सिख, जैन और बौद्ध और सभी धर्मों के मतावलंबी भी आते हैं कुंभ में

कुंभ में नहाते विभिन्न सम्प्रदायों के साधु-संन्यासी

कुंभ हिन्दुओं का सबसे बड़ा समागम है। इतना बड़ा कि मुग़ल बादशाह और अंग्रेज़ी हुकूमत ने भी हमले और कर आदि लगाकर इस मेले को बंद करने के प्रयास किए थे। करोड़ों हिन्दुओं के इतने बड़े जमावड़े को आज भी विदेशी बुद्धिजीवी एक समुदाय के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखते हैं जबकि कुंभ में आने वाले सभी सनातनधर्मी ही होते हैं जो बिना किसी निमंत्रण के इतनी बड़ी संख्या में एकत्रित होकर विविध प्रकार के शांतिपूर्वक अनुष्ठान करते हैं।

यह सुनने में अटपटा लगता है लेकिन कुंभ में हिन्दुओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी लोग आते हैं जो या तो हिन्दू नहीं हैं या सनातन धर्म की अन्य शाखाओं को मानने वाले हैं। इनमें सिख, जैन, बौद्ध और कुछ मजहब विशेष के लोग भी हैं।

श्री नित्यानंद मिश्रा जी ने अपनी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक Kumbha: The Traditionally Modern Mela में लिखा है कि सिख, जैन, बौद्ध और सम्प्रदाय विशेष के अतिरिक्त ईसाई भी कुंभपर्व में अपनी आध्यात्मिक क्षुधा शांत करने आते हैं।

पुस्तक के अनुसार सिखों का निर्मल अखाड़ा कुंभ में स्नान करने जाता है। 2013 के प्रयागराज कुंभ में निर्मल अखाड़े ने शिविर लगाया था जिसमें गुरु ग्रन्थ साहिब की आरती की गई थी। यह दिखाता है कि सनातन के वृक्ष से उसकी डालें कितनी मजबूती से जुड़ी हुई हैं। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल हरिद्वार में स्थित है और इसमें लगभग 15,000 साधु सम्मिलित हैं।

निर्मल अखाड़े के साधु गुरु नानक जी को अपने सम्प्रदाय का प्रणेता मानते हैं। सन 1686 में गुरु गोबिंद सिंह जी ने 5 संतों को पेओंटा साहिब से काशी संस्कृत पढ़ने भेजा था। निर्मल अखाड़े के साधु इसी परंपरा को अपने समुदाय का आरंभ मानते हैं। 2013 प्रयाग और 2016 उज्जैन कुंभ में सिख समुदाय के कई लोग आए थे।

सिखों के अतिरिक्त जैन समुदाय के लोग भी 2016 के उज्जैन कुंभ में आए थे। 2016 के कुंभ में एक जैन साध्वी को जूना अखाड़ा का महामंडलेश्वर बनाया गया था। स्वामी अवधेशानंद गिरी ने साध्वी चन्दनप्रभा गिरी के कानों में मंत्र बोले और उन्हें महामंडेलश्वर बनाया। महामंडलेश्वर बनने के पश्चात जैन गुरु आचार्य तुलसी की शिष्या रहीं चंदनप्रभा गिरी ने नया नाम ‘चंदन प्रभानंद गिरी’ धारण किया। उज्जैन कुंभ में 1008 जैन जोड़ों ने एक साथ देवी पद्मावती की पूजा की थी।

नित्यानंद मिश्रा जी ने अपनी पुस्तक में यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉटरलू के ईसाई प्रोफ़ेसर डैरल ब्रायंट के अनुभव के बारे में लिखा है। प्रो ब्रायंट ने कुंभ पर्व के बारे में अपने अनुभव बताते हुए लिखा, “संभवतः हिन्दुओं का कोई अन्य आयोजन इतना विराट नहीं होता जितना कुंभ मेला। एक ईसाई होने के बावजूद मैं इस धर्म को समझना चाहता हूँ। इस पर्व में सम्मिलित होने पर सभी ने मेरा स्वागत किया। कुंभ में सम्मिलित होकर मैंने उस धर्म को जानने की चेष्टा की जिसमें मेरी आस्था नहीं है। इस प्रयास में मैं हिन्दू तीर्थयात्रियों के आंतरिक विश्वास के बेहद करीब चला गया। जिस खुलेपन से हिन्दुओं ने मुझे सम्मिलित होने दिया उसके लिए मैं उनके प्रति आभारी हूँ।”

नित्यानंद मिश्रा जी ने अपनी पुस्तक में दो लोगों का उल्लेख किया है जो कुंभ में जाते हैं। आज़मगढ़ के शमीम अहमद 1983 से कुंभ में डुबकी लगाते रहे हैं। वे किसी आस्थावान हिन्दू की भाँति गंगाजल को अपने घर में रखते हैं। अनवर मोहम्मद ने कई वर्षों तक निरंजनी अखाड़े के स्नान के समय शहनाई बजाई थी। उन्हें 2013 कुंभ में निरंजनी अखाड़े ने साधु बनाकर सम्मिलित किया था।

वैसे तो बौद्ध मतावलंबी कुंभ में सम्मिलित नहीं होते किंतु शांतुम सेठ 2013 कुंभ में एक महीने के लिए भगवान बुद्ध की प्रेरणा से आए थे। उनका कहना था कि बुद्ध ने सदैव तीर्थयात्रा पर जाने का उपदेश दिया जिसे मानकर वह कुंभ में आए हैं। परम पावन दलाई लामा तेनज़िंग ग्यात्सो कई कुंभ मेलों में सम्मिलित हो चुके हैं। उन्होंने 2001 में प्रयाग कुंभ में माँ गंगा की आरती की थी।   

इस प्रकार कुंभ केवल हिन्दुओं का नहीं बल्कि समूची मानव जाति के कल्याण पर्व के रूप में प्रतिष्ठित है।

डिस्क्लेमर:- प्रस्तुत लेख में सभी जानकारी नित्यानंद मिश्रा जी की 2019 में प्रकाशित पुस्तक Kumbha: The Traditionally Modern Mela (Bloomsbury Publishers) से ली गई हैं।