‘सबरीमाला मंदिर में मलयाली ब्राह्मण ही हो सकते हैं पुजारी’: भर्ती की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका को केरल हाई कोर्ट ने किया खारिज

सबरीमाला मंदिर (साभार: बार एंड बेंच)

केरल उच्च न्यायालय ने मंगलवार (27 फरवरी 2024) को त्रावणकोर देवासम बोर्ड की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस अधिसूचना में कहा गया था कि सबरीमाला मंदिर के मेलशांति (सर्वोच्च पुजारी) के पद के लिए आवेदन करने वाला उम्मीदवार सिर्फ मलयाली ब्राह्मण समुदाय से ही होना चाहिए।

न्यायमूर्ति अनिल के नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पीजी अजितकुमार की खंडपीठ ने उन याचिकाओं पर फैसला सुनाया। इस याचिका में दलील दी गई थी कि उच्च पुजारी पद के चयन को केवल मलयाली ब्राह्मण समुदाय के व्यक्तियों तक सीमित करना भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन है।

हाई कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि मलयाली ब्राह्मण की अनिवार्यता ‘अस्पृश्यता’ के बराबर है और यह संविधान के अनुच्छेद 17 का उल्लंघन करती है। हालाँकि, हाई कोर्ट ने याचिका में उचित दलील का अभाव बताकर इसे खारिज कर दिया।

कोर्ट ने कहा, “रिट याचिकाओं में तर्कों और आधारों का पूर्ण अभाव है। हालाँकि याचिकाकर्ताओं के वकील ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के प्रावधानों के संबंध में तर्कों को संबोधित किया, लेकिन इन रिट याचिकाओं में दी गई चुनौती वर्ष 1193 ई. और 1197 ई. के सबरीमाला और मलिकापुरम मंदिरों में मेलशान्तियों का चयन से संबंधित है।”

कोर्ट ने आगे कहा, “अनुच्छेद 25 और 26 पर उचित दलीलों के अभाव में हमारा विचार है कि इन रिट याचिकाओं को बड़ी पीठ के लिए खुला रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को इस मुद्दे पर फैसला करना है। हालाँकि हम यह स्पष्ट करते हैं कि इस संबंध में दोनों पक्षों की दलीलों को उचित समय पर उचित कार्यवाही में उठाए जाने के लिए खुला रखा जाए।”

दरअसल, त्रावणकोर देवासम बोर्ड ने 27 मई 2021 की एक अधिसूचना जारी की थी, जिसमें मलयाली ब्राह्मण समुदाय के सदस्यों से सबरीमाला मंदिर और मलिकप्पुरम मंदिर में शांतिकरन (पुजारी) के पद के लिए आवेदन माँगे थे। इसके बाद जुलाई 2021 में वकील बीजी हरिंद्रनाथ के माध्यम से अधिसूचना को चुनौती दी गई थी।

याचिका में कहा गया था कि यह सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 21 की पूरी तरह से अवहेलना है। इसमें तर्क दिया गया था कि मेलशांति के पद पर नियुक्ति एक धर्मनिरपेक्ष कार्य है और इसे एक विशेष समुदाय तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, जबकि यह केरल सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थान है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें आगे यह तर्क दिया गया कि जाति की परवाह किए बिना ब्राह्मणों के अलावा किसी अन्य व्यक्ति, जो इस कार्य के लिए पूरी तरह योग्य हो और अपने कर्तव्यों के पालन में समर्थ हो, उसे अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) और 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता।

याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट में पेश वकील गोपाल ने तर्क दिया कि मेलशांति भर्ती को मलयाली ब्राह्मण उम्मीदवारों तक सीमित करना अस्पृश्यता का अभ्यास करने के खिलाफ संवैधानिक रोक के उल्लंघन का सवाल है। उन्होंने बताया कि सबरीमाला मंदिर गैर-सांप्रदायिक है, यानी जातिगत बाधा के बिना इस मंदिर में पुजारी होने का अधिकार बिना किसी भेदभाव के मंदिर में प्रवेश करने और पूजा करने के अधिकार से जुड़ा हुआ है।

उनका प्राथमिक तर्क यह था कि एन आदिथायन बनाम त्रावणकोर देवासम बोर्ड और अन्य में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उच्च न्यायालय पर बाध्यकारी है। एन आदिथायन मामले में शीर्ष अदालत ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड के प्रशासन के अधीन एक शिव मंदिर के पुजारी के रूप में नियुक्त होने के लिए एक गैर-मलयाली ब्राह्मण के अधिकार को बरकरार रखा था। कोर्ट को बताया गया कि यही बोर्ड सबरीमाला मंदिर का प्रबंधन भी करता है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया