिंदगी पर बनी फिल्म को लेकर भी चर्चा में है। बॉलीवुड और तमिल फिल्मों में भिनय का लोहा मनवा चुके रंगनाथन माधवन ने बतौर निर्देशक अपनी पारी शुरू की फिल्म ‘रॉकेट्री – द नम्बी इफ़ेक्ट’ से। इसका ट्रेलर आ गया है और इसे सोशल मीडिया पर अच्छी प्रतिक्रिया भी मिल रही है। यह फिल्म पद्म भूषण से सम्मानित नारायणन की बायोपिक है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया