‘पुरुषों को बंद कर के रखो, वही पैदा करते हैं समस्या’: केरल हाईकोर्ट ने छात्राओं के लिए रात के ‘हॉस्टल कर्फ्यू’ पर प्रशासन को डाँटा, कहा – महिलाओं को निकलने दें बाहर

हॉस्टल से बाहर निकलने के टाइमिंग का विरोध करती छ्त्राएँ ( फोटो साभार: न्यूज क्लिक)

केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने लड़कियों को हॉस्टल से रात में बाहर निकलने के मामले में प्रशासन को फटकार लगाई है। न्यायालय ने कहा कि यदि शैक्षणिक संस्थानों के महिला छात्रावासों में कर्फ्यू का उद्देश्य महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, तो बेहतर होगा कि पुरुषों को ही बंद कर दिया जाए।

न्यायाधीश न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने मामले की सुनवाई के दौरान बुधवार (7 दिसंबर, 2022) को कहा कि महिला छात्रावास पर कर्फ्यू लगाने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और महिला छात्रों पर अविश्वास करने से भी कुछ हासिल नहीं होगा। उन्होंने कहा, “पुरुषों को बंद कीजिए, मैं यह कह रहा हूँ, क्योंकि वे परेशानी पैदा करते हैं। रात 8 बजे के बाद पुरुषों पर कर्फ्यू लगाएँ। महिलाओं को बाहर निकलने दीजिए।”

केरल उच्च न्यायालय ने सवाल किया कि सिर्फ लड़कियों और महिलाओं के ही रात में बाहर निकलने पर पाबंदी क्यों है। साथ ही, राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा कि उन्हें भी लड़कों और पुरुषों के समान आजादी मिलनी चाहिए। न्यायमूर्ति देवन रामचंद्रन ने कहा कि रात से डरने की जरूरत नहीं है और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अँधेरा होने के बाद हर किसी का बाहर निकलना सुरक्षित रहे।

हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी कोझीकोड मेडिकल कॉलेज की पाँच छात्राओं की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान की। याचिका के जरिए 2019 के उस सरकारी आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें रात साढ़े नौ बजे के बाद उच्चतर शिक्षण संस्थानों के छात्रावास में रहने वाली लड़कियों के बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। हाईकोर्ट ने पूछा कि मेडिकल कॉलेज के छात्रावासों में रहने वाली लड़कियों के लिए रात साढ़े नौ बजे के बाद बाहर निकलने पर पाबंदी क्यों लगा दी गई। साथ ही कोर्ट ने कहा कि लड़कियों को भी इस समाज में रहना है। साथ ही सवाल दागा कि क्या रात साढ़े नौ बजे के बाद बड़ा संकट आ जाएगा? सरकार का दायित्व है कि वह परिसर (कैम्पस) को सुरक्षित रखे।

अदालत ने सवाल किया कि क्या राज्य में ऐसा कोई छात्रावास है जहाँ लड़कों के बाहर निकलने पर पाबंदी है। अदालत ने यह भी कहा कि समस्या पुरुष पैदा करते हैं, जिन्हें बंद कर रखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने यह भी कहा कि कुछ लोगों का कहना है कि वह पाबंदियों पर सवाल उठा रहे हैं क्योंकि उनकी बेटी नहीं हैं। न्यायाधीश ने कहा कि उनकी कुछ रिश्तेदार महिलाएँ हैं और दिल्ली में छात्रावास में रहती हैं। वे पढ़ाई करती हैं और इस तरह की पाबंदियां वहाँ नहीं हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया