भ्रष्टाचारी पति की हुई मौत तो पत्नी को भेजो जेल: मद्रास HC ने दिया हैरान करने वाला फैसला, बेंच ने कहा- आय से अधिक संपत्ति में था अधिकार, तो सजा में भी हो

मदुरै हाई कोर्ट (फोटो साभार : हंस इंडिया)

मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि आय से अधिक संपत्ति के मामले में सरकारी कर्मचारी की पत्नी भी सहभागी होती है, ऐसे में उसे भी सजा मिलनी चाहिए। मदुरै बेंच ने पाया कि मुख्य आरोपित पति की मौत हो चुकी है और पत्नी को 1 साल की जेल की सजा सुनाई गई है। पत्नी ने सजा को कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि ‘भ्रष्टाचार घर से शुरू होता है और यदि गृहिणी ही भ्रष्टाचार में भागीदार है तो इसका कोई अंत नहीं होगा।’

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट्स के मुताबिक, जस्टिस केके रामकृष्णन ने तिरुचि में भ्रष्टाचार रोकथाम मामलों की विशेष अदालत द्वारा देवनायकी को सुनाई गई एक साल की जेल की सजा को रद्द करने से इनकार कर दिया। देवनायकी के पति के खिलाफ 2017 में मामला दर्ज कराया गया था, उसके एसआई पति शक्तिवेल की बाद में मौत हो गई थी। लेकिन शक्तिवेल की पत्नी देवनायकी को कोर्ट ने सजा सुनाई थी, इसी सजा के खिलाफ उसने अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और ये महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

मदुरै हाई कोर्ट ने कहा, “एक सरकारी कर्मचारी की पत्नी का यह कर्तव्य है कि वह अपने पति को रिश्वत लेने से रोके। जीवन का मूल दर्शन रिश्वत से दूर रहना है। अगर कोई रिश्वत लेता है, तो वह और उसका परिवार बर्बाद हो जाएगा। अगर उन्होंने गलत तरीके से कमाए गए पैसे का आनंद लिया है, तो उन्हें भुगतना चाहिए। इस देश में भ्रष्टाचार अकल्पनीय रूप से व्याप्त है। भ्रष्टाचार घर से शुरू होता है और अगर घर की मालकिन भ्रष्टाचार में भागीदार है, तो भ्रष्टाचार का कोई अंत नहीं है। गलत तरीके से कमाए गए पैसे की वजह से देवनायकी को फायदा पहुँचा और अब उसे सजा भी भुगतनी चाहिए।

हाई कोर्ट ने पाया कि तिरुचि डीवीएसी पुलिस ने शक्तिवेल और उनकी पत्नी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति जमा करने के आरोप में मामला दर्ज किया था, जिसकी अनुमानित कीमत 1 जनवरी 1992 से 31 दिसंबर 1996 की अवधि के दौरान 6.77 लाख रुपये थी। मामले के लंबित रहने के दौरान शक्तिवेल की मृत्यु हो गई। अदालत ने शक्तिवेल की पत्नी को दोषी करार देते हुए एक साल की कैद और 1,000 रुपये का जुर्माना लगाया। हाई कोर्ट ने कहा, “ट्रायल जज द्वारा लगाई गई सजा में कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इसलिए उनके द्वारा निष्पादित जमानत बांड को रद्द किया जाता है।”

वैसे, अगर ये फैसला कुछ दशक पहले आता, तो बिहार को शायद ही राबड़ी राज झेलना पड़ता और शायद ही बिहार जैसे राज्य को इतने गर्त में जाना पड़ता। अगर उस समय ऐसा कोई फैसला आया होता, तो शायद बिहार की किस्मत में राबड़ी जैसी अनपढ़ मुख्यमंत्री न आती। चूँकि मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच ने जो टिप्पणी की है, उसे अगर कानूनी दाँवपेंच से परे रखकर सोचें तो बेहद प्रैक्टिकल फैसला है। भ्रष्टाचार की कमाई से फायदा पूरा परिवार उठाता है। वैसे, यहाँ अंगुलिमान से जुड़ी जातक कथा का भी उदाहरण रख सकते हैं।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया