‘संपत्तियों पर कब्जा करना और उसे अपनी संपत्ति घोषित करना वक्फ बोर्ड का स्वभाव’: श्रीकृष्ण जन्मभूमि मामले में बोला हिंदू पक्ष- 1968 का समझौता अमान्य

मथुरा का विवादित शाही ईदगाह ढाँचा (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में हिंदू पक्ष ने मंगलवार (7 मई 2024) को इलाहाबाद हाई कोर्ट में तर्क दिया। हिंदू पक्ष ने बताया कि वक्फ बोर्ड की किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करने और उसे अपनी संपत्ति घोषित करने की सामान्य प्रथा है। हिंदू पक्ष की अधिवक्ता रीना एन सिंह ने अदालत से वक्फ बोर्ड को इस तरह की प्रथा चलाने की अनुमति नहीं देने का आग्रह किया।

हिंदू पक्ष ने यह दलील तब दी, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर से सटे शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की माँग वाली मुकदमे को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। यह चुनौती मुस्लिम पक्ष ने दी है। न्यायमूर्ति मयंक जैन श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह ढाँचा विवाद से संबंधित 18 मुकदमों की समेकित पोषणीयता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे।

हिंदू पक्ष की वकील रीना सिंह ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय को सूचित किया कि मुस्लिम पक्ष ने दावा किया है कि दोनों पक्षों के बीच 1968 के समझौते ने संपत्ति को वक्फ संपत्ति में बदल दिया है। रीना सिंह ने कहा कि इस संपत्ति के मालिक भगवान हैं, जो उस समझौते में एक पक्ष के रूप में नहीं थे। इसलिए यह समझौता अमान्य हो गया।

अधिवक्ता रीना सिंह ने आगे कहा कि वक्फ अधिनियम और पूजा स्थल अधिनियम के प्रावधान इस मामले में प्रासंगिक नहीं थे। इससे पहले 2 मई की सुनवाई में उन्होंने तर्क दिया था कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि संरक्षित स्मारक और राष्ट्रीय महत्व का स्मारक, दोनों है। इस तरह, यह प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम 1958 के अधीन होगा, ना कि पूजा स्थल अधिनियम के।

उन्होंने आगे कहा कि पूजा स्थल अधिनियम के साथ-साथ वक्फ अधिनियम के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होते हैं। रीना सिंह ने इस मामले में दर्जन भर से अधिक तथ्य रखे। उन्होंने दलील दी कि ASI की जाँच में पुरातात्विक खनन के दौरान ईदगाह के अंदर स्थित कुएँ से श्रीकृष्ण के मूल गर्भगृह के मंदिर की आठ फुट की चौखट मिल चुकी है। उस चौखट के आगे के भाग पर नक्काशी की हुई है।

उन्होंने आगे कहा कि इस चौखट के पीछे के भाग में ब्राह्मी लिपि में अंकित है कि यह भगवान वासुदेव का महास्थान है। यह चौखट मथुरा के सरकारी म्यूजियम में रखी हुई है। उन्होंने कहा कि खनन में राधा-कृष्ण की मूर्तियों के अवशेष भी मिले हैं। उन्होंने भारत सरकार के अंतर्गत आने वाले डिपार्मेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के अंतर्गत ‘इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑफ वेदाज’ के रिकॉर्ड को भी रखा।

इसके आधार पर रीना सिंह ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म और महाभारत के तमाम घटनाओं के वास्तविक समय का जिक्र करते हुए अपने तथ्यों को रखा। उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और महाभारत काल के दौरान मस्जिद का कहीं कोई जिक्र ही नहीं था। इसके अलावा, उन्होंने देश के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न अब्दुल कलाम की पुस्तक ‘इग्नाइटेड माइंड्स’ का भी जिक्र किया।

इस किताब का हवाला देते हुए रीना सिंह ने कहा कि इसके पाँचवें अध्याय में साफ तौर पर इस बात का जिक्र किया गया है कि भारत का मूल धर्म सनातन संस्कृति और वह इस्लाम से अत्यधिक पुराना है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 15 मई 2024 को होगी। हिंदू पक्ष की दलीलें पूरी होने के बाद मुस्लिम पक्ष अपनी दलीलें पेश करेगा। मुस्लिम पक्ष की ओर से अधिवक्ता तस्नीम अहमदी पेश हुए।

बताते चलें कि मथुरा में यह विवाद 13.37 एकड़ जमीन के मालिकाना हक को लेकर है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास 10.90 एकड़ जमीन है, जबकि शाही ईदगाह ढाँचा के पास 2.50 एकड़ जमीन है। ये पूरी ज़मीन हिंदू पक्ष की है। लंबे समय से चल रहे संघर्ष ने विवादित ढाँचे के निरीक्षण की अनुमति देने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के साथ एक बड़ा मोड़ ले लिया है।

ऑपइंडिया स्टाफ़: कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया