मंदिर में एक गैर-हिन्दू के घुसने से क्या पहाड़ टूट पड़ेगा? कर्नाटक हाई कोर्ट ने याचिका ख़ारिज की

कर्नाटक हाईकोर्ट (फाइल फोटो/ साभार- डेक्कन क्रोनिकल्स

कर्नाटक हाईकोर्ट ने सोमवार (दिसंबर 14, 2020) को उन रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें ऐसे निर्देश की माँग की गई थी कि गैर हिन्दुओं को कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (KHRICE) के तहत आयुक्तों (कमिश्नर्स) के कार्यालय में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम ऐसी याचिका पर विचार नहीं कर सकते, जो हमें सौ साल पीछे ले जाती हो।

याचिका को रद्द करते हुए मुख्य न्यायाधीश अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, “हिंदू धर्म कभी भी इतना संकीर्ण नहीं था। हिंदू धर्म में ऐसे लोग नहीं हैं जो इतने संकीर्ण विचार रखते हों।”

याचिकाओं में कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम की धारा 7 को सख्ती से लागू करने की माँग की गई, जिसमें यह माँग की गई कि कोई भी व्यक्ति जो हिंदू धर्म को स्वीकार नहीं कर रहा है, को उक्त अधिनियम के तहत नियुक्त आयुक्त के कार्यालय में काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

इनमें से एक याचिका एनपी अमृतेश ने महालिंगेश्वर मंदिर द्वारा आयोजित वार्षिकोत्सव के निमंत्रण कार्ड पर एबी इब्राहिम, जो हिंदू धार्मिक संस्थानों और धर्मार्थ बंदोबस्त विभाग, मंगलुरु में डिप्टी कमिश्नर के रूप में काम कर रहे थे, के नाम पर सवाल उठाते हुए दायर की थी।

लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति एस विश्वजीत शेट्टी की खंडपीठ ने अमृतेश द्वारा दायर याचिका में ऐसी प्रार्थना को पढ़कर हैरानी व्यक्त की, जिसमें डिप्टी कमिश्नर (उपयुक्त) को मंदिर में प्रवेश करने से रोकने के लिए निर्देश देने की माँग की गई थी।

दूसरी याचिका ‘भारत पुनारत्थान ट्रस्ट’ द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अधिनियम के तहत आयुक्त के कार्यालय में मोहम्मद देशव अलीखान को अधीक्षक के रूप में नियुक्त करने पर आपत्ति जताई गई थी।

अदालत ने कहा कि क्या आसमान टूट पड़ेगा अगर वो मंदिर में प्रवेश करेंगे? पीठ ने कहा कि हिंदू धर्म कभी इतना संकीर्ण नहीं था। पीठ ने कहा, “देश में कहीं भी चले जाइए, ऐसे कई उदाहरण हैं, जहाँ बड़े हिंदू त्योहारों में ऐसे सरकारी अधिकारियों ने प्रशासन की मदद की, जो हिंदू धर्म स्वीकार नहीं करते।”

याचिकाओं पर कड़ी आपत्ति जताते हुए, प्रधान न्यायाधीश ओका ने कहा, “संविधान लागू होने के बाद हमने कभी भी अदालत में ऐसी याचिकाओं पर विचार नहीं किया। संविधान नाम की भी कोई चीज है, संवैधानिक दर्शन नाम की भी एक चीज होती है। हम एक ऐसी याचिका पर विचार नहीं करेंगे, जो हमें 100 साल पीछे ले जाती है।”

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया